Monday, July 27, 2020

દુઆ એ ઇસ્મે-આઝમ



દુઆ એ ઇસ્મે-આઝમ


એક હદીસમેં આયા હય કે હઝરત યુનુસ અલયહિસ્સલામકો જબ મછલીને ખા લિયા / નિગલ લિયા ઉસકે પેટમેં ઉનકી યે દુઆ થી. બાઝ અહાદીસમેં ઇસ્કો ઇસ્મે-આઝમ બતાયા ગયા હય.


તિરમિઝી શરીફમેં હય કે આં હઝરત સલ્લલ્લાહુ અલયહિ વસલ્લમને ફરમાયા હય કે જબ કોઈ મુસલમાન ઇસ આયાતે શરીફકો પળ્હ કર દુઆ માંગે ઉસ્કી દુઆ અલ્લાહ તઆલા ઝરૂર કુબુલ ફરમાતા હય.


લા ઇલાહ ઈલ્લા અન્ત

   સુબહાનક ઇન્ની કુત્નુ 

   મિનઝ ઝાલિમીન

તરજુમા:- અય અલ્લાહ તેરે સિવા કોઈ મઅબુદ નહીં. તૂ પાક હય. બેશક મેં (ગુનાહા કરકે) આપની જાન પર ઝુલ્મ કરનેવાલોમેં સે હું.


 

 

colored background with feather like doodles


Sunday, July 26, 2020

Mahar ka Bayaan

*करीना-ए-जिन्दगी #19*
 بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
*♦️महर का बयान*
इस जमाने में ज़्यादातर लोग यही समझते कि महर देना कोई ज़रूरी नहीं बल्कि सिर्फ़ एक रस्म है,और कुछ लोगों का ख़्याल है कि महर तलाक के बाद ही दिया जाता है! और कुछ लोग समझते हैं कि महर इसलिए रखते है कि औरत को महर देने के ख़ौफ से तलाक़ नही दे सकेगा।
         यही वजह है हमारे मुल्क में ज़्यादा तर लोग महर नही देते यहां तक के इन्तिक़ाल के बाद उनके जनाज़े पर उनकी बिवी अाकर महर माफ करती है। वैसे औरत के माफ कर देने से महर माफ तो हो जाता है, लेकिन महर दिए बगै़र दुनिया से चले जाना मुनासीब नही,खुदा न ख्वासता पहले औरत का इंतिक़ाल हो गया और अगर वह माफ न कर सकी, या महर माफ करने की उसे मोहलत न मिली तो हक्कुल-अब्द मे गिरफ्तार और दिन व दुनियॉ मे रुसवा शर्मसार होंगा! और रोजे क़यामत में सख़्त पकड़ और सख़्त अ़ज़ाब होंगा! 
लिहाजा इस खतरे से बचने के लिए महर अदा कर देना चाहिए। इस मे सवाब भी है और यह हमारे आक़ा ﷺ की सुन्नत भी है
*हमारा रब जल्ला जलालाहु इरशाद फरमाता है।*
*तर्जुमा:-* "और औरतों को उन के महर खुशी से दो"
*📓कन्जुल इमान, सूरए निसा,आयत नं 4*
*तर्जुमा:-* तो जीन औरतो को  तुम निकाह मे लाना चाहो उनके बंधे हुए महर उन्हे दो"
*📓कन्जुल इमान, सूरए निसा,  आयत नं 24*
*मसअला:-* औरत अगर होश व हवास मे राजी खुशी से महर माफ कर दे तो हो जाएंगा! हॉ अगर धमकी देकर माफ कराया और औरत ने मारे खौफ के माफ कर दिया तो इस सुरत मे माफ नही होंगा! और अगर मरजुल-मौत मे माफ कराया, जैसा के अवाम मे राईज (रिवाज) है की जब औरत मरने लगती है, तो उससे महर माफ कराते है, तो इस सुरत मे वारीसो की इजाजत के बगैर माफ नही होंगा!
*फतावा आलमगिरी जिल्द 1 सफा नं 293, दुर्रे मुख्तार मआ शामी जिल्द 2 सफा 338*
*👉🏻जेहालत*
अक्सर मुसलमान अपनी हैसियत से ज़्यादा महर रखते है और यह ख़्याल करते हैं। कि *"ज़्यादा महर रख भी दिया तो क्या फ़र्क़ पड़ता है देना तो है ही नही"* यह सख़्त जेहालत है और दीन से मजाक़ है! ऐसे लोगों इस हदिस को पढ कर इबरत हासील करे!
*हदीस:-* अबु याला व तबरीनी व बैहकी मे हजरत उक्बा बिन आमीर रदि अल्लाहु तआला से मरवी है के हुजुर अक्दस ﷺ ने इरशाद फरमाया
_"जो शख्स निकाह करे और नियत यह हो की औरत को महर मे से कुछ ना देगा तो जिस रोज मरेंगा जानी (जिना करने वाला) मरेंगा!_
*📓अबु याला, तबरानी व बैहकी बहवाला बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा नंबर 7 सफा नं 32*
लिहाजा महर इतना ही रखे जितना देने की हैसियत है और महर जितना जल्दी हो सके अदा कर दे। के यही अ़फज़ल तरीक़ा है।
*रसूले मक़बूल ﷺ ने इरशाद फरमाया:-*_"औरतों में वह बहुत बेहतर है जिसका हुस्न व ज़माल (खूबसूरती) ज़्यादा हो और महर कम हो।_
*इमाम ग़ज़ाली रदिअल्लाहो तआला अन्हा फरमाते है:-*"बहुत ज़्यादा महर बांधना मक़रूह है लेकिन हैसियत से कम भी न हो।
*📓कीम्या-ए-सआ़दत, सफा नं 260*
कुछ लोग कम से कम महर बांधते है, और दलील यह देते है के रुपयो पैसो से क्या होता है! दिल मिलना चाहीये, यह भी गलत है! महर की अहमियत को घटाने के लिए अगर कोई कम महर बांधे तो यह भी ठिक नही है! औरतो को अपना महर ज्यादा लेने का हक है! और इस हक से उनको कोई मर्द रोक नही सकता!
_✍🏻 बाक़ी अगली पोस्ट में..ان شاء الله_
●•●┄─┅━━━━━★✰★━━━━━┅─●•●
मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
●•●┄─┅━━━━━★✰★━━━━━┅─●•●

