Thursday, July 29, 2021

Farmane- HazaratAli Shere khuda

जब_रिज़्क_अल्लाह_की_बारगाह_में_बद्दुआ_करता_है

हज़रत अलीرضي الله عنه की खिदमत में एक औरत आ कर पूछने लगी या अली औरत की वो कौन सी आदत है जो घर से बरकत को ख़त्म कर के मुसीबतों में धकेल देती है..? 

हज़रत अली رضي الله عنهने फ़रमाया  :- 

ए औरत...!    याद रखना इस ज़मीं पर बदतरीन औरत वो है जो बर्तन धोते वक़्त वो  रिज़्क जो बर्तन पर लगा होता है वो अनाज के दाने या रोटी के टुकड़े जो बर्तन में मौजूद होते है वो कचरे में फेंक देती है... 

याद रखना..!! जो भी औरत बर्तन धोते के वक़्त अल्लाह के रिज़्क को ज़ाया करती है तो वो रिज़्क अल्लाह के दरबार में बद्दुआ देता है की  ए अल्लाह..!! इस घर से रिज़्क को ख़त्म करदे..!!  क्यूंकि  के ये  लोग तेरे रिज़्क की क़दर  नहीं करते..!!

तो इसी तरह उस घर के लोग मुसीबतों में गिरफ्तार होने लगते है... ! उस घर में रिज़्क की किल्लत दिन ब दिन बढ़ने लगती है..... 

तो उस औरत ने कहाँ या अली उस रोटी के टुकड़ो और दानो का क्या करे जो बर्तन पर लगे होते है...?? 

खाने के बाद जो रिज़्क बच जाये उसको घर के बहार किसी ऐसे कोने में रख दिया करो जहाँ अल्लाह की दूसरी मख्लूक़ात उस रिज़्क को आराम से खा सके... 

क्यूंकि जो भी मख्लूकात उस रिज़्क को खाती है तो वो रिज़्क अल्लाह की दरबार में दुआ करता है..!!

और जब भी कोई अल्लाह की मख्लूक़ अल्लाह के रिज़्क को ज़ाया करती है तो वो रिज़्क अल्लाह की दरबार में बद्दुआ करता है !

#mohsinchishty

Wednesday, July 28, 2021

Farmane- HazaratAli Shere khuda

मक्का मुकर्रमा

🌷بِسْمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحْمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ🌷
🌷‏اللَّهُمَّ صَلِّ عَلى سَيِّدِنا مُحَمَّدٍ حَبيب قَلبي ورُوح رُوحي ، وطَبيبي وشِفاء جُروحي ، ومُلهِمي وخَطيبي الذي في القَلبِ يُوحي ، وكِفايَتي وجَنَّتي وغَاية فُتوحي ، وعَلى آلهِ وصَحبهِ وسَلِّم🌷
#इस्लामी_अक़ाइद_व_मालूमात 
Topic : #मक्के_मदीने_के_फ़ज़ाइल 

दुनिया के कई शहर अपनी तारीख़ी , षक़ाफ़ती और अलाक़ई ख़ुसूसियात के सबब मशहूर हैं मगर शहरे अरब , मक्का मुकर्रमा शरीफ़ की क्या ही बात है ! जहां सुल्ताने दो जहां صَلَّی اللہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّمَ की विलादत हुई , शहंशाहे बनी आदम صَلَّی اللہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّمَ ने इसी शहर में ऐलाने नुबूव्वत फ़रमाया , यहीं से नूरे इस्लाम फैलना शुरू हुआ , सफ़रे मेअराज का आग़ाज़ इसी शहर से हुआ , वह शहर जो कुफ़्फ़ार के होश रुबा मज़ालिम के मुक़ाबला में रह़मते आलम صَلَّی اللہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّمَ के अख़्लाक़े करीमाना का गवाह है , जिस की तरफ़ मुसलमानों के दिल खींचे आते हैं , वह हमारे मक्की मदनी आक़ा صَلَّی اللہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّمَ का प्यारा शहर मक्का मुकर्रमा शरीफ़ है जहाँ आप صَلَّی اللہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّمَ ने अपनी ज़िंदगी के कम व बेश 53 साल बसर किए । 

