Tuesday, March 30, 2021

बेरी के 7 पत्ते

*एक जरूरी इस्लाह*

*15th शाबान को बेरी के पत्तो से ग़ुस्ल करने की बड़ी फ़ज़ीलत है किताबों में ! लेकिन अवाम इसमे थोड़ी गफ़लत में रहती है क्योंकि बेरी के पत्तो से ग़ुस्ल के फ़ज़ाएल 15 शाबान की शब को है जो मगरिब के बाद शुरू होता है और भोली अवाम मगरिब से पहले यानी 14 शाबान को ये अमल करती है जिससे इसका फायदा हो हासिल हो नही पाता !*

*दूसरी बात ये की बेरी के 7 पत्ते अदद में लेना है एक आदमी के लिए और उसे उबाल कर एक आदमी ही ग़ुस्ल करे, लेकिन बाज़ लोग क्या करते कि बहुत सारे पत्तियो को तोड़ कर बड़े से पतीले में डाल लेते और फिर थोड़ा थोड़ा पानी लेकर ग़ुस्ल करते ! इससे भी मक़सद हासिल नही होता है !!*

*लेहाज़ा असलम तरीका ये है कि मगरिब के बाद 7 बेरी के पत्तो को एक छोटे पतीले में पानी लेकर गर्म कर लें और फिर ज़ायद पानी मिलाकर ग़ुस्ल करें !!*

*(ज़्यादा मालूमात अपने नजदीकी सुन्नी उलमा से हासिल करें)*

Friday, March 26, 2021

हज़रत बिलाल हब्शी रज़ियल्लाहु अन्हू

हज़रत बिलाल हब्शी रज़ियल्लाहु अन्हू को जब जलते हुए कोयलों पर लिटा कर कोड़े मारे जा रहे थे तब रास्ते से गुज़रते हुए किसी शख़्स ने उनसे कहा कि:
"बिलाल बड़ी अजीब कहानी है, तुम कोयलों पर लेटे हो, वह कोड़े मार रहा है और तुम मुस्कुरा रहे हो"
तो हज़रत बिलाल रज़ियल्लाहु अन्हू ने हंस कर फ़रमाया:
"जब तुम बाज़ार जाते हो और कोई मिट्टी का बर्तन भी ख़रीदते हो तो उसको भी ठोक-बजा के देखते हो कि इसकी आवाज़ तो ठीक है? कहीं कच्चा तो नहीं है..
बस मेरा मालिक(अल्लाह) बिलाल को ख़रीद रहा है, देख रहा है कहीं बिलाल कच्चा तो नहीं है.. मैं कहता हूँ ऐ मालिक ख़रीद ले बिलाल को, चमड़ी उधड़ भी जायेगी तब भी हक़-हक़ की आवाज़ ख़त्म नहीं होगी" (सुब्हान'अल्लाह)
                🌹🌹
इस शेर से कुछ मामला समझ आएगा
                   🍀🍀
ज़ख्म पे ज़ख्म खा के जी..
ख़ून-ए-जिगर के घूँट पी..
आह न कर लबों को सी..
यह इश्क़ है दिल्लगी नहीं..
            🌺🌺
इसे पढ़ कर सुब्हान'अल्लाह कहना बहुत आसान है लेकिन इस रास्ते पर चलना बहुत मुश्किल है मेरे भाइयों...
जो लोग यह कहते हैं कि इस दौर में शरीअत पर चलना बहुत मुश्किल है वो लोग हज़रत बिलाल और बाक़ी सहाबा की क़ुर्बानियों को देखें और फैसला करें कि आज दीन पर चलना मुश्किल है या उस दौर में मुश्किल था, हम तो सारी सहूलतें मिलने के बाद भी मस्जिद जाने की तकलीफ़ नहीं उठा सकते तो जन्नत में जाने की उम्मीद कैसे लगा सकते हैं...
सहाबा इकराम को देखो कि वो कितनी मुश्किलों से गुज़रे हैं, उनके रास्ते में जंग-ए-बदर भी है, जंग-ए-ओहद भी है, जंग-ए-हुनैन भी है और जंग-ए-कर्बला भी है.. तब जा कर जन्नत मिली और हम सोचते हैं बस मुँह उठा कर चले जायेंगे जन्नत में..
आज हम इकठ्ठे हो कर किसी दीनी महफ़िल में नारा लगा कर समझते हैं कि हमने दीन का हक़ अदा कर दिया...?
नहीं मेरे भाइयों.. हमें समझने की ज़रूरत है कि दीन हमसे क्या मुतालबा कर रहा है...

नमाज़ जो कि अल्लाह को इबादतों में सबसे ज़्यादा पसंदीदा है इसको ही ले लो

हुज़ूर पाक मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि:
"मेरी आँखों की ठंडक नमाज़ है"

सहाबा फ़रमाते हैं कि:
"हम मोमिन और काफ़िर के बीच फ़र्क़ ही नमाज़ से समझते थे, जो नमाज़ नहीं पढ़ता था हम समझते थे कि मोमिन नहीं है तभी नमाज़ नहीं पढ़ता, मोमिन होता तो ज़रूर पढ़ता"

इमाम-ए-आज़म का फ़तवा है कि:
"जो नमाज़ न पढ़े उसे क़ैद कर दो, अगर तौबा करता है और नमाज़ पढ़ना शुरू कर देता है तो छोड़ दो"

शेख़ अब्दुल क़ादिर जीलानी(ग़ौस-ए-आज़म) रहमतुल्लाह अलैह फ़रमाते हैं कि:
"बे-नमाज़ी को मुसलमानों के क़ब्रिस्तान में दफ़न न करो"

हज़रत सुल्तान-ए-बाहू फ़रमाते हैं कि:
"बे-नमाज़ी से खंज़ीर(सूअर) भी पनाह मांगता है"

हज़रत शेख़ सादी ने फ़रमाया कि:
बे-नमाज़ी को क़र्ज़ मत दो क्योंकि जो अल्लाह का क़र्ज़(नमाज़) अदा नहीं करता वह तुम्हारा क़र्ज़ क्या अदा करेगा"

रसूल पाक के चाहने वाले,
इमाम-ए-आज़म के मानने वाले,
ग़ौस-ए-आज़म की ग्यारहवीं की नियाज़ करने वाले ज़रा अपने दिलों में झांकें कि क्या वह अल्लाह और रसूल का हक़ अदा कर रहे हैं और नमाज़ तो ऐसी इबादत है कि अगर सच्चे दिल से इसे थाम लिया तो नमाज़ बाक़ी गुनाहों से भी बचा ले जायेगी और दीगर नेकियों की तरफ़ भी मुतवज्जो करेगी और क़ब्र में भी साथ देगी और रोज़-ए-महशर में भी..
इसलिए मेरे भाइयों नमाज़ क़ायम करो ताकि जब हम अपने रब के पास हाज़िर हों तो मुँह दिखाने लायक़ तो हों...
अल्लाह हम सबको नमाज़ पढ़ने और दीगर नेक आमाल करने की तौफ़ीक़ अता फ़रमाये...आमीन 🌹🌹🌹