QURBANI KA TARIKA/JANKARI

Qurbani Ka Tarika
अस्सलामो अलैकुम भाइयो और बहनो इस पोस्ट में हम जानेंगे क़ुर्बानी का तरीका ( Qurbani Ka Tarika ) और क़ुरबानी से रिलेटेड कई सवालों के जवाब जैसे –

क़ुर्बानी क्या है ?
कुरबानी किसके लिए होनी चाहिए ?
फ़जीलत क्या है ?
नमाज़ और कुरबानी का हूक्म
कुर्बानी का जानवर केसा हो
क़ुर्बानी का तरीका – Qurbani Ka Tarika ?
कुरबानी के गोश्त का क्या करना चाहिए ?
कुरबानी के बाल सींग और खुर भी नामए आमाल मे 
क़ुर्बानी किस पर वाजिब हैं ?
क़ुरआन और हदीस की रौशनी में देखते है की यह क़ुर्बानी क्या है ? और क़ुर्बानी का तरीका क्या है  Qurbani Kya Hai ? Or Qurbani Ka Tarika Kya Hai ?

इसकी हकीकत और फ़जीलत क्या है ? ताकि हमारी कुरबानी वाकई क़ुर्बानी बन सके महज़ एक रस्म बन कर न रह जाए

क़ुर्बानी क्या है ? Qurbani Kyqa Hai ?
उश्र, ज़कात, और फित्रा  की तरह क़ुर्बानी भी एक माली इबादत है । (जो मालदारों पर वाजिब है ।) और हज़रत इबराहीम अलैहिस्सलाम की सुन्नत भी है । जो इस उम्मत के लिए (हमेशा) बाकी रखी गई है ।

क़ुर्बानी किसे कहते हैं ? Qurbani Kise Kahte Hai ?
खास जानवर को मख़सूस दिनो और वक़्तों में अल्लाह तआला की रजा के लिए सवाब की नियत से ज़ब्ह करने को कुर्बानी कहते है

You Also Read –

Takbeer-e-Tashreeq
Jilhijja Ke 10 Dino Ki Fazilat
कुरबानी किसके लिए होनी चाहिए ? Qurbani Kiske Liye Hona Chahiye ?
“आप कह दीजिए बेशक मेरी नमाज़ और मेंरी कुरबानी और मेरी जिन्दगी और मेरी मौत सिर्फ अल्लाह तआला के लिए ही है ! और जो तमाम जहानो का परवरदिगार है ! (सूरए अनआम)

इस आयते मुबारका ने वाज़ेह तौर पर बता दिया कि एक मुसलमान की पूरी” जिन्दगी सिर्फ और सिर्फ अल्लाह तआला के लिए ही होती है ! मुसलमानो की हर इबादत सिर्फ उसी जात के लिए होती है जो उसका ख़ालिक़ व मालिक है !


कुरबानी भी जो एक अहम तरीन इबादत हैं ! और जिसके ज़रिए इंसान अपने रब’का तक़र्रूब हासिल करता है !वह भी महज़ रजाए मौला के लिए करनी चाहिए !

इसके अलावा न तो यह कुरबानी किसी बुत या बुजुर्ग के नाम पर हो न ही इसका ‘मकसद लोगों को दिखलाना या शौहरत हो वर्ना कुरबानी का सवाब और मकसद दोनो’ बर्बाद हो जाएंगे !

आज कल रिवाज़ है कि बाज़ मालदार लोग कीमती जानवर ख़रीदते हैं ! और फिर अखबारात व्हाट्सएप्प फेसबुक और सोशल मिडिया पर एहतिमाम से यह खबर और तस्वीर शेयर करते है ! इस दिखावे से हमें बचने  की कोशिश करनी चाहिए ! कहीं हमारी क़ुरबानी जाय ना हो जाए !

रब्बे करीम हम सबकी कुरबानी क़ुबूल अता फरमाए !

अल्लाह तआला को तुम्हारें दिल का तक़वा चाहिए 
अल्लाह तआला को उऩ ( कूरबानियाे ‘) का गाेश्त और खून नही पहुँचता लेकिन उसको तुम्हारे दिल का तक़वा पहूँचता है ! ( सूरए हज )

इस आयत में कुरबानी का अस्ल फलसफा बयान फरमाया यानी जानवर को ज़िबह कर के महज़ गोश्त खाने खिलाने या उसका  खुन’ गिराने से तुम अल्लाह की रजा कभी हासिल नही कर सकते !  न यह गाेश्त और खून उठकर उसकी ” चारगाह तक पहुंचता है !

