Monday, August 14, 2023

दास्तानें करबला, क़िस्त-07*

*दास्तानें करबला, क़िस्त-07*

*हज़रत इमाम हुसैन रज़िअल्लाहु तआला अन्हु की मदीने से हिजरत*  

यजीद को जब इस बात का पता चला की इमाम हुसैन रज़िअल्लाहु तआला अन्हु ने मेरी बैअ्त नही की तो वह भड़क उठा और उसने आमीले मदीना को हुक्म भेजा की इमाम हुसैन रज़िअल्लाहु तआला अन्हु को *मेरी बैअत पर मजबूर करो वरना उसका सर काटकर मेरे पास भेज दो।*

*हजरत इमाम हुसैन* रज़िअल्लाहु तआला अन्हु को जब इस यजीदी हुक्म का पता चला तो आपने मदीना मुनव्वरा की सुकुनत तर्क फ़रमाकर मक्का मुअज़्ज़मा चले जाने का इरादा कर लिया।  मदीना मुनव्वरा से रवानगी से पहले रात को नाना जान!  *हुजुर सलल्लल्लाहु तआला अलैही वसल्लम* के मज़ारे अनवर पर हाज़िर हुए और रो रोकर अर्ज़े हाल करने लगे। फिर रौज़ा-ए-अनवर से लिपटकर वही सो गये, *ख्वाब मे देखा की नाना जान तशरीफ़ लायें हैं।*, 

आपने हज़रते इमाम हुसैन रज़िअल्लाहु तआला अन्हु को चूमा और सीना ए अक़दस से लगा लिया और फ़रमाया
*"बेटा हुसैन !* अनक़रीब ज़ालिम तुम्हें करबला मे भूखा प्यासा शहीद कर देगें और तुम्हारे मां-बाप और भाई तुम्हारे इंतेज़ार में हैं और बहिश्त तुम्हारे लिए सजाई जा रही है,  उसमें ऐसे दरजाते आलिया हैं जो शहीद हुए बेगैर तुम्हें नही मिल सकते। *जाओ बेटा सब्र व शुक्र से जामे शहादत पीकर मेरे पास आ जाओ,*
*हजरत इमाम हुसैन* रज़िअल्लाहु तआला अन्हु यह ख्वाब देखकर घर आये और अहले बैत को जमा करके यह ख्वाब सुनाया और मदीने से मक्का जाने का पक्का इरादा कर लिया और फिर अपने बिरादरे बुज़ुर्ग हज़रत इमाम हसन (रज़िअल्लाहु तआला अन्हु) के मज़ार पर हाज़िर हुए और कलिमाते रूखसत ज़बान पर लाये। 

फिर मां की क़ब्रे अनवर पर हाज़िर हुए और अर्ज किया :
           *"ऐ अम्मा जान!* यह नाज़ो का पाला तुम्हारा हुसैन आज तुमसे जुदा होने आया है और आखरी सलाम अर्ज़ करता है।,

*कब्रे अनवर से आवाज़ आई:* व अलैकुमुस्सलाम ऐ मज़लूम (मज़लूम उसे कहा जाता है जिस पर ज़ुल्म हुआ हो या होने वाला हो) आप वहां कुछ देर रोते रहे और फिर वापस तशरीफ़ लाये और मक्का मुअज़्ज़मा को रवाना हो गये.....!!

( 📚 *तज़किरा-ए-हुसैन, सफा-27,)* 

*सबक :---हजरत इमाम हुसैन को आपकी अपनी शहादत का इल्म था।* यह आप ही की शान है की इल्म के बावुज़ूद ज़र्रा बराबर भी आपके क़दम नही डगमगाए और शौके शहादत मे कमी नही आई। 

हजरत इमाम हुसैन ने अपनी सीरते पाक से बता दिया  की तालिबे रज़ा ए हक़, मौला की मर्ज़ी पर फ़िदा होती है।  इसी मे उसके दिल का चैन और उसकी हक़ीक़ी तसल्ली है। कभी वहशत (डर) व परेशानी उसके पास नही फटकती बल्के वह इंतेज़ार की घड़ियां शौक के साथ गुज़ारता है और वक़्ते मुक़र्ररा का बेचैनी से इंतेजार करता है.............

*(इन्शा अल्लाहुर्रहमान बाकी आने वाली पोस्ट में*

*मिन जानिब जमाअत रज़ा ए मुस्तफ़ा, गुमला झारखंड इंडिया*

*Next........*

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*ग़ुलामे ताजुश्शरिअह अब्दुल्लाह रज़वी क़ादरी, मुरादाबाद यूपी भारत-🌹*

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*🌹-मसलके आलाहज़रत-🌹*
        *🌹ज़िन्दाबाद 🌹*
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