🌷 हसन हज कर लिया काबे से आंखों ने ज़िया पाई 🌷
🌷 चलो देखें वह बस्ती जिस का रस्ता दिल के अंदर है 🌷 
(ज़ौक़े नात , सफा 178) 

दूसरी तरफ़ मक्का मुकर्रमा से तक़रीबन 425 km दूरी पर वाक़ेअ वह अज़ीम शहर जिसे सरकारे दो आलम , नूरे मुजस्सम صَلَّی اللہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّمَ की हिजरतगाह बनने का शर्फ़ मिला , इस्लाम के उरूज का नुक़्ताए आग़ाज़ बनना जिस का मुक़द्दर बना , मुहाजिर सहाबए किराम علیہم رضوان की क़ुर्बानी , अंसार सहाबए किराम علیہم رضوان का बेमिसाल जज़्बाए इसार और जांनिसाराने मुस्तफा صَلَّی اللہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّمَ के इश्क़ व वफ़ा की दास्ताने जहां रक़म हुई , वह फ़िरिश्तों में घिरा , नूर में डूबा शहर , मदीनाए मुनव्वरा है । 

🌷 वह मदीना जो कोनैन का ताज है 🌷 
🌷 जिसका दीदार मोमिन की मेअराज है 🌷 

#फ़ज़ाइले_मक्का_मुकर्रमा_पर_3_फ़रामीने_मुस्तफ़ा ﷺ

1️⃣ जो मक्का में एक दिन बीमार होता है अल्लाह पाक उसके जिस्म को जहन्नम की आग पर ह़राम फ़रमा देता है । एक रिवायत में है : अल्लाह तआला उस बंदे के लिए ग़ैरे ह़रम में की हुई 60 साल की इबादत का सवाब लिख देता है । 

2️⃣ जो मक्का मुकर्रमा में गर्मी पर दिन में एक साअत भी सब्र करता है अल्लाह तआला उसे जहन्नम से 500 साल की मुसाफ़त दूर कर देता है और उसे जन्नत से 200 साल की मुसाफ़त क़रीब फ़रमा देता है । 
(फ़ज़ाइले मक्का इमाम हसन बसरी , सफा 27) 

3️⃣ मक्का मुकर्रमा की मस्जिद (यानी मस्जिदुल ह़राम) वालों पर हर रोज़ अल्लाह पाक की 120 रह़मतें नाज़िल होती हैं उन में से 60 तवाफ़ करने वालों के लिए , 40 नमाज़ियों के लिए और 20 काबाए मुअज़्मा की ज़ियारत करने वालों के लिए । 
(मोजम अवसत , 4/381 , हदीस : 6314) 

#फ़ज़ाइले_मदीनाए_मुनव्वरा_पर_3_फ़रामीने_मुस्तफ़ाﷺ

1️⃣ मदीनाए मुनव्वरा में दाख़िल होने वाले रास्तों पर फ़िरिश्तें हैं , इस में ताऊन दाख़िल होगा न दज्जाल । 
(बूख़ारी , 1/619 , हदीस : 1880) 

2️⃣ रसूले अकरम صَلَّی اللہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّمَ ने दुआ फ़रमाई : या अल्लाह ! जितनी बरकतें तूने मक्के में रखी हैं उस से दुगुनी मदीने में रख दे । 
(बुख़ारी , 1/620 , हदीस : 1885) 

3️⃣ यह तैबा है और गुनाहों को इसी तरह मिटाता है जैसे आग चांदी का खोट दूर कर देती है । 
(बुख़ारी , 3/36 , हदीस : 4050) 