उसके यहां तो तुम्हारे दिल का तक़वा और अदब पहूंचता है ! कि केसी खुश दिली और जोशे मुहब्बत के साथ एक कीमती और नफीस चीज़ उसकी इजाज़त से उसके नाम पर कुरबान कर दी ! गोया इस कुरबानी से जाहिर कर दिया कि हम खुद भी तेरी राह मे इसी तरह कुरबान होने के लिए तय्यार है । – माखूज़ अज़ फवाएदे उस्मानी –

नमाज़ और कुरबानी का हूक्म एक साथ – Qurbani Ka Hukm
“बेशक हमने आपको कौसर अता की, पस आप अपने रब के सामने नमाज़ पढ़े ! और ” कुरबानी (Qurbani) करें ! बिला-शुबहा आपका दुश्मन ही बेनिशान होने वाला है !

( सूरए कौसर) 

दीने इस्लाम में नमाज़ को जाे कुछ मकाम व मरतबा है उससे हर मुसलमान बखूबी वाकिफ़ है ! यही दीन का सुतून और मोमिन की  मेराज है ! यही काफिर और मोमिन के दर्मियान फ़र्क़ करने वाली चीज है !

इसी तरह माली इबादात में कुरबानी का एक खास मकाम है !  क्यों कि अस्ल तो यह था कि अपने जान और माल” की कुरबानी दी जाती ! और बवक़्ते जरुरत हर मुसलमान दीने इस्लाम के लिए यह सब कूछ कुरबान कर देता ! लेकिन आम हालात मे जिलहिज्जह की दसवीं तारीख़ को हज़रत इब्राहीम व इस्माईल अलेहिस्सलाम की यादगार में जानवर जिबह करने को ही काफी करार दे दिया ! इस आयते मुबारका में दोनो’ का हुक्म एक साथ दिया जा रहा है ! जिसेसे कुरबानी की अज़मत का अंदाजा लगाया जा सकता है !

कुरबानी के गोश्त का क्या करना चाहिए ? 
‘ ‘ पस  जब वह जानवर अपने पहलू पर गिर जाए ( यानी जिबह मुकम्मल हो जाए ) तो उससे खुद भी खाओ और खिलाओ उनको जाो सब्र किए बैठे है ! और उनको मी जो बेकरारी जाहिर करते हैं’ ! ( यानी सवाल करते है ‘) इसी तरह हम ने उन जानवरो’ को तुम्हारें काबू में दे दिया है ताकि तुम शुक्र अदा करो !( सूरए हज )

इस आयत से मालूम हुआ कि जानवरों से खुद खाना जाइज़ और दुरुस्त है ! बल्कि अगर सारा गोश्त खुद ही रख ले तो यह भी जाइज़ है ! लेकिन पसंदीदा नहीं ! उलमा फ़रमाते हैं कि गोश्त के तीन हिस्से करने चाहिए !

एक अपने घर में रख दो ! दूसरा करीबी रिश्तेदारों में तक्रसीम कर-दे ! और तीसरा हिस्सा ” गरीब और कमजोर लोगों ‘कों दे दे ! इस तरह एक कुरबानी से सिलए रहमी और मसाकीन की इमदाद करने जैसै अजीम फवाएद और नेकियां भी समेट सकता है !

आखिर में फ़रमाया कि गोश्त ज़रूर खाओ ! मगर साथ अपने रब का शुक्र अदा करो ! ताकि नेमतों में मजीद इजाफा हो ! फिर यह भी देखो कि कितने ताक़तवर जानवरों को तुम कितनी आसानी  से -ज़िबह कर लेते हो !यकीनन यह अल्लाह करीम ही की जात है जिसने तुम्हें उन पर क़ाबू दे दिया है ! इस लिए उसका दिल से खूब शुक्र अदा करो।

कुरबानी के बाल सींग और खुर भी नामए आमाल मे 
हज़रत आएशा रज़ियल्लाहु अन्हा से रिवायत है ! कि नबी करीम सल्लललाहो  अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया: कुरबानी के दिन ( दस जिलहिज्जह. को  ) कोई नेक अमल अल्लाह तआला के नज़दीक कुरबानी का खून बहाने से बढ़ कर महबूब और पसंदीदा नहीं और कयामत के दिन कुरबानी करने वाला अपने जानवर के बालों, सींगों और खूरो  को ले आएगा “( और यह चीजे सवाबे अजीम मिलने का ज़रिया बनेंगी)

नोज़ फ़रमाया कि कुरबानी का खून ज़मीन पर गिरने से पहले अल्लाह तआला के नज़दीक शरफ़े कूबूलियत हासिल कर लेता है लिहाजा तुम खुशदिली के साथ कुरबानी किया करो । ‘ ‘ ( तिरमिजी शरीफ )

हज़रत इब्ने अब्बास रजियल्लाहू तआलाअन्हुमा फरमाते है’ कि रसूलअल्लाह  सल्लललाहो अलैहि वसल्लम ने बकरईद के दिन फरमाया कि आज के दिन कोई शख्स कुरबानी से बेहतर अमल नहीं कर सकता ! सिवाए यह कि सिला रहमी करे ( याद रहै कि सिला रहमी नफ़्ली कुरबानी का बदल तो हो सकती है वाजिब  कुरबानी का नहीं ) (तबरानी)

