Saturday, August 12, 2023

दास्ताने करबला, क़िस्त 06*

*दास्ताने करबला, क़िस्त 06*

*हज़रत अमीरे मुआविया की वफ़ात और यज़ीद की सल्तनत*

हज़रत अमीरे मुआविया के ज़माने में ही हज़रत इमामे हुसैन की ख़िदमत में *कूफा वाले दरख्वास्त भेज रहे थे, और आपको कूफ़ा आने के लिए इसरार कर रहे थे।* लेकिन आप ने उनकी दरख्वास्त और इल्तिज़ा को क़ुबूल ना किया और साफ़ इनकार कर दिया। 

*हज़रत अमीरे मुआविया (रज़िअल्लाहु तआला अन्ह ) की वफात रजब सन 60 हिजरी में दमिश्क में हुई।* आपने लक़्वा में मुब्तिला हो कर वफ़ात पाई। 

आपकी वफ़ात के बाद मुआहदे (agreement) के ऐतबार से *खिलाफ़त दोबारा उम्मत की तरफ़ लौटा देने का अहद था।* और उम्मत का हक़ था कि, वह अपना ख़लीफ़ा ख़ुद चुन लेती। लेकिन यज़ीद जानता था कि, अगर चुनाव के जरिए ख़लीफ़ा  मुंतखब किया गया तो वह ज़रूर इमाम हुसैन ही होंगे।

इसलिए हज़रत मुआविया रज़िअल्लाहु तआला अन्हु के वफ़ात के बाद *वह तख़्ते सल्तनत पर बैठ गया* और अपनी बैअ्त लेने के लिये अतराफ़ (आस पास) और दूसरे मुल्कों में मकतूब रवाना किए। 

मदीना ए मुनव्वरा का आमिल जब यज़ीद की बैअ्त लेने के लिये हज़रत इमामे हुसैन रज़िअल्लाहु तआला अन्हु की खिदमत में हाजिर हुवा तो *आप ने उसके फिस्क़ और ज़ुल्म के सबब उसको ना-अहल (illigal) करार दिया और बैअ्त से इन्कार फ़रमा दिया।* इसी तरह हज़रत ज़ुबैर रज़िअल्लाहु तआला अन्ह ने भी इन्कार किया। 

आप हज़रात जानते थे कि, बैअ्त का इन्कार यज़ीद की दुश्मनी का बाईस (सबब) होगा, और वह *आपकी जान का दुश्मन और खून का प्यासा हो जाएगा।* लेकिन आपको गवारा ना हुवा की, अपनी जान की ख़ातिर मुसलमानों की तबाही और शरअ व अहकाम की बेहुर्मती करने वाले शख्स की बैत को कुबूल कर लें।

हज़रते इमामे हुसैन व इब्ने ज़ुबैर रज़िअल्लाहु तआला अन्हुमा से बैअ्त की दरख्वास्त *इस लिये पहले की गई थी की तमाम अहले मदीना इन का इत्तिबाअ करेंगे,* लेकिन इन हज़रात के इनकार से *वो मन्सूबा ख़ाक मे मिल गया* और यज़ीदियों में उसी वक़्त से आतिशे इनाद भड़क उठी

 _*ये वाक़या 4 शाबान सी 60 हिजरी का है.......... ‌‌*_

(इन्शा अल्लाहुर्रहमान बाक़ी आने वाली पोस्ट में)

*मिन जानिब-जमाअत रज़ा ए मुस्तफ़ा गुमला झारखंड इंडिया*

*Next........*

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*ग़ुलामे ताजुश्शरिअह अब्दुल्लाह रज़वी क़ादरी, मुरादाबाद यूपी भारत-🌹*

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