अल्लाह पाक हमें इन मुक़द्दस शहरों की बार बार हाज़री नसीब फ़रमाए । 
اٰمِیْن بِجَاہِ النَّبِیِّ الْاَمِیْن صَلَّی اللہ تَعَالٰی عَلَیْہِ وَاٰلہٖ وَسَلَّم
صَلُّو ا عَلَی الْحَبِیب ! صلَّی اللّٰہُ تعالٰی علٰی محمَّد
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Sunday, July 25, 2021

शादीशुदा ज़िन्दगी" के लिए 10 कीमती नसीहतें

इमाम अहमद बिन हंबल" की अपने बेटे को खुशहाल* *"शादीशुदा ज़िन्दगी" के लिए 10 कीमती नसीहतें* ~

 *"इमाम अहमद बिन हंबल" ने शादी की रात अपने बेटे को 10 नसीहतें (सलाह) दी , हर शादीशुदा मर्द को चाहिए कि इनको ग़ौर से पढ़े और अपनी ज़िन्दगी में अमल में लाये .* .!!

आपने कहा, "मेरे बेटे , तुम घर का सुकून हासिल नहीं कर सकते जबतक कि अपनी बीवी के मामले में इन 10 आदतों को न अपनाओ ..!!"

इसलिए उन्हें ध्यान से सुनें और अमल का इरादा करें ..!!

 1). औरतें आपका तवज्जो (ध्यान) चाहती हैं , और चाहती हैं कि तुम उनसे वाज़े (स्पष्ट) अल्फ़ाज़ में अपनी मोहब्बत का इज़हार करते रहो , इसलिए समय-समय पर अपनी बीवी को अपनी मोहब्बत का एहसास दिलाते रहो , और उन्हें वाज़े (स्पष्ट) अल्फ़ाज़ में बताओ कि वह तुम्हारे लिए किस कदर अहम (महत्वपूर्ण) और महबूब (प्यारी) है ..!!
(इस गुमान में न रहो की वह खुद समझ जाएगी , रिश्तों को इज़हार की ज़रूरत हमेशा रहती है)

2). याद रखो अगर तुमने इस इज़हार में कंजूसी से काम लिया , तो तुम दोनों के दरमियान एक तल्ख दरार आजायेगी , जो वक़्त के साथ बढ़ती रहेगी और मोहब्बत को खत्म कर देगी ..!!

 3). औरतो का सख्त मिजाज़ (स्वभाव) होता है और वे मर्दो की तुलना में ज़्यादा सतर्क होती हैं , लेकिन वे नर्म मिजाज़ मर्द की नरमी का फायदा उठाना भी बखूबी जानती हैं , इसलिए इन दोनों सिफ़ात (विशेषताओं) में संयम से काम लेना ताकि घर में संतुलन बना रहे और आप दोनों को ज़हनी सुकून (शांति) हासिल हो ..!!

4). औरतें अपने शौहर से वही उम्मीद रखती है जो शौहर अपनी बीवी से रखता है , यानी इज़्ज़त , मोहब्बत भरी बातें , ज़ाहिरी जमाल (बाहरी सुंदरता) , साफ सुथरा लिबास और खुशबूदार जिस्म , इसलिए हमेशा इसका ध्यान रखें ..!!

5). याद रखें कि घर की चार दीवारें औरत की सल्तनत (राज्य) है , जब वह वहां होती है तो ऐसा लगता है जैसे वह अपने सल्तनत के तख्त (सिंहासन) पर बैठी है , कभी भी उसके सल्तनत में मुदाखलत (हस्तक्षेप) न करना , कभी उसके तख्त को छीनने की कोशिश भी न करना और जिस हद तक मुमकिन हो घर के मामलात उसके हवाले करना और उन्हें निपटाने की उसको आज़ादी देना ..!!