Qurbani Se Releted Kuch Hadeese – 
अल्लाह तबारक वतआला इरशाद फरमाता है (तरजमा) “अपने रब के लिए नमाज़ पढो ! और क़ुर्बानी करो !( अल कौसर 2 ” 108 )”

हुजूरे अकरम नूरे मुजस्सम सय्यदे आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया “कि कुर्बानी के दिनों में इब्ने आदम का कोई अमल (काम) खुदाए तआला के नज़दीक खून बहाने ( कुर्बानी करने ) से ज्यादा प्यारा नहीं ! (तिर्मिंजी)

और फरमाते हैं सरकारे दो आलम सल्लल्लाहुअलैहि वसल्लम -“कि जिसने खुश दिली और तालिबे सवाब होकर कुर्बानी की ! वो जहन्नम की आग से पर्दा हो जाएगा ।” (तिबरानी)

और फामाते है सरकारे दो आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम -“जिसने जिलहिज्जा का चांद देख लिया और उसका इरादा कुर्बानी करने का है तो जब तक कुर्बानी न कर ले तब तक बाल नाखुन न तरशवाए ! (मुस्लिम )

और फरमाते हैं रसूले अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम -“जिस का हाथ पहुंचता हो (यानी हैसियत) और क़ुर्बानी न करे ! वो हरगिज़ हमारी मस्जिद (ईदगाह) के पास न आए ।” (जामेउल अहादीस)

और फरमाते है आकाए कायनात -“बेशक कुर्बानी के जानवरों में अफजल वो जानवर है! जो कीमती और तन्दरुस्त हो ।” (जामेउल अहादीस)

हुजूरे अकदस सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने रात में कुर्बानी करने से मना फरमाया । (तिबरानी)

नबीए करीम सल्लल्लाहु अलेहि वसल्लम ने हजरत अली रदियल्लाहु तआला अन्हु को हुक्म दिया कि कुर्बानी के उंर्टों के पास खडे हो जाओं ! और उनमें से उजरत के तौर पर कुछ कस्साब को न दो और “फ़रमाया कि सारे ऊंटो का ” गोश्त, झूलें और खालें सब तक्सीम कर दो । (जामेउल अहादीस)

हज़रत जैद बिन अरकम . रदियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है कि सहाबा ने अर्ज की या रसूलल्लाह ये कुर्बानियां क्या है?

फ़रमाया तुम्हारे बाप (हज़रत) इबराहीम अलैहिस्सलाम की सुन्नत है ! लोगों ने अर्ज की या रसूलल्लाह हमारे लिए इसमें क्या सवाब है ? तो फरमाया हर बाल के बदले (एक) नेकी है । (इब्जे माजा)

 

क़ुर्बानी किस पर वाजिब हैं ?
मुसलमान, मुकीम, मालिके निसाब पर वाजिब है ! और कुर्बानी जिस तरह मर्द पर वाजिब है इसी तरह औरत पर भी वाजिब है 1 इस शर्त के साथ कि कुर्बानी वाजिब होने के शराइत पाए जाएं !

मालिके निसाब से मुराद इतना माल होना है ! जितना माल होने से सदकए फित्र वाजिब होता है ! यानी 521/2 तोला चांदी या 71/2 तोला सोना, या इन दोनॉ में से किसी एक का मालिक हो ! (बहाने शरीअत हिस्सा 15)

याद रहे कि 521/2 तोला चांदी, और 71/2 तोला सोने कीं कीमत का एतबार मौजूदा दौर के हिसाब से किया जाएगा ! एक तोला का वज़न 12 ग्राम 122 मिलीग्राम 6 पाँइन्ट है ! इसके मुताबिक साढे सात तोला सोने का वज़न 92 ग्राम 312 मिलीग्राम और बावन तोला चांदी का वज़न 653 ग्राम 184 मिलीग्राम है ।

लिहाजा जो शख्स इतने रुपये का मालिक हो ! और उस पर क़र्ज़ भी ना हो उस पर क़ुर्बानी वाजिब है ! या हाजते असलिया के अलावा अगर कोई शख्स किसी ऐसी चीज का मालिक है ! जैसे खेती की ज़मीन, या जरुरत के अलावा मकान ! चाहे खाली पडा हो या किराये पर दे रखा हो ! अगर उसकी कीमत 521/2 तोला चांदी की कीमत के बराबर है ! तो वो मालदार है ! और उस पर कुर्बानी वाजिब है !

कुर्बानी वाजिब होने के लिए माल पर साल गुजरना ज़रुरी नहीँ है । अगर कुर्बानी के दिनॉ ही में किसी माल निसाब को पहुंचा उस पर भी कुर्बानी वाजिब है !

नोंट –
घर में कुर्बानी उस शख्स पर वाजिब है जो माले निसाब का मालिक हो ! अगर किसी ने अपने नाम से कुर्बानी करने के बजाए घर के उन लोगों के नाम से क़ुरबानी की जो माले निसाब के मालिक नहीं है ! जैसे

बच्चे, या फौत शुदा लोग तो उनकी तरफ से कुर्बानी नफ़्ल अदा होगी । और अपने नाम से नही की ! तो गुनाहगार होगा !  हां अपने नाम से क़ुर्बानी करने के साथ बाद या पहले घर के दूसरे लोगों के नाम से भी दूसरी अलग कुर्बानी का इंतेजाम करना बहुत ही उम्दा और अच्छा काम है !