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Wednesday, March 17, 2021

*इमामे आज़म अबू हनीफा रज़ियल्लाहु तआला अन्हु*

*इमामे आज़म अबू हनीफा रज़ियल्लाहु तआला अन्हु*

 आपका नाम नोअमान वालिद का नाम साबित और कुन्नियत अबू हनीफा है,आप 80 हिजरी में पैदा हुए 

📕 खैरातुल हिसान,सफह 70

 हज़रत शेख अब्दुल हक़ मुहद्दिस देहलवी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि आपका ज़िक्र तौरैत शरीफ में भी यूं मौजूद है कि "मुहम्मद सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम की उम्मत में एक नूर होगा जिसकी कुन्नियत अबू हनीफा होगी 

📕 तआर्रुफ फिक़ह व तसव्वुफ,सफह 225

खुद हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि "मेरी उम्मत में एक मर्द पैदा होगा जिसका नाम अबू हनीफा होगा वो क़यामत में मेरी उम्मत का चराग़ है

📕 मनाक़िबिल मोफिक,सफह 50

* बुखारी व मुस्लिम शरीफ की हदीसे पाक है हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि "अगर ईमान सुरैया के पास भी होता तो फारस का एक शख्स उसे हासिल कर लेता" इस हदीस की शरह में हज़रत जलाल उद्दीन सुयूती रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि उस शख्स से मुराद इमामे आज़म अबू हनीफा रज़ियल्लाहु तआला अन्हु हैं

📕 तबयिदुल सहीफा,सफह 7

सुरैया चौथे आसमान पर एक सितारे का नाम है

* आप ताबईन इकराम के गिरोह से हैं क्योंकि आपने कई सहाबा इकराम की ज़ियारत की है,बाज़ ने 20 सहाबी से मुलाक़ात का ज़िक्र किया और बाज़ ने 26 और भी इख्तिलाफ पाया जाता है,मगर इसमें कोई इख्तेलाफ नहीं कि आपकी सहाबियों से मुलाक़ात ना हुई हो क्योंकि खुद बराहे रास्त आपने 7 सहाबा इकराम से हदीस सुनी है जिनमे सबसे अफज़ल सय्यदना अनस बिन मालिक रज़ियल्लाहु तआला अन्हु हैं,फिर अब्दुल्लाह बिन हारिस,जाबिर बिन अब्दुल्लाह,मअकल बिन यसार,वासला बिन यस्क़ा,अब्दुल्लाह बिन अनीस,आयशा बिन्त अजरद रिज़वानुल्लाहे तआला अलैहिम अजमईन शामिल हैं

📕 बे बहाये इमामे आज़म,सफह 62

* हज़रत दाता गंज बख्श लाहौरी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु लिखते हैं कि एक मर्तबा आपने गोशा नशीन होने का इरादा फरमा लिया था,रात को हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ख्वाब में तशरीफ लाये और फरमाया कि "ऐ अबू हनीफा तेरी ज़िन्दगी अहयाये सुन्नत के लिए है तू गोशा नशीनी का इरादा तर्क कर दे" तो आपने ये इरादा तर्क कर दिया 

📕 कशफुल महजूब,सफह 162

* क़ुरान मुक़द्दस को 1 रकात में पढ़ने वाले 4 हज़रात हैं जिनमे हज़रत उसमान ग़नी हज़रत तमीम दारी हज़रत सईद बिन जुबैर और हमारे इमाम इमामे आज़म रिज़वानुल्लाहे तआला अलैहिम अजमईन हैं 

📕 क्या आप जानते हैं,सफह 211

* इमाम ज़हबी रहमतुल्लाह तआला अलैही फरमाते हैं कि आपका पूरी रात इबादत करना तवातर से साबित है और 30 सालों तक 1 रकात में क़ुरान पढ़ते रहे और 40 सालों तक ईशा के वुज़ू से फज्र अदा की,आप रमज़ान में 61 कलाम पाक खत्म किया करते थे एक दिन में एक रात में और एक पूरे महीने की तरावीह में,आपने 55 हज किये 

📕 इमामे आज़म,सफह 75

* आलाहज़रत अज़ीमुल बरक़त रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि अगर रूए ज़मीन के आधे इंसानो के साथ इमामे आज़म की अक़्ल को तौला जाए तो इमामे आज़म की अक़्ल भारी होगी 

📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 1,सफह 123

* आप जब भी रौज़ए अनवर पर हाज़िरी देते और सलाम पेश करते तो जाली मुबारक से आवाज़ आती व अलैकुम अस्सलाम या इमामुल मुस्लेमीन 

📕 तज़किरातुल औलिया,सफह 165

 फिक़ह हनफी पर ऐतराज़ करने वालों और हर बात में बुखारी बुखारी की रट लगाने वालो देखो कि इमाम बुखारी ने इल्म किससे सीखा,इमाम बुखारी के उस्ताज़ हैं इमाम अहमद बिन हम्बल उनके उस्ताज़ हैं इमाम शाफई उनके उस्ताज़ हैं इमाम मुहम्मद उनके उस्ताज़ हैं इमाम अबू यूसुफ और आप के उस्ताज़ हैं इमामुल अइम्मा इमामे आज़म रिज़वानुल्लाहे तआला अलैहिम अजमईन

📕 इमामे आज़म,सफह 195

आपसे बेशुमार करामतें ज़ाहिर है और बेशुमार वाक़ियात किताबों में मौजूद है,कभी करामत के टापिक में बयान करूंगा इन शा अल्लाह

आपका विसाल 2 शाबान 150 हिजरी में हुआ,6 बार आपकी नमाज़े जनाज़ा पढ़ी गयी और क़ब्र पर तो 20 दिन तक नमाज़ होती रही,आपके विसाल पर जिन्नात भी रो पड़े थे 

📕 इमामे आज़म,सफह 132

Tuesday, March 16, 2021

हज़रत इमाम हुसैन रदियल्लाहो तआला अन्हो की विलादत

  हज़रत इमाम हुसैन रदियल्लाहो तआला अन्हो की विलादत


*🌹🌹अस्सलामु अलय कुम व रहमतुल्लाहि व बरकातुह🌹🌹*
*3️⃣ शाबनुल मुअज़्ज़म यौमे विलादत ए हज़रते सैयदुना सरकार सैयदुशशौहदा ईमाम आली मकाम, जन्नती नौ, जवानों के सरदार, दिने इस्लाम को ज़िंदा करने वाले, सब्ररो इस्तेक़ामत के पैकर, चौदवी के चांद, हुज़ूर ﷺ के जिगर के टुकड़े और आँखों की ढंडक, लख्ते जिगरे फ़ातेमा ज़हरा खातुने जन्नत सलामुल्लाह अलयहा, नूरे नज़रे मौला ए कायनात मौला अली मुश्किल कुशा अलैहिस्सलाम,दिलबरे मौला इमामे हसने मुज्तबा शहेंशाह ए दो जहां,क़िब्ला ए आशिका, क़िब्ला ए सूफिया हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम व रदियल्लाहो तआला अन्हो की विलादत ए पाक फैजाने पंजतन गृप की जानिब से आप सभी को बहोत बहोत मुबारक हो*
*🤲दुआ के तलबगार🤲*
*🌹फैजाने पंजतन गृप कस्बा हुसैनी टेकरी मोडासा🌹*

हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम की शान कुरान शरीफ में


    - क़ुरआन शरीफ से मालूमात -


*🌍हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम की शान क़ुर्आन में 👇🏻*

*📮_1 मीलाद शरीफ़ मनाना सुन्नते ख़ुदावन्दी है_*

_*📕पारा 10-11, सूरह तौबा, आयत 33, 128*_
_*📕पारा 6, सूरह मायदा, आयत 15*_
_*📕पारा 3-4, सूरह आले इमरान, आयत 81, 82, 103, 164*_
_*📕पारा 28, सूरह जुमा, आयत 2*_
_*📕पारा 28, सूरह सफ़, आयत 6*_
_*📕पारा 30, सूरह वद्दोहा, आयत 11*_
_*📕पारा 13, सूरह इब्राहीम, आयत 5*_

*📮_2 तमाम अंबिया इकराम अपनी क़ब्रों में ज़िन्दा हैं_*

_*📕पारा 2, सूरह बकरा, आयत 154*_
_*📕पारा 4, सूरह आले इमरान, आयत 169*_
_*📕पारा 22, सूरह सबा, आयत 14*_

*📮_3 ख़ुदा की बारगाह में अंबिया व औलिया का वसीला लगाना जायज़ है_*

_*📕पारा 6, सूरह मायदा, आयत 35*_
_*📕पारा 5, सूरह निसा, आयत 64*_
_*📕पारा 1, सूरह बकरा, आयत 37*_

*📮_4 हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम नूर हैं बेशक आप बशर भी हैं मगर हम जैसे नही_*

_*📕पारा 6, सूरह मायदा, आयत 15*_
_*📕पारा 22, सूरह अहज़ाब, आयत 45, 46*_
_*📕पारा 10, सूरह तौबा, आयत 32*_
_*📕पारा 28, सूरह सफ़, आयत 8*_

*📮_5 अंबिया इकराम को बशर यानि अपनी तरह कहना कुफ्र है_*

_*📕पारा 14, सूरह हजर, आयत 33*_
_*📕पारा 18, सूरह मोमेनून, आयत 33, 47*_
_*📕पारा 28, सूरह तग़ाबुन, आयत 6*_
_*📕पारा 8, सूरह एराफ़, आयत 12*_
_*📕पारा 19, सूरह शोअरा, आयत 154*_

*📮_6 अल्लाह के नेक बन्दे दूर से देखते सुनते व मदद भी करते हैं_*

_*📕पारा 19, सूरह नमल, आयत 18*_
_*📕पारा 10, सूरह इन्फाल, आयत 64*_
_*📕पारा 28, सूरह तहरीम, आयत 4*_
_*📕पारा 5, सूरह निसा, आयत 64*_

*📮_7 हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम खातेमुन नबीय्यीन हैं यानि आप के बाद कोई नबी नहीं आ सकता_*

_*📕पारा 22, सूरह अहज़ाब, आयत 40*_

*📮_8 हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम हाज़िर व नाज़िर हैं_*

_*📕पारा 26, सूरह फतह, आयत 8*_
_*📕पारा 2, सूरह बकरा, आयत 143*_
_*📕पारा 5, सूरह निसा, आयत 41*_
_*📕पारा 9, सूरह इन्फाल, आयत 33*_
_*📕पारा 29, सूरह मुज़म्मिल, आयत 15*_
_*📕पारा 17, सूरह अंबिया, आयत 107*_

*📮_9 ताज़ीमे मुस्तफा सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम ईमान की जान है_*

_*📕पारा 5, सूरह निसा, आयत 65*_
_*📕पारा 9, सूरह इन्फाल, आयत 24*_
_*📕पारा 9, सूरह एराफ़, आयत 157*_
_*📕पारा 18, सूरह नूर, आयत 63*_
_*📕पारा 26, सूरह हुजरात, आयत 2*_
_*📕पारा 22, सूरह अहज़ाब, आयत 53*_
_*📕पारा 26, सूरह फतह, आयत 8,9*_

*📮_10 ख़ुदा ने ख़ुद हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम व तमाम अंबिया इकराम पर दुरूदो सलाम पढ़ा है और हमें पढ़ने का हुक्म भी दिया_*

_*📕पारा 22, सूरह अहज़ाब, आयत 56*_
_*📕पारा 16, सूरह मरियम, आयत 15, 33*_
_*📕पारा 23, सूरह साफ्फात, आयत 79, 109, 120, 130, 181*_

*📮_11 हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम से गुस्ताखी कुफ्र है_*

_*📕पारा 1, सूरह बकरा, आयत 104*_
_*📕पारा 10, सूरह तौबा, आयत 61, 65, 66*_
_*📕पारा 23, सूरह स्वाद, आयत 75, 76*_
_*📕पारा 26, सूरह हुजरात, आयत 2*_
_*📕पारा 22, सूरह अहज़ाब, आयत 57*_

*📮_12 हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम मालिको मुख्तार हैं जिसे जो चाहें अता कर दें_*

_*📕पारा 30, सूरह वद्दोहा, आयत 5,8*_
_*📕पारा 30, सूरह कौसर, आयत 1*_
_*📕पारा 5, सूरह निसा, आयत 113*_
_*📕पारा 10, सूरह तौबा, आयत 29, 59, 74, 103*_
_*📕पारा 2, सूरह बकरा, आयत 144*_
_*📕पारा 9, सूरह एराफ़, आयत 157*_
_*📕पारा 22, सूरह अहज़ाब, आयत 36*_
_*📕पारा 23, सूरह ज़मर, आयत 53*_
_*📕पारा 9, सूरह इन्फाल, आयत 24*_
_*📕पारा 27, सूरह कमर, आयत 1,2*_

*📮_13 अंबिया इकराम मासूम हैं उनसे गुनाह हो ही नहीं सकता_*

_*📕पारा 15, सूरह बनी इसराईल, आयत 65, 74*_
_*📕पारा 27, सूरह वन्नज्म, आयत 2*_
_*📕पारा 13, सूरह यूसुफ, आयत 53*_
_*📕पारा 21, सूरह अहज़ाब, आयत 21*_
_*📕पारा 23, सूरह स्वाद, आयत 82, 83*_
_*पारा 8, सूरह एराफ़, आयत 61*_
_*📕पारा 8, सूरह इनआम, आयत 124*_
_*📕पारा 1, सूरह बकरा, आयत 124*_

*📮_14 हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम ने ख़ुदा को बेदारी में सर की आखों से देखा_*

_*📕पारा 27, सूरह वन्नज्म, आयत 1-17*_

*📮_15 ख़ुदा ने अंबिया इकराम खुसूसन हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम को ग़ैब का इल्म अता किया_*