6). हर बीवी अपने शौहर से मुहब्बत करना चाहती है लेकिन याद याद रखो उसके अपने माँ बाप , बहन भाई और परिवार के बाक़ी लोग भी हैं , जिनसे वह ताल्लुक़ खत्म नही कर सकती , और न ही उससे ऐसी उम्मीद करना जायज है , इसलिए कभी भी उसके और उसके घर वालो के बीच मुकाबले की सूरत (प्रतिस्पर्धा) पैदा न होने देना क्योंकि अगर उसने मजबूरन तुम्हारे खातिर अपने घरवालों को छोड़ भी दिया तब भी वह बेचैन रहेगा और यह बेचैनी तुम्हे उस से दूर कर देगी  ..!!

7). बेशक औरत टेढ़ी पसली से पैदा की गई है , और उसी में उसका हुस्न (सुंदरता) भी है , ये हरगिज़ कोई नख़्स (दोष) नही , वह ऐसे ही अच्छी लगती है जिस तरह भौहें गोलाई में खूबसूरत लगती हैं, इसलिए उसके टेढ़ेपन (कुटिलता) और खूबसूरती से फायदा उठाओ , कभी उसकी कोई बात बुरी भी लगे तो सख्ती (कठोरता) और तल्खी (कड़वाहट) से उसको सीधा करने की कोशिश न करो वरना वह टूट जाएगी , और उसका टूटना बालाख़िर तलाक तक नौबत ले जाएगा , मगर इसके साथ-साथ ऐसा भी न करना कि उसकी हर गलत और बेकार बात मानते ही चले जाओ , वरना वह मग़रूर (अभिमानी) हो जाएगी जो उसके अपने ही लिए नुकसानदेह है , इसीलिए हिकमत (समझदारी) से काम लेना ..!!

 8). शौहर की नाकद्री (अनादर) और नाशुक्री अक्सर औरतो की फितरत में होती है , अगर सारी उमर भी उसपर नवाज़िशें करते रहो लेकिन गलती से भी कभी कोई कमी रह गयी तो वह यही कहेगी कि, "तुमने मेरी कौनसी बात सुनी है आजतक ..?" लिहाज़ा उसकी इस फितरत से ज़्यादा परेशान मत होना , और न ही इसकी वजह से उस से मोहब्बत ने कमी करना , ये एक छोटा सा ऐब (कमी) है उसके अंदर , लेकिन इसके मुकाबले में उसके अंदर बेशुमार खूबियां भी हैं , बस तुम उनपर नज़र रखना और अल्लाह की बन्दी समझ कर उससे मुबब्बत करते रहना और हुकूक (अधिकार) अदा करते रहना ..!! 

9). हर औरत पर जिस्मानी कमज़ोरी के कुछ दिन आते हैं , उन दिनों में अल्लाह ने भी उनको इबादत में छूट दी है , उसको नमाज़ें माफ कर दी हैं और उसको रोज़ो में उस वक़्त तक ताख़ीर की इजाज़त दी है जबतक वह दोबारा सेहतयाब (स्वस्थ) न हो जाये , बस इन दिनों में तुम उसके साथ वैसे ही मेहरबान रहना जैसे अल्लाह ने इसपर मेहरबानी की है , जिस तरह अल्लाह ने उस पर से इबादात हटा ली , वैसे ही तुम भी उन दिनों में उसकी कमज़ोरी का लिहाज़ रखते हुए उसकी ज़िम्मेदारियों में कमी कर दो  , उसके कामकाज में मदद करा दो और उसके लिए सहूलियत (आसानी) पैदा करो ..!! 

10). आखिर में बस ये याद रखो कि तुम्हारी बीवी तुम्हारे पास एक कैदी की तरह है , जिसके बारे में अल्लाह तुमसे सवाल करेगा , बस उसके साथ इन्तेहाई रहम और करम का मामला करना ..!!
Arham Zuberi