याद रहे कि साहिबे निसाब पर हर साल . कुर्बानी वाजिब है ! कुछ लोगों का यह खयाल है ! कि अपनी तरफ से जिन्दगी में सिर्फ एक बार कुर्बानी वाजिब है ! शरअन गलत और बे बुनियाद है ! (अनवारूल हदीस)

कुर्बानी के दिन – Qurbani Ke Din
कुर्बानी के तीन दिन हैं ! 10 वीं जिल्हिज्जह की सुबह सादिक से 12 वीं जिल्हिज्जह के गुरुबे आफ़ताब तक ! यानी तीन दिन और दो रातें ! मगर शहर में नमाजे ईद से पहले कुर्बानी नही कर सकते !

हां देहात में सुबह सादिक ही से हो सकती है !  लेकिन मुस्तहब ये है कि सूरज निकलने के बाद करे ! कुर्बानी के लिए सबसे अफजल पहला दिन है ! फिर दूसरा, फिर तीसरा । (बहारे शरीअत) ”

नोट – कुर्बानी तीन दिन करना, यह अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और सहाबएकिराम रदियल्लाहु अन्हुम की सुन्नते मुबारका है ! जैसा कि हिदाया में है “वहिया जाएज़तुन फी-सलासति अय्यामिन यौमुन्नहरे व यौमाने बादुहु’

हज़रत उमर, हज़रत अली, हज़रत अब्बास रदियल्लाहु अन्हुम फ़रमाते हैं “अय्यामुन्नहरे सलासतुन” कुर्बानी के तीन दिन हैं ! लिहाजा साबित हुआ कि कुर्बानी तीन दिन करना आकाए करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम की मुक़द्दस सुन्नत है !

मसअला –
कुर्बानी के वक्त में कुर्बानी ही करनी वाजिब है ! इतनी कीमत या इतनी कीमत का जानवर सदका करने से वाजिब अदा ना होगा ! और कुर्बानी का वक़्त गुज़र जाने के बाद कुर्बानी फौत हो गई ! अब नही हो सकती !

हां अगर कुर्बानी के लिए कोई जानवर ख़रीद रखा है तो उसको सदका करदे ! वरना एक बकरी की कीमत सदका करे ! और कुर्बानी के लिए जानवर ख़रीदने के बाद कुर्बानी करने से पहले जानवर ने बच्चा दे दिया तो कुर्बानी के ही दिनो में उसे भी ज़ब्ह कर दें ! Or बेच दिया तो उसकी कीमत सदका करें ! और ना ज़ब्ह किया ना बेचा और अय्यामे नहर गुज़र गए तो सदका करे ! ( बहारे शरीअत )

कुर्बानी का जानवर केसा हो – 
ऊंट 5 साल, भैस 2 साल, भेड़-बकरी 1 साल की ! इससे उम्र कम हो तो कुर्बानी जाइज़ नहीं ! हां अगर दुम्बा या भेड का 6 माह का बच्चा इतना बडा हो कि दूरसे देखने में साल भर का मालूम होता हो ! तो उसकी कुर्बानी जाइज़ है !

मगर याद रखिए सिर्फ 6 माह के दुम्बे की कुर्बानी जाइज़ नहीं ! बल्कि उसका ‘ इतना तगड़ा होना ज़रुरी है कि दूर से देखने में साल भर का लगे ! कुर्बानी का जानवर मोटा ताजा और बे’ऐब होना चाहिए ।

अगऱ थोडा सा ऐब हो तो कुर्बानी मकरूह होगी ! और ज्यादा ऐब हो तो कुर्बानी होगी ही नही ! ( फतावा रज़विया शरीफ जिल्द 8 )

नोट – शरीअते इस्लामिया में जानवर की उम्र का लिहाज़ किया गया है. दांतो का नहीं ! बहुत से लोग दांतो पर ध्यान देते है !

ये उनकी भूल है ! लिहाजा उम्र का ख़याल रखा जाए ! जिस जानवर की शरअन जो उम्र तय है वही होनी चाहिए ! दांत अगरचे कमोबेश हो ! Ab Janiye Qurbani Karne Ka Tarika

कुर्बानी का तरीका – Qurbani Ka Tarika 
कुर्बानी के जानवर को बाएं पहलू पर इस तरह लिटाएं कि किब्ले की तरफ उसका मुंह हो और ज़ब्ह करने वाला अपना दाहिना पांव उसके पहलू पर रख कर तेज छूरी से जल्द ज़ब्ह कर दे !

और ज़ब्ह से पहले यह दुआ पढे ! “इन्नी वज्जहतु… तर्जमा मैने अपना मुंह उसकी तरफ़ किया जिसने आसमान और ज़मीन बनाए और मैं मुश्रिक़ीन में नहीँ । ( पारा 7 सूरह अनआम ) अल्लाहुम्म लका वमिन का बिस्मिल्लाहीँ अल्लाहु अकबर दुआ ख़त्म होते ही छुरी चला दें !