_*📕पारा 1, सूरह बकरा, आयत 31*_
_*📕पारा 15, सूरह कहफ, आयत 65*_
_*📕पारा 26, सूरह ज़ारियात, आयत 28*_
_*📕पारा 13, सूरह यूसुफ, आयत 68*_
_*📕पारा 5, सूरह निसा, आयत 113*_
_*📕पारा 3-4, सूरह आले इमरान, आयत 49, 179*_
_*📕पारा 29, सूरह जिन्न, आयत 26, 27*_
_*📕पारा 27, सूरह वन्नज्म, आयत 10*_
_*📕पारा 30, सूरह तक़वीर, आयत 24*_
_*📕पारा 13, सूरह यूसुफ, आयत 102*_
_*📕पारा 27, सूरह रहमान, आयत 1-4*_
_*📕पारा 28, सूरह मुजादेलह, आयत 22*_
_*📕पारा 20, सूरह अन्कबूत, आयत 1,2*_
_*📕पारा 10, सूरह तौबा, आयत 23*_
_*📕पारा 28, सूरह मुम्तहिना, आयत 1,2*_
_*📕पारा 6, सूरह मायदा, आयत 51*_
_*📕पारा 9, सूरह एराफ़, आयत 179*_
_*📕पारा 25, सूरह जाशिया, आयत 23*_
_*📕पारा 28, सूरह जुमा, आयत 5*_
_*📕पारा 26, सूरह हुजरात, आयत 14*_
_*📕पारा 28, सूरह मुनाफेकून, आयत 1,8*_
_*📕पारा 1, सूरह बकरा, आयत 85, 86*_
_*📕पारा 18, सूरह नूर, आयत 47*_
_*📕पारा 26, सूरह मुहम्मद, आयत 34*_
_*📕पारा 5, सूरह निसा, आयत 140*_
_*📕पारा 10-11, सूरह तौबा, आयत 54, 84, 107, 108*_

Sunday, March 14, 2021

घर में गरीबी आने के असबाब

सबसे पहले सेंड कर दो , क्योंकि जब तक कोई यह मैसेज पढ़ता रहेगा, जन्नत में आप के नाम का पेड़ लगता रहेगा , Dont stop.

घर में गरीबी आने के असबाब.                                                    
1= गुस्ल खाने में पैशाब करना 2= टूटी हुई कन्घी से कंगा करना
3= टूटा हूआ सामान इस्तेमाल करना 
4= घर में कूडा़ करकट रखना
5= रिश्तेदारो से बदसलूकी करना
6= बांए पैर से पेैजामा पहनना
7= मगरीब ईशा के बीच सोना
8= मेहमान आने पर नाराज होना
9= आमदनी से ज्यादा खचॆ करना
10= दाँत से रोटी काट कर खाना
12= दांत से नाखून काटना
13= खडे़ खडे़ पेजामा पहनना
14= औरतो का खडे होकर बाल बांधना
15 = फटे हुए कपड़े जिस्म पर पहनना
16= सुबह सूरज निकलने तक सोना
17= दरख्त के नीचे पैशाब करना
18= बैतुल खला में बाते करना
19= उल्टा सोना
20= कब्रिस्तान में हसना 21= पीने का पानी रात में खुला रखना
22= रात में सवाली को कुछ ना देना
23= बुरे ख्यालात करना
24= बगैर वजू के कुरआन पड़ना
25= इस्तंजा करते वक्त बाते करना
26= बगैर हाथ धोए खाना शुरू करना
27= अपनी औलाद को कोसना
28= दरवाजे पर बैठना
29= लहसुन प्याज के छीलके जलाना
30= फकीर से रोटी या फिर और कोई चीज खरीदना
31= फुक से चिराग बुझाना
32= बगैर बिस्मिल्लाह पडे़ खाना शुरू करना
33= झूठी कसम खाना
34= जूता चप्पल उल्टा देख कर सीधा नही करना 
35= हालात जनाबत मे हजामत करना 
36= मकड़ी का जाला घर में रखना 
37= रात को झाडू लगाना 
38= अन्धेरे में खाना 
39= घड़े में मुंह लगाकर पीना
40= कुरआन न पड़ना 

हदीस में है कि जो दूसरो का भला करता है । अल्लाह उसका भला करता है।                       
पड़ कर दुसरो को भी सुनाओ
[कुरआन ए पाक के 5 रुकू हर रोज पडने से साल मे 3 कुरआन ए पाक मुकम्मल हो जाती है , जब आप ये मेसेज आगे भेजने लगेंगे तो, शैतान आपको रोकेगा आपके ज़हन मे ख्याल डालेगा की अबी नही बादमे देखेंगे , पर आपने ईस साजीश को नाकाम करना है, इस मेसेज को आगे ईतना फैलाए जीतना आप कुरआन ए पाक से मोहब्बत करते हो👈🌹💐💐💐

Saturday, March 13, 2021

Fazaile Shabe Mearaz

મુસ્લિમ ના પાયા ના નિયમો

👉🏻 *શું આપણે* *ખરેખર મુસ્લિમ* *છીએ????* 
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⚡ *મુસ્લિમ ના પાયા ના નિયમો*
👉🏼, *નમાઝ પઢવી* 
👉🏼 *હમેશાં સાચું બોલવું*. 
👉🏼 *મહેનત ની કમાણી કરવી*
👉🏼, *નબળાં માણસ ઉપર અત્યાચાર ના કરવો, ના કરવા દેવો*. 
👉🏼 *,અલ્લાહ ઉપર સંપૂર્ણ ભરોસો રાખી માત્ર અલ્લાહ નો ડર રાખવો, દુનિયા થી ડરી ખોટું ના બોલવું કે ના ખોટા માણસ નો સાથ આપવો*. 
👉🏼 *પોતાના ફાયદા માટે અન્ય નું નુકસાન ન કરવું*. 
👉🏼, *દરેક માનવજાત સાથે સારો વ્યવ્હાર રાખવો* 
👉🏼, *અલ્લાહ દરેક ને હલાલ રોજી આપે છે તે વિશ્વાસ રાખી ઈમાનદારી થી ધંધો karvo. 👉🏼 ખોટું કરવું નહીં* 
👉🏼 , *પાડોશી સાથે ઉમદા વ્યવ્હાર રાખવો* 
👉🏼, *પોતાના બાળકો ને સાચું બોલવાની પ્રેરણા આપવી* 
, *પોતાના ઘર ને પાક સાફ રાખવું*
👉🏼, *સવારે વહેલું ઉઠવું* 
👉🏼 *દરેક વાતે અલ્લાહ નો શુક્ર અદા કરવો*
👉🏼 *કુરાન શરીફ પઢવું* 
👉🏼. *તકલીફ માં સબર કરવી* 
👉🏼. *,ખુશી મા ગરીબો ને મદદ કરવી* 
👉🏼, *બીમાર ની સંભાળ લેવી* 
👉🏼 *યતીમ ની સંભાળ લેવી* 
👉🏼 *બેવા ની સંભાળ લેવી* 
👉🏼 *રાહદારી ને જમાડવા*  
👉🏼 *હમેશાં પાક રહેવું, શક્ય તો બાવઝૂ રહેવું*  
👉🏼 *પોતાના મહોલ્લા માં હરામ કર્યો ના થવા દેવા, જેવા કે, દારૂ, જુગાર, નશીલા દ્રવ્યો નું વેચાણ કારણ કે આવી હરકત તમારી આવનારી પેઢી ને ગુમરાહ કરશે... ડર્યા વિના આ દુષણો નો વિરોધ કરવો.* 