Sunday, July 11, 2021

या रसूलल्लाह ‎ﷺ! ‏आप पाकीज़ा जिये और पाकीज़ा ही दुनियां से रुख्सत ‎

बहुत ही प्यारा पैगाम है आपसे गुज़ारिश है कि आप इसे पूरा सुकून व इत्मिनान के साथ दिल की आंखों से पढ़ें इन शा अल्लाह आपका ईमान ताज़ा हो जाएगा..!!
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वफात से 3 रोज़ क़ब्ल जबकि हुज़ूर ए अकरम ﷺ उम्मुल मोमिनीन हज़रत मैमूना رضی اللّٰہ تعالیٰ عنہا के घर तशरीफ फरमां थे.इरशाद फरमाया कि:
         "मेरी बीवियों को जमा करो-"
तमाम अज़वाजे मुत्तहरात जमा हो गईं- तो हुज़ूरे अकरम ﷺ ने दरियाफ्त फरमाया:
         "क्या तुम सब मुझे इजाज़त देती हो कि बीमारी के दिन मैं आयशा (رضی اللّٰہ تعالیٰ عنہا) के यहां गुज़ार लूं?"
सबने कहा:
        "अय अल्लाह के रसूल ﷺ ! आपको इजाज़त है-"
फिर उठना चाहा लेकिन उठ ना पाए तो हज़रत अली इब्न अबी तालिब और हज़रत फज़्ल बिन अब्बास رضی اللّٰہ تعالیٰ عنہما आगे बढ़े और नबी علیہ الصلاۃ والسلام को सहारे से उठा कर सैय्यदा मैमूना رضی اللّٰہ تعالیٰ عنہا के हुजरे से सैय्यदा आयशा رضی اللّٰہ تعالیٰ عنہا के हुजरे की तरफ ले जाने लगे-

उस वक़्त सहाबा ए किराम ने हुज़ूर ए अकरम ﷺ को इस (बीमारी और कमज़ोरी के) हाल में पहली बार देखा तो घबरा कर एक दूसरे से पूछने लगे:
         "रसूलुल्लाह ﷺ को क्या हुआ?"
          "रसूलुल्लाह ﷺ को क्या हुआ?"
चुनांचा सहाबा मस्जिद में जमा होना शुरू हो गए और मस्जिद शरीफ में एक रश हो गया- 
आक़ा करीम ﷺ का पसीना शिद्दत से बह रहा था- 
हज़रत आयशा رضی اللّٰہ تعالیٰ عنہا फरमाती हैं कि:
          "मैंने अपनी ज़िंदगी में किसी का इतना पसीना बहते नहीं देखा-"
और फरमाती हैं:
        "मैं रसूलुल्लाह ﷺ के दस्ते मुबारक को पकड़ती और उसी को चेहरा ए अक़दस पर फेरती क्यूंकि नबी علیہ الصلاۃ والسلام का हाथ मेरे हाथ से कहीं ज़्यादा मुहतरम और पाकीज़ा था-"
मज़ीद फरमाती हैं कि:
         "हबीबे खुदा ﷺ से बस यही विर्द सुनाई दे रहा था कि"لا إله إلا الله، बेशक मौत की भी अपनी सख्तियां हैं-"
इसी अस्ना में मस्जिद के अंदर रसूलुल्लाह ﷺ के बारे में खौफ की वजह से लोगों का शोर बढ़ने लगा- 
नबी علیہ السلام ने दरियाफ्त फरमाया:
        "ये कैसी आवाज़ें हैं?"
अर्ज़ किया गया कि:
        "अय अल्लाह के रसूल ﷺ ! ये लोग आपकी हालत से खौफज़दा हैं-"
इरशाद फ़रमाया कि:
         "मुझे उनके पास ले चलो-"
फिर उठने का इरादा फरमाया लेकिन उठ ना सके तो आप पर सात मशकीज़े पानी के बहाए गए तब कहीं जाकर कुछ अफाक़ा हुआ तो सहारे से उठा कर मिम्बर पर लाया गया- 
ये रसूलुल्लाह ﷺ का आखरी खुत्बा था- और आप ﷺ के आखरी कलिमात थे- फरमाया:
           "ऐ लोगो...! शायद तुम्हें मेरी मौत का खौफ है?"
सबने कहा:
          "जी हां अय अल्लाह के रसूल ﷺ-"
इरशाद फ़रमाया:
          "ऐ लोगो...!
तुमसे मेरी मुलाक़ात की जगह दुनियां नहीं.. तुमसे मेरी मुलाक़ात की जगह हौज़ (कौसर) है खुदा की क़सम गोया कि मैं यहीं से उसे (हौज़े कौसर को) देख रहा हूं-
ऐ लोगो....! मुझे तुम पर तंगदस्ती का खौफ नहीं बल्कि मुझे तुम पर दुनियां (की फारावानी) का खौफ है कि तुम इस (के मुआमले) में एक दूसरे से मुक़ाबले में लग जाओ जैसा कि तुम से पहले (पिछली उम्मतों) वाले लग गए और ये (दुनियां) तुम्हे भी हलाक कर दे जैसा कि उन्हें हलाक कर दिया-"