कुर्बानी अपनी तरफ से हो तो ज़ब्ह के बाद ये दुआ पढे ।

अल्लाहुम्मा तकब्बल मिन्नी कमा तकब्बलता मिन ख़लीलिक इबराहीमा अलैहिस्सलामु व हबीबिक मुहम्मदिन सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम !

अगर दूसरे की तरफ से ज़ब्ह किया हो तो मिन्नी कीं जगह मिन फला कहें ! यानी उसका नाम ले ! मतलब अल्लाहुम्मा तकब्बल मिन ( यहाँ जिसकी तरफ से क़ुरबानी हो उसका नाम ले जैसे- मिन रशीद  , मिन जमील वगैरह ) कमा तकब्बलता मिन ख़लीलिक इबराहीमा अलैहिस्सलामु व हबीबिक मुहम्मदिन सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम !

और अगर जानवर मुश्तरक ( शिरकत की कुर्बानी ) हो ! मतलब कुछ लोग मिलकर क़ुर्बानी कर रहे हो तो – ऊंट, भैंस वगेरह, तो फला ( मिन ) की जगह सब शरीको के नाम ले !

नोट कुर्बानी का जानवर अगर खुद ज़ब्ह ना कर सके तो किसी सुन्नी सहीहुल अकीदा ही से ज़ब्ह कराएं ! अगर किसी बद अकीदा और बेदीन जैसे वहाबी, देवबंदी, गैर मुकल्लिद, कादियानी वगेरह से क़ुर्बानी का जानवर ज़ब्ह कराया तो कुर्बानी नही होगी !

ईसीं तरह हरगिज़ हरगिज़ किसी बद मजहब व बेदीन के साथ कुर्बानी में हिस्सा ना लें । वरना आपकी कुर्बानी भी जाया (बेकार) हो जाएगी ! और गुनाह का बोझ सर पर आएगा वो अलग है ! ख़याल रहे कि क़ुर्बानी का गोश्त वगेरह कुफ्फार व मुश्रिक़ीन को देना मना है !

( फ़तावा रज़विया, फतावा फेजुर्रसूल )

Qurbani Ka Tarika –
हमने जो क़ुरबानी का तरीका ( Qurbani Ka Tarika ) बताया है और जो भी क़ुरबानी से रेलेटेड लिखा है ! यही बिलकुल सुन्नी तरीका है ! क़ुरबानी का तरीका ( Qurbani Ka Tarika ) और ईद उल अज़्हा ( Eid-Ul-Azha ) के वारे में खुद भी जानिए ! और अपनों में शेयर करके सवाबे दारेन भी हासिल कीजिये !

अल्लाह हम सबको समझने और अमल करने की तौफ़ीक़ अता फरमाए ! और जो भी मोमिन भाई बहन क़ुर्बानी कर रहे है उन सबकी क़ुर्बानी क़ुबूल अता फरमाये ! आमीन या रब्बुल आलमीन !

Saturday, July 25, 2020

NSP

*મતદારયાદી સતત સુધારણા કાર્યક્રમ*  ( *ઓનલાઈન* )
કોરોના વાયરસ નાં સંકમણ નાં સમયમાં મતદારયાદી ને લગતી સેવાઓ ચૂંટણી પંચ આપને આપે છે વધુ સુરક્ષિત વિકલ્પ. ઘરની બહાર નીકળ્યા વગર જ " *નેશનલ વોટર સર્વિસ* *પોર્ટલ* " એટલે કે *www.nvsp.in* પર મેળવો અનેક સેવાઓ
☑️ જો *૦૧/૦૧/૨૦૨૦* સુધીમાં આપે ૧૮ વર્ષ પૂર્ણ કર્યા હોય અને મતદારયાદી માં નોંધણી ન થઈ  હોય તો હજી પણ નામ નોંધાવવા ની અમૂલ્ય તક આપને ચૂંટણી પંચ ઘર બેઠા આપે છે 
1️⃣ *ફોર્મ નંબર - ૬* : ૧૮ વર્ષ પૂર્ણ કર્યા હોય કે નવાં નામની નોંધણી કરાવવા ફોર્મ નંબર ૬ ભરવું

2️⃣ *ફોર્મ નંબર - ૭* : મતદારયાદીમાથી નામ કમી કરવા ફોર્મ નંબર ૭ ભરવું

3️⃣ *ફોર્મ નંબર - ૮* : મતદારયાદી માં નોંધાયેલ પોતાનું નામ તથા અન્ય વિગતો સુધારવા ફોર્મ નંબર ૮ ભરવું

4️⃣ *ફોર્મ નંબર - ૮ (ક)* : એક જ મત વિભાગ ના એક ભાગમાંથી બીજા ભાગમાં નામ તબદીલ કરવા ફોર્મ નંબર ૮ (ક) ભરવું
 આપના નામની ચકાસણી, આપનાં મતદાન મથક, BLO અને મતદાર નોંધણી અધિકારી નાં નામ, સંપર્ક અને અન્ય વિગતો મેળવવા કોરોના વાયરસ થી સુરક્ષા માટે ઘર બેઠા ચૂંટણી પંચ ની સુવિધા નો લાભ ઓનલાઈન મેળવો
 *હેલ્પલાઇન નંબર* : ૧૯૫૦
 *વેબસાઈટ* : www.nvsp.in
*ઘરમાં રહો, સુરક્ષિત* *રહો;* 
 *મતદારયાદી ની સેવાઓ માટે નિશ્ચિત રહો.* ❤🌷🙏🏻