*શું આ લક્ષણો છે આપણા માં?? જો હા તો સારું* 

*જો ના હોય તો પોતાની જાત ને બદલો પહેલા મુસલમાન હોવાના લક્ષણો કેળવો બાકી બધું આપો આપ થવા લાગશે.* 

આપણા બુજૂર્ગો માં આ ખાસિયાતો હતી જેથી તેઓની દરેક તકલીફ આસાન થઈ જતી અને તકલીફ માં અલ્લાહ તરફ થી ગેબી મદદ મળતી પણ આજે આપણને આપણી જાત ઉપર વધુ ભરોસો થઈ ગયો છે જેના પરિણામે આપણે તકલીફો ભોગવાંવી પડી રહી છે 

*હું કમાઉ છું* 
*હું ઘર બનાવીશ* 
*હું બાળકો ને મોટા કરીશ* 
*હું તકલીફ માંથી બહાર નીકળીશ* 
*હું મહેનત કરીને બધું મેળવી લઈશ* 

આ વિચાર આજના મુસલમાનો ને જીવતા ખાય ગ્યો છે એ યાદ રાખજો 

👉🏼 *જે છે તે બધું અલ્લાહ ની રહેમત છે એ વિચાર જ્યાં સુધી નહીં આવે કશું ફરક નહીં પડે* 

આપણે સવારે વહેલા ઉઠી બાળક ને તૈયાર કરી ને દુનિયા નું ઈલમ લેવા મોકલીએ છીએ પણ મદ્રાસએ તૈયાર કરીને નથી મોકલતા,ગુજારીશ છે બેય ઈલમ આપાે.આપણે જાતે ધર્મ થી દુનિયા ને વધુ મહત્વ આપીએ છીએ અને એજ આપણા બાળકો શીખે છે 

👉🏼. *સૌ પ્રથમ આપણા ધર્મ ને મહત્વ આપો , બિજાના ધર્મ ને માન આપાે અને લોકો સાથે સારો વ્યવ્હાર કરો* 

👉🏼. *એક સાચો મુસલમાન ક્યારેય ઝગડાલું નથી હોતો અને જે ઝગડાલું હોય છે તે સાચો મુસલમાન નથી હોતો*👈🏻. 

👉🏼 *દુનિયા ના આ સફર મા તકલીફ થાય ત્યારે એકાંત માં બેસી અલ્લાહ ને યાદ કરજો તરત મદદ મળશે .....*👈🏻👏🏼👏🏼👏🏼👏🏼

Friday, March 12, 2021

शबे मेराज मुबारक हो

आज क्यों ये आसमान सजाया जा रहा है
लगता है कोई मेहमान बुलाया जा रहा है
.
जन्नत मे क्यूँ खडी है सजधज के ये सवारी
ऐसा कौन है जिस के लिए फिजाओ को महकाया जा रहा है
.
किस की है आमद आज आसमानो पर
बहुत देर से चाॅद मुस्काराये जा रहा है
.
आज पैगंबर भी खडे सफ बांध के इन्तजार मे
वो कौन है जो पैगंबरो को नमाज पड़ाने आ रहा है
.
जो पुछा किसी ने कौन है वो खुदा से
खुदा ने कहा मेरा मेहबुब आ रहा है
.
*🌹शबे मेराज मुबारक हो,🌹*

Monday, March 8, 2021

दुआ

दुआ

🌼 ऐ मेरे परवरदिगार पुरी दुनीया मे जीतने लोग वफात पा चूके हे उनकी मगफीरत फरमा . . आमिन
🌼 उनहे कबर के अजाब से माफ फरमा . . . आमिन
जो बीमार हे या परेशान हे तू अपने करम से माफ फरमा
. . . आमिन
 🌼 ओर उनकी बीमारी ओर परेशानी को दूर फरमा. . . आमिन
🌼 ओर ऐ मेरे परवरदिगार जीसने मुझे ये दुआ भेजी हे उसके तमाम गुनाहो को माफ फरमा. . . . . आमिन
 🌼 ओर हर काम मे कामयाबी अता फरमा . . . आमिन
🌼 ओर उसके नसीब खोल दे. . आमीन 
🌼 अपने लीए जरूर दुआ करवाए नजाने कीसकी जुबान से आपकी तकदिर सवर जाए 
आपकी खास दुआऔ में गुनाहगार को याद रखना !
यह दुआ बोहोत प्यारी है , इसको सुकून से पढ़ो 
और दिल में आमीन कहो और इस msg को आगे 
फॉरवर्ड करो ,हो सकता है के दुसरे लोगो की 
आमीन से अपनी दुआ कबूल हो जाये ( आमीन )
ऐ अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ,
💧 ऐ सारी कायनात के शहंशाह ,
💧 ऐ सारी मख्लूक़ के पालने वाले ,
💧 ऐ ज़िन्दगी और मौत का फैसला करने वाले ,
💧 ऐ आसमानो और ज़मीनो के मालिक ,
💧 ऐ पहाड़ों और समन्दरों के मालिक ,
💧 ऐ इन्शानो और जिन्नातों के माबूद ,
💧 ऐ अर्श -ए -आज़म के मालिक ,
💧 ऐ फरिश्तों के माबूद ,
💧 ऐ इज़्ज़त और ज़िल्लत के मालिक ,
💧 ऐ बिमारियों से शिफ़ा देने वाले ,
💧 ऐ बादशाहों के बादशाह .
💧 ऐ अल्लाह हम तेरे गुनाहगार बन्दे हैं ,
💧 तेरे ख़ताकार बन्दे हैं ,
💧 हमारे गुनाहों को माफ़ फरमा ,
💧 हमारी ख़ताओं को माफ़ फरमा ,
💧 ऐ अल्लाह हम अपने अगले पिछले,सगीरा,कबीरा, छोटे, बड़े सभी गुनाहों और खताओं की और ना -फरमानियों की माफ़ी मांगते हैं ...
💧 ऐ अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त हम अपने गुनाहों 
से तौबा करते हैं .हमारी तौबा क़ुबूल करले ..
💧 ऐ अल्लाह हम गुनाहगार हैं ,
💧 सियाकार हैं , 
💧 बदकार हैं ,
💧 तेरे हुक्मो के ना -फरमान हैं ,
💧 ना -शुकरे हैं लेकिन मेरे माबूद तेरे नाम लेवा बंदे 
हैं तेरी तौहिद की गवाही देते हैं . 
💧 तेरे सिवा कोई इबादत के लायक़ नहीं है .
💧 तेरे सिवा कोई बंदगी के लायक नहीं है .
💧 तेरे सिवा कोई ताऱीफ के लायक नहीं है .
💧 हमारे माबूद हमारे गुनाह तेरी रेहमत से बड़े नहीं हैं .
💧 तू अपनी रहमत से हमें माफ़ करदे 
💧 ऐ अल्लाह पाक हमें गुमराही के रास्ते से हटा कर सिरातल मुस्तक़ीम के रास्ते पे चलने वाला बना दे 
💧 ऐ अल्लाह ऐसी नमाज़ पढ़ने की तौफ़ीक़ अत कर जिस नमाज़ से तू राज़ी हो जाये ,
💧 ज़िंदगी में ऐसे नेक अमल करने कि तौफ़ीक़ अता कर जिन अमालोंसे तू राज़ी हो जाये .
💧 हमें ऐसी ज़िन्दगी गुज़ारने की तौफ़ीक़ अता कर जिस ज़िंदगी से तू राज़ी हो जाये .
💧 ईमान पे ज़िंदा रख और ईमान पे ही मौत अता कर .
💧 ऐ अल्लाह हमें तेरे हुक्मों की फ़र्माबरदारी करने वाला बना ..
💧 और तेरे प्यारे हबीब जनाबे मोहम्मद रसूलुल्लाह (सलल्लाहो 
ता 'आला अलैहि वस्सल्लम ) के नेक और पाकीज़ा तरीकों को अपनी ज़िन्दगी में लाने वाला बना .
💧 ऐ अल्लाह हमारी परेशानियों को दूर करदे ,
💧 ऐ अल्लाह जो बीमार हैं उन्हें शिफ़ा -कामिला अता फरमा .
💧 ऐ अल्लाह जो क़र्ज़ के बोझ से दबे हुए हैं उनका क़र्ज़ जल्द से जल्द अदा करवा दे ,
💧 ऐ अल्लाह शैतान से हमारी हिफाज़त फरमा 
💧 ऐ अल्लाह इस्लाम के दुश्मनों का मुँह काला कर ,
💧 ऐ अल्लाह हलाल रिज़्क़ कमाने कि तौफ़ीक़ अता फरमा ,
💧 ऐ परवर्दिगार- ए -आलम हमें माँगना नहीं आता लेकिन तुझे देना आता है तू हर चीज़ पे क़ादिर है ..
💧 ऐ अल्लाह जो मांगा वो भी अता फरमा जो मांगने से रह गया वो भी इनायत फरमा ...
💧 हमारी दुआ अपने रहम से अपने करम से क़ुबूल फरमा .और जिसने ये दुआ भेजी है और इसे आगे बढ़ा रहा है उसकी सारी परेशानियों,तकलीफ़ों,बिमारियों को दूर फरमा और सेहत तंदरूस्ती अता 
कर .आमीन आमीन  आमीन