फिर मज़ीद फ़रमाया:
           "ऐ लोगो..! नमाज़ के मुआमले में अल्लाह से डरो.. अल्लाह से डरो...... नमाज़ के मुआमले में अल्लाह से डरो.. अल्लाह से डरो-"
(यानी अहद करो कि नमाज़ की पाबंदी करोगे और यही बात बार बार दोहराते रहे)
फिर फ़रमाया:
      "ऐ लोगो...! औरतों के मुआमले में अल्लाह से डरो.. मैं तुम्हें औरतों से नेक सुलूक की वसीयत करता हूं-"
मज़ीद फ़रमाया:
        "ऐ लोगो...!एक बंदे को अल्लाह ने इख्तियार दिया कि दुनियां को चुन ले या उसे चुन ले जो अल्लाह के पास है तो उसने उसे पसंद किया जो अल्लाह के पास है-"
इस जुमले से हुज़ूर ﷺ का मक़सद कोई ना समझा हालांकि उनकी अपनी ज़ात मुराद थी- जबकि हज़रत अबूबक्र सिद्दीक़ رضی اللّٰہ تعالیٰ عنہ वो तन्हा शख्स थे जो इस जुमले को समझे और ज़ारो क़तार रोने लगे और बलंद आवाज़ से गिरिया करते हुए उठ खड़े हुए और नबी علیہ السلام की बात क़तअ करके पुकारने लगे:
          "हमारे बाप दादा आप पर क़ुर्बान हमारी माएं आप पर क़ुर्बान.. हमारे बच्चे आप पर क़ुर्बान हमारे मालो दौलत आप पर क़ुर्बान......"
रोते जाते हैं और यही अल्फाज़ कहते जाते हैं-
सहाबा ए किराम नागवारी से हज़रत अबूबक्र सिद्दीक़ की तरफ देखने लगे कि उन्होंने नबी علیہ السلام की बात कैसे क़तअ कर दी? इस पर नबी ए करीम ﷺ ने हज़रत अबूबक्र सिद्दीक़ رضی اللّٰہ تعالیٰ عنہ का दिफा इन अल्फाज़ में फरमाया:
         "ऐ लोगो...! अबूबक्र को छोड़ दो कि तुम में से ऐसा कोई नहीं कि जिसने हमारे साथ कोई भलाई की हो और हमने उसका बदला ना दे दिया हो..सिवाय अबूबक्र के कि उसका बदला मैं नहीं दे सका- उसका बदला मैंने अल्लाह جل شانہ पर छोड़ दिया- मस्जिद (नबवी) में खुलने वाले तमाम दरवाज़े बंद कर दिए जाएं सिवाय अबूबक्र के दरवाज़े के कि जो कभी बंद ना होगा-"