Qurbani

* مدرس م حنفید وارل العلوم *
* मदरसा हनिया वारिसुल उलूम *




                     * हिस्सा -05 *

                  * मसिले क़ुर्बानी *

* ______________________________________ *

* हलाल जानवर के भी 22 आज़ा का खाना मना है सबकी तफ़सील हस्बे ज़ैल है, * 

* 1। पित्त *
 * 2। मसाना *
 * 3। मदा की फर्ज *
* 4। नर का ज़कर *
 * 5। बैदा यानि कपूर *
 * 6। रगों का खून *
 * 7। गदूद *
 * 8। हराम मग्ज़ *
 * 9। गर्दन के दोनों पुट्ठे जो शाना तक खिंचे होते हैं *
 * 10। जिगर का खून *
 *1 1। तिल्ली का मिश्रित *
 * 12। गोश्त का खून *
 * 13। दिल का खून *
 * 14। सुफरा वो ज़र्द पानी जो पितते में होता है *
 *15. अलक़ा यानि वो खून जो रहम में नुत्फे से बनता है*
 *16. दुबुर यानि पखाने का मक़ाम*
 *17. ओझड़ी*
 *18. आंत*
 *19. नुत्फा यानि मनी*
*20. नुत्फा अगर चे गोश्त बन गया हो*
*21. वो बच्चा जो मुर्दा निकला हो,* 
*22. नाक की रतूबत*

*📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 8,सफह 324*

*औरत और समझदार बच्चे का ज़बीहा हलाल है,पागल नासमझ बच्चा और मुर्तद का ज़बीहा हराम है* 

*📕 फतावा मुस्तफविया,सफह 434*

*गले में 4 रग होती है 1.हलक़ूम जिससे सांस आती है 2.मिर्री जिससे खाना पानी उतरता है और दो रगें खून की रवानी के लिए होती हैं जिन्हे जबीन कहा जाता है,ज़बह में इन चारों में से 3 का कट जाना काफी है और अगर सबका अक्सर हिस्सा कट गया तब भी जानवर हलाल होगा लेकिन अगर सबका आधा हिस्सा कटा और आधा रह गया तो हलाल नहीं होगा* 

*📕 बहारे शरीयत,हिस्सा 15,सफह 116*

*जो बकरे खस्सी नहीं किये जाते वो अक्सर अपना ही पेशाब पीना शुरू कर देते हैं या कुछ जानवर गाय भैंस बकरा बकरी मुर्गा वगैरह नजासत खाने लग जायें तो उनके गोश्त में बदबू आ जाती है ऐसो को जल्लाला कहते हैं,इसके लिए उन्हें कुछ दिन बांधकर रखा जाए ताकि वो नजासत ना खाने पाएं फिर उन्हें ज़बह करें अगर बदबू ना हो तो खायें और अगर बू है तो मना है*

*📕 बहारे शरीयत,हिस्सा 15,सफह 127*

*क़ुर्बानी के वक़्त जानवर उछला कूदा जिससे उसे चोट लग गई ऐबदार हो गया तो ये ऐब मायने नहीं रखता क़ुर्बानी हो जायेगी*

*📕 बहारे शरीयत,हिस्सा 15,सफह 141*

*क़ुर्बानी का जानवर खो गया या मर गया तो लाज़िम है कि दूसरा जानवर क़ुर्बानी करे और अगर दूसरा जानवर लाया और गुम हुआ जानवर मिल गया तो जो मंहगा हो वो क़ुर्बानी करे और अगर सस्ता वाला क़ुर्बानी करेगा तो जितनी कीमत का फर्क आयेगा उतनी कीमत सदक़ा करे,दोनो की भी क़ुर्बानी कर सकता है*

*📕 बहारे शरीयत,हिस्सा 15,सफह142*

* अगर 2 लोग साथ में छुर चले गए हैं तो ज़ब के वक़्त दोनों को बिस्मिल्लाह पढ़ना वाजिब है अगर एक ने भी तर्क किया तो जानवर हराम है *

* ह बहरे शरीयत, भाग 15, सफाह 149 *

* एक ही आदमी कई जानवरों को अपने नाम से क़ुर्बानी करता है कर सकता है एक वाजिब है बाकी सबएलएल, और बड़ा जानवर एक नाम से ज़ब कर दिया तो एक ही माना जाएगा ना कि 7 वां हिस्सा *

* ह बहरे शरीयत, भाग 15, सफह 150 *

* क़ुर्बानी की खाल उसकी गोश्त उसके सर या पैर कोई भी चीज़ काटने वाले को उसकी उजरत के बदले नहीं दे सकते कि ये भी बेचना ही हुआ हां तोहफ़ान दे सकते हैं जैसे कि और मुस्लिम को देते हैं लेकिन फ़ाइलों को नहीं दे सकते *

* ह बहरे शरीयत, भाग 15, सफह 145 *

* क़ुर्बानी की खाल को अपने लिए बेचना मना है और हर दीनी व मिल्ली काम या मदारिस में सदक़ा की जा सकती है या बेचकर उसकी कीमत भी दे सकती है * *