इस्तिबरा क्या है ?*

*इस्तिबरा क्या है ?*

नौजवान लाज़मी पढ़ें

*इस्तिबरा पेशाब के मुकम्मल खुश्क करने को कहते हैं। यह वाजिब है*

*जिस तरह नमाज़ में कोई वाजिब छूट जाए तो नमाज़ सज़दा सहू के बिना मुकम्मल नही होती ऐसे ही अगर पेशाब करने के बाद उसको मुकम्मल खुश्क न किया जाए तो तहारत कामिल नही होती*


*तहारत कामिल नही तो*

*वुज़ू कामिल नही*

*वुज़ू कामिल नही तो*

*नमाज़ नही होती*


*रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैही व सल्लम ने फरमाया:-*
मेरी उम्मत के अक्सर लोगो की इबादतें उनकी तहारत की वजह से मुंह पर दे मारी जाएगी अक्सर अज़ाबे क़ब्र पेशाब की बे एहतियाती की वजह से होगा,

पुराने वक़्तों में लोग खुश्क मिट्टी इस्तेमाल करते थे पेशाब को खुश्क करने के लिए।

आज कल *95% फीसद* मर्द व ख्वातीन बिना खुश्क किए ही पेशाब, जल्दी बाजी में पानी बहा कर कपड़े पहन लेते हैं वहीं नापाक पानी फिर कपड़ों को लगता है।

क्यूंकि पानी की टोटी बन्द कर भी दें तो थोड़े थोड़े क़तरे निकलते रहते हैं कुछ वक़्त तक।
यहीं हाल इंसानी जिस्म के *urinary bladder* का है।


*पेशाब की नाली जो की ख्वातीन की निसबत मर्दों में क़दरे बड़ी होती है उसके अंदर कुछ क़तरे राह जाते हैं जैसे ही मर्द या औरत खड़े होते हैं तो Pelvic Muscles रिलैक्स होते हैं और पेशाब के क़तरे जो नाली में थे बाहर की तरफ आते हैं, लिहाज़ा जल्द बाजी न करें, फौरन खड़े न हों, इस बात का यकीन कर लें की आपका मसानह मुकम्मल तौर पर खाली हो चुका है। नाली में फसे क़तरे निकालने के लिए मसनुई तौर पर जान बूझ कर खाँसी करें इससे mascle रीलैक्स होंगे और बाई पांव पर जोर दें दो से तीन दफा, फिर टिसू पेपर से पेशाब खुश्क करके पानी इस्तेमाल करें फिर दोबारा टिसू पेपर इस्तेमाल कर लें तो बेहतर, ना करें तो कोई हर्ज नही अब जो पानी कपड़े को लगेगा वह नापाक नही होगा।*

हम सब कम वक़्त और जल्द बाजी इसी मुआमले में करते हैं, *जो बुनियाद है रूह की पाकीज़गी की, कल्ब के सुकून की।*
फिर कहाँ से इबादतों में लज़्ज़त और सुकून आए जब तहारत ही मुकम्मल ना हो तो।

आज के दौर में *खुश्क मिट्टी की जगह सॉफ्ट टिसू* इस्तेमाल किया जा सकता है।

लेकिन याद रहे *पानी का इस्तेमाल लाज़मी है* सिर्फ टिसू से खुश्क करना ठीक नही है।

*अल्लाह तआला फरमाता है*
*أن اللّه يحب المتطه‍رين*

बेशक अल्लाह तहारत करने वालों से मुहब्बत करता है।

*यहीं वजह है कि हमारी ख्वातीन, बच्चे, मर्द, औरत सब परेशानियों में मुब्तला हैं, जिन्नात, शयातीन के लिए पेशाब की बू और आमेज़िश वाले पानी का एक क़तरा भी काफी होता है जिस पर वह सारा दिन जादू पढ़ पढ़ इंसान के कानों में फूंकते हैं और उसके रूह और दिल को बेकरार रखते हैं, गुस्सा, हसद,बुग्ज़ इन सब की जड़ कामिल तहारत का न होना है।*

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माहे रजब की अज़मत व फ़ज़ीलत

 माहे-रजब में दिन में रोज़ा रखने और रात में इबादत करने का सवाब सौ साल के रोज़े रखने के बराबर होता है… हो सके, तो इबादत करें… पता नहीं अगली मर्तबा ये मौक़ा मिले या न मिले…अल्लाह हम सबको राहे-हक़ पर चलने की तौफ़ीक़ अता करे… आमीनरजब इस्लामी साल का सातवां महीना है. यह बड़ा अज़मत वाला महीना है और इसमें नेकियों का सवाब दोगुना हो जाता है. रसूलुल्लाह सल्ललाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि रजब अल्लाह का महीना है, शाबान मेरा महीना है और रमज़ान मेरी उम्मत का महीना है. इस महीने में अल्लाह तआला अपने बंदों पर बेशुमार रहमते और मग़फ़िरत की बारिश करता है. इस माह में बंदों की इबादतें और दुआएं क़ुबूल की जाती हैं.