आखिर में अपनी वफात से क़ब्ल मुसलमानों के लिए आखिरी दुआ के तौर पर इरशाद फ़रमाया:
          "अल्लाह तुम्हे ठिकाना दे..तुम्हारी हिफाज़त करे.. तुम्हारी मदद करे.. तुम्हारी ताईद करे-"
और आखरी बात जो मिम्बर से उतरने से पहले उम्मत को मुखातिब करके इरशाद फरमाई वो ये कि:
       "ऐ लोगो...! क़यामत तक आने वाले मेरे हर एक उम्मती को मेरा सलाम पहुंचा देना-"
फिर आक़ा करीम ﷺ को दोबारा सहारे से उठा कर घर ले जाया गया- इसी अस्ना में हज़रत अब्दुर्रहमान बिन अबीबक्र رضی اللّٰہ عنہ खिदमते अक़दस में हाज़िर हुए और उनके हाथ में मिस्वाक थी- नबी ए करीम ﷺ मिस्वाक को देखने लगे लेकिन शिद्दते मर्ज़ की वजह से तलब ना कर पाए- चुनांचा सैय्यदा आयशा رضی اللّٰہ تعالیٰ عنہا हुज़ूर अकरम ﷺ के देखने से समझ गईं और उन्होंने हज़रत अब्दुर्रहमान رضی اللّٰہ عنہ से मिस्वाक ले नबी ए अकरम ﷺ के दहन मुबारक में रख दी- लेकिन हुज़ूर ﷺ उसे इस्तेमाल ना कर पाए तो सैय्यदा आयशा ने हुज़ूर ए अकरम ﷺ से मिस्वाक लेकर अपने मुंह से नर्म की और फिर हुज़ूर नबी करीम ﷺ को लौटा दी ताकि दहन मुबारक उससे तर रहे-
 फरमाती हैं:
             "आखरी चीज़ जो नबी ए करीम ﷺ के पेट में गई वो मेरा लुआब था- और ये अल्लाह तबारक व तआला का मुझ पर फज़्ल ही था कि उसने विसाल से क़ब्ल मेरा और नबी करीम علیہ السلام का लुआबे देहन यकजा कर दिया-"
उम्मुल मोमिनीन हज़रत आयशा رضی اللّٰہ تعالیٰ عنہا मज़ीद इरशाद फरमाती हैं:
         "फिर आप ﷺ की बेटी फातिमा तशरीफ़ लाईं और आते ही रो पड़ीं कि नबी ए करीम ﷺ उठ ना सके क्यूंकि नबी ए करीम ﷺ का मामूल था कि जब भी फातिमा رضی اللّٰہ تعالیٰ عنہا तशरीफ़ लातीं हुज़ूर ए अकरम ﷺ उनके माथे पर बोसा देते थे-"
फिर हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया:
          "ऐ फातिमा ! क़रीब आ जाओ...."
फिर हुज़ूर ﷺ ने उनके कान में कोई बात कही तो हज़रत फातिमा और ज़्यादा रोने लगीं- उन्हे इस तरह रोता देखकर हुज़ूर ﷺ ने फिर फ़रमाया:
        "ऐ फातिमा! क़रीब आओ...."
दोबारा उनके कान में कोई बात इरशाद फरमाई तो वो खुश होने लगीं-
हुज़ूर ए अकरम ﷺ के विसाल के बाद मैंने सैय्यदा फातिमा رضی اللّٰہ تعالیٰ عنہا से पूछा था कि:
          "वो क्या बात थी जिस पर रोईं और फिर खुशी का इज़हार किया था?"
सैय्यदा फातिमा رضی اللّٰہ تعالیٰ عنہا कहने लगीं कि पहली बार ( जब मैं क़रीब हुई) तो फरमाया:
           "फातिमा! मैं आज रात (इस दुनियां से) कूच करने वाला हूं-"
जिस पर मैं रो दी.....
जब उन्होंने मुझे बेतहाशा रोते देखा तो फरमाने लगे:
          "फातिमा! मेरे अहले खाना में सबसे पहले तुम मुझसे आ मिलोगी...."
जिस पर मैं खुश हो गई...
सैय्यदा आयशा رضی اللّٰہ تعالیٰ عنہا फरमाती हैं फिर आक़ा करीम ﷺ ने सबको घर से बाहर जाने का हुक्म देकर मुझे फरमाया:
           "आयशा! मेरे क़रीब आ जाओ..."
हुज़ूