ﺑِﺴْــــــــــــــــﻢِﷲِﺍﻟﺮَّﺣْﻤَﻦِﺍلرَّﺣِﻴ
नमस्ते और नमस्कार के माइने आदाब, तस्लीम सलाम करना वगैरा के होते है उलमा फरमाते है कि मुसलमान काफिर को नमस्ते कहे, ये हराम है और काफिर के यहां ये शियारे ताज़ीम है और खास शियारे हिनूद है तो किसी काफिर को नमस्ते नहीं करना चाहिए क्योंकि जब हदीस में फासिक की ताज़ीम को मना किया तो काफिर की ताज़ीम की कैसे इजाज़त होगी इस्लाम ने मुसलमानों को आपस में मिलते वक़्त सलाम की तर्गीब दी और हुज़ूर ﷺ ने काफिर और फासिकों और गैरों के तरीके से बचने का हुक्म दिया
आला हज़रत इमामे अहले सुन्नत रहमतुल्लाहि तआ़ला अ़लैह फरमाते है: काफिर को सलाम हराम है। और आगे लिखते है काफिर या फासिक को सलाम करने की सही ज़रूरत पेश आए तो लफ़्ज़े सलाम ना कहे ना कोई ऐसा लफ़्ज़ जो ताज़ीमी हो। मज़बूर हो तो आदाब कहे (यानी आ मेरे पाऊँ दाब) और मज़बूरी की हालत में आदाब कहते वक़्त भी दिल में उनकी ताज़ीम की निय्यत नहीं होनी चाहिए
📚बा हवाला📚
{फतावा ताजुश शरीआ जिल्द 2 सफा 112 ,फतावा रज़विया जिल्द 22 सफा 378}
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