रजब को ताजीम यानी आदर का माह कहा जाता है. इस महीने की ताज़ीम करे, गुनाहों से दूर रहें, तौबा अस्तग़फ़ार करते रहें, अल्लाह तआला की इबादत करें, सदक़ा और ख़ैरात ज़्यादा ज़्यादा करें.हज़रत सैयदुना अल्लामा सफ़्फ़ुरी रहमतुल्लाह अलैह रमाते हैं- रजब-उल-मुरज्जब बीज बोने का, शाबान-उल-मुअज़्ज़म आब-पाशी (यानि पानी देने) का और रमज़ान-उल-मुबारक फ़सल काटने का महीना है. लिहाज़ा जो रजब-उल-मुरज्जब में इबादत का बीज नहीं बोता और शाबान-उल-मुअज़्ज़म में आंसुओं से सैराब नहीं करता, वह रमजान-उल-मुबारक में फ़सले-रहेमत क्यूं कर काट सकेगा? मज़ीद फ़रमाते हैं : रजब-उल-मुरज्जब जिस्म को, शाबान-उल-मुअज़्ज़म दिल को और रमज़ान-उल-मुबारक रूह को पाक करता है. (Nuzhat-ul-Majalis, jild 1, safha 209)अल्लाह तआला के नज़दीक 4 महीने खुसूसियात के साथ हुरमतवाले हैं. जुल कदा, जुल हिज्जाह, मुहर्रम और रजब. हज़रत सैयदुना अनस रज़िअल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्ललाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया- जिसने माहे-हराम (यानी हुरमतवाले महीने में) में तीन दिन जुमेरात, जुमा और हफ़्ता (यानि सनीचर) का रोज़ा रखा, उसके लिए दो साल की इबादत का सवाब लिखा जाएगा. (Al Mu’jam-ul-Awsat lit-Tabrani, jild 1, safha 485, Hadees 1789)

हज़रत सैयदुना अनस बिन मालिक रज़िअल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्ललाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया- जन्नत में एक नहर है, जिसे रजब कहा जाता है, जो दूध से ज़्यादा सफ़ेद और शहद से ज़्यादा मीठी है. जो कोई रजब का एक रोज़ा रखे, तो अल्लाह तआला उसे इस नहर से सैराब करेगा. (Shu’ab-ul-Iman, jild 3, safha 367, Hadees 3800)ताबई बुज़ुर्ग हज़रत सैयदुना अबु क़िलाला रज़िअल्लाहु अन्हु फ़रमाते हैं- रजब के रोज़ादारों के लिए जन्नत में एक महल है. (Shu’ab ul-Imaan, jild 3, safha 368, Hadees 3802)

हज़रत नूह अलैहिस्सलाम ने भी रजब का रोज़ा रखाहज़रत सैयदुना अनस रज़िअल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्ललाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया-  जिसने रजब का एक रोज़ा रखा, तो वह एक साल के रोज़ों की तरह होगा. जिसने सात रोज़े रखे, उसपर जहन्नुमम के सातों दरवाज़े बंद कर दिए जाएंगे. जिसने आठ रोज़े रखे, उसके लिए जन्नत के आठों दरवाज़े खोल दिए जाएंगे. जिसने दस रोज़े रखे, वह अल्लाह से जो कुछ मांगेगा अल्लाह तआला उसे अता फ़रमाएगा. और जिसने 15 रोज़े रखे, तो आसमान से एक मुनादी निदा (यानी ऐलान करने वाला ऐलान) करता है कि तेरे पिछले गुनाह बख़्श दिए गए, तू अज़ सर-ए-नौ अमल शुरू करके तेरी बुराइयां नेकी से बदल दी गईं. और जो ज़्यादा करे, तो अल्लाह उसे ज़्यादा दे. और रजब में नूह अलैहि सलाम कश्ती में सवार हुए, तो ख़ुद भी रोज़ा रखा और हमराहियों को भी रोज़े का हुक्म दिया. उनकी कश्ती 10 मुहर्रम तक 6 माह बरसरे-सफ़र रही. (Shu’ab-ul-Iman, jild 3, safha 368, Hadees 3801)

परहेज़गारी से एक रोज़ा रखने की फ़ज़ीलतहज़रत शेख़ अब्दुल हक़ मुहद्दिस देहलवी रहमतुल्लाह अलैह नक़ल करते हैं कि सुल्ताने-मदीना सल्ललाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया- माहे रजब हुरमत वाले महीनों में से है और छठे आसमान के दरवाज़े पर इस महीने के दिन लिखे हुए हैं. अगर कोई शख़्स रजब में एक रोज़ा रखे और उसे परहेज़गारी से पूरा करे, तो वह दरवाज़ा और वह (रोज़ेवाला) दिन उस बंदे के लिए अल्लाह तआला से मग़फ़िरत तलब करेंगे और अर्ज़ करेंगे- या अल्लाह तआला इस बंदे को बख़्श दे और अगर वह शख़्स बग़ैर परहेज़गारी के रोज़ा गुज़ारता है, तो फिर वह दरवाज़ा और दिन उसकी बख़्शीश की दरख़्वास्त नहीं करेंगे और उस शख़्स से कहते हैं- ऐ बंदे तेरे नफ़्स ने तुझे धोका दिया. (Ma-Sabata bis-Sunnah, safha 234, fazail Shahr-e-Rajab-lil Khallal, safha 3-4)रसूले-अकरम ने फ़रमाया है कि रजब का महीना ख़ुदा के नज़दीक अज़मत वाला महीना है. इस माह में जंग करना हराम है. रिवायत है कि रजब में एक रोज़ा रखने वाले को ख़ुदा की ख़ुशनूदी हासिल होती है . ख़ुदा का ग़ज़ब उससे दूर हो जाता है और जहन्नुम के दरवाज़े में एक दरवाज़ा उसके लिए बंद हो जाता है.

 

इमाम मूसा काजिम (अस ) फ़रमाते हैं कि रजब माह में एक रोज़ा रखने से जहन्नुम की आग एक साल की दूरी तक हो जाती है. जो इस माह में तीन रोज़े रखे, तो उसके लिए जन्नत वाजिब हो जाती है .इमाम जाफ़र सादिक़ (अलैहिस्सलाम) से रवायत है कि रसूले-अकरम ने फ़रमाया कि रजब मेरी उम्मत के लिए अस्तग़फ़ार का महीना है. इसलिए इस माह ख़ुदा से ज़्यादा से ज़्यादा मग़फ़िरत चाहो. ख़ुदा बड़ा मेहरबान है.रसूले-अकरम फ़रमाते हैं कि रजब को असब भी कहते हैं, क्योंकि इस माह में ख़ुदा कि रहमत बहुत ज़्यादा बरसती है. इसलिए इस माह कसरत से अस्तग़फ़ार भेजो. जो इस माह के आख़िर में एक रोज़ा रखेगा, ख़ुदा उसको मौत की सख़्तियों, मौत के बाद की हौल्नकी और क़ब्र के अज़ाब से महफूज़ रखेगा.जो इस माह के आख़िर में दो रोज़े रखेगा, वह पुले-सरात से आसानी से गुज़र जाएगा.जो तीन रोज़े रखेगा, उसे क़यामत की सख़्तियों से महफूज़ रखा जाएगा और उसको जहन्नुम की आज़ादी का परवाना अता होगा.

Saturday, March 6, 2021

અલ્લાહ બહોત બડા હૈ

खुदकुशी इस्लाम में हराम है

*#खुदकुशी*

कई दिन से फेसबुक पर उस लड़की की वजह से एक ऊधम बरपा है....हर कोई उसे मज़लूम और लाचार साबित करने पर तुला है...
हालांकि.......

खुदकुशी करने वाला कितना ही मज़लूम और बेबस क्यूं ना हो..... किसी तौर पर क़ाबिले हमदर्दी नहीं हो सकता... क्यूंकि खुदकुशी इस्लाम में हराम है और हराम का इर्तिकाब करने वाले की हौसला शिकनी करनी चाहिए.....
            कितनी मज़लूम थी?
            कितनी लाचार थी? 
            कैसे हालात थे?

खातूने जन्नत फातिमा ज़हरा رضی اللہ عنہا से ज़्यादा मुश्किल हालात थे क्या?.... जिनके हाथ चक्की पीसने के सबब गट्टे पड़े थे- जिस्म पर मशकीज़े के निशान....
जिनकी हमनाम थी अम्मा आयशा सिद्दीक़ाرضی اللہ عنہا
से ज़्यादा उस पर इल्ज़ामात लग रहे थे जो सह ना सकी..
उम्माहातुल मोमिनीन के घर तो महीने भर चूल्हा भी ना जलता था.... यहां ज़रा सी मुश्किल आई नहीं और हम खुदकुशी करने पे फौरन आमादा हो जाते हैं.... क्यूंकि मुआशरा (समाज) ऐसे लोगों को हीरो बनाता है... मीडिया यही कुछ दिखाता और ज़हन बनाता है...
जब इंसान वही की तालीमात से महरूम हो जाए तो यही कुछ करता है...जो इस लड़की ने किया...
ज़िंदगी अल्लाह तआला की ना सिर्फ एक नेमत बल्कि हमारा पूरा जिस्म हमारे पास अमानत है...इसे हम अपनी मर्ज़ी से खत्म नहीं कर सकते...इस्लाम की तालीमात मुश्किलात का मुक़ाबला करना....मसाइबो आलाम में सब्र करना है... और अल्लाह तआला सब्र करने वालों के साथ होता है...

याद रखना मेरी बहनों कि कोई भी परेशानी आए तो सब्र करना इसका बदला दुनियां में नहीं मिला तो आखिरत में ज़रूर मिलेगा..वरना आखिरत की परेशानी इससे भी कहीं बढ़कर हो सकती है जिसका तसव्वुर भी मुश्किल है
कुछ भी हो जाए लेकिन खुदकुशी ना करना 
याद रखना ये जान खुदा ए पाक की अमानत है
अफसोस है आयशा की अक़्ल पर कि एक मर्तबा शौहर ने कहा तो उसके कहने से जान दे दी-
लेकिन वालिदैन हाथ जोड़कर रो रो कर अपनी बेबसी से खुशामद करते रहे लेकिन एक नहीं सुनी- जिसकी मुहब्बत हक़ीक़त थी उसकी बात नहीं मानी और जिसको मुहब्बत नहीं नफरत थी उसके लिए जान निछावर कर दी...
अफसोस सद अफसोस.....!!

पेशेवर भिखारियों के लिए सख़्त मज़म्मत और वईद

एक सामाजिक बीमारी *(भीख मांगने)* का इलाज....!

इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ *25% भिखारी मुसलमान हैं* यानी *हर चौथा भिखारी मुसलमान है* और मुसलमानों का एक बड़ा तबक़ा भीख मांग कर ज़िंदगी गुजारता है।
  उनमें से अक्सर पेशेवर भिखारी हैं जो बावजूद सेहतमंद होने के भीख मांग कर कमाते हैं , ऐसा लगता है कि पेशेवर भिखारियों का यह गिरोह इसको एक आसान और सहूलत बख़्श कमाई का जरिया समझते हैं।

इस्लाम में चूंकि सदक़ा ख़ैरात की बहुत एहमियत है और साइल को देने की ताकीद है इसलिए अमूमन लोग उनको कुछ न कुछ दे ही देते हैं, और यह रोज़ के हिसाब से 500 से 1500 तक कमा लेते हैं।
जबकि आप उनको बोलो के काम करो या यहां काम है डेली 200/300 रुपये मिलेंगे तो यह मुंह बसोरते हुए बड़बड़ाते निकल जाते हैं ; लेकिन काम करने पर राज़ी नहीं होते,  ऐसे लोगों को हम ही लोग भीख देकर निठल्ले, कामचोर और मुफ्तखोर बनाते हैं।

*हदीस में ऐसे पेशेवर भिखारियों के लिए सख़्त मज़म्मत और वईद आई है* कि भीख मंगे जहन्नम की चिंगारियों में इज़ाफ़ा कर रहे हैं और कियामत में उनके चेहरे बिगड़े हुए होंगे।
रसूलुल्लाह ﷺ के पास कोई मांगने आता तो आप ﷺ उसे लकड़ियां काट कर बेचने और कामधंधा कर खाने की हिदायत फरमाते।
आप ﷺ ने फरमाया के जंगल से लकड़ियों का गठ पीठ पर लाद बेचो, लोगों के सामने हाथ फैलाने से बेहतर है।
हुज़ूर ﷺ ने तो सहाबा से अहद लिया था कि किसी से सवाल न करें यहां तक कि कोड़ा गिर जाए वह भी किसी से न मांगे।

*इसलिए अब से पेशेवर भिखारियों को देना बंद कर उनका हौसला तोड़े। अगर हमारी क़ौम को इस लानत से बचाना है तो हमें उनमें मेहनत मजदूरी का मिज़ाज पैदा करना होगा और यह जभी होगा जब हम बिल्कुल उनको भीख देना बंद कर दे।*