* ह बहरे शरीयत, भाग 15, सफाह 144 *
* __________________________________ *

* इसका और भी हिस्सा मिलता रहेगा इंशाअल्लाह *
* __________________________ *

* *والله تعالی🌹 اعلم بالاواب🌹 *
 * _______________________________________ *
* _अगर आप भी मसलके आला ह'ज़रत की रौशनी में दीनी सवाल जवाब चाहते हैं तो अभी जोइन हों- मदरसा हंफिया वारिसुल उलूम ग्रुप में राब्ता करें राब्ता नम्बर 👉-9628204387_ *

* _ * क़ारी मुज़बुर्रहमान क़ादरी शाहसलीमपुरी- बहराइच शरीफ़ यू, पी, _ *


*مدرسہ حنفیہ وارث العلوم*
*मदरसा ह़नफिया वारिसुल उलूम*




                          *हिस्सा-1*

                   *फज़ाइले क़ुर्बानी*
*_______________________________________*

*_मखसूस जानवर को मखसूस दिन ज़बह करने को क़ुर्बानी कहते हैं,क़ुर्बानी हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की सुन्नत है जो इस उम्मत में भी बाकी रखी गयी है,मौला तआला क़ुर्आन में इरशाद फरमाता है कि_* 

*अपने रब के लिए नमाज़ पढ़ो और क़ुर्बानी करो* 

*📕 पारा 30,सूरह कौसर,आयत 2*

*_पहले एक मसले की वज़ाहत कर दूं फिर आगे बयान करता हूं,जिस तरह कुछ लोग सोशल मीडिया को इल्मे दीन फैलाने के लिए इस्तेमाल करते हैं वहीं कुछ लोग सिवाये खुराफात फैलाने और जिहालत भरे msg भेजकर लोगों को बरगलाने और कंफ्यूज़ करने की कोशिश करते हैं,जैसा कि आज कल एक msg आ रहा है कि इसको बक़र ईद ना कहें बल्कि ईदुल अज़हा कहें,तो ईदुल अज़हा कहना अच्छा है मगर ये कि बक़र ईद ना कहें ये सिवाए जिहालत के और कुछ नहीं है,बक़र माने गाय होती है और इस नाम से क़ुर्आन में पूरी एक सूरह, सूरह बक़र के नाम से मौजूद है तो जो लोग बक़र ईद ना कहने के लिए msg कर रहे हैं ऐसे जाहिलों को चाहिए कि वो इस सूरह का नाम भी बदल कर अपने हिसाब से कुछ अच्छा सा रख लें,खैर बक़र ईद कहना हमारे अस्लाफ से साबित है जैसा कि फक़ीहे मिल्लत मुफ्ती जलाल उद्दीन अहमद अमजदी अलैहिर्रहमा ने अनवारुल हदीस में कई जगह बक़र ईद तस्नीफ फरमाया है,चलिये अब कुछ हदीसे पाक इस बारे में मुलाहज़ा फरमा लें_*

*हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि क़ुर्बानी के दिनों में अल्लाह को क़ुर्बानी से ज़्यादा कोई अमल प्यारा नहीं और जानवर का खून ज़मीन पर गिरने से पहले क़ुबुल हो जाता है,और क़ुर्बानी करने वाले को जानवर के हर बाल के बदले 1 नेकी मिलती है*

*📕 अबु दाऊद,जिल्द 2,सफह 264*

*_यानि साहिबे निसाब अगर 5000 की क़ुर्बानी ना करके 1,करोड़ रुपया भी सदक़ा कर देगा तब भी सख्त गुनाहगार होगा लिहाज़ा क़ुर्बानी ही की जाए अगर इतनी इस्तेताअत ना हो कि बकरा खरीद सके तो बड़े जानवर में हिस्सा ले सकता है,और जिस पर क़ुर्बानी वाजिब है यानि साहिबे निसाब तो है मगर पास में पैसा नहीं है यानि सोने चांदी का मालिक है तो ऐसी सूरत में कुछ बेचकर या कर्ज़ लेकर क़ुर्बानी करनी होगी अगर नहीं करेगा तो गुनाहगार होगा_*

*हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि जो इसतेताअत रखने के बावजूद क़ुर्बानी ना करे तो वो हमारी ईदगाह के क़रीब ना आये*

*📕 अबु दाऊद,जिल्द 2,सफह 263*

*_सोचिये ऐसे शख्स को जो कि क़ुर्बानी की ताक़त रखने के बावजूद भी क़ुर्बानी ना करे उसको हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ईदगाह आने की भी इजाज़त नहीं दे रहे हैं,खुदारा ऐसी वईद में गिरफ्तार ना हों अगर साहिबे निसाब हैं तो ज़रूर ज़रूर क़ुर्बानी करें_*

*नबी करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने 2 मेढ़ों की क़ुर्बानी की जो कि खस्सी थे*

*📕 इब्ने माजा,हदीस 3122*
*_______________________________________*

*_इसका और भी हिस्सा मिलता रहेगा इंशाअल्लाह_*
*________________________*

*No more messages No more Headache !,only 1 message in 24 Hour's*
*_______________________________________*

*🌹والله تعالیٰ اعلم بالصواب🌹*
 *_______________________________________ *

              * _नाज़िमे आला_ *

* _मदरसा हनिया वारिसुल उलूम क़स्बा बेलहरा, ज़िला बरबकी।उप- सं। 92828204387 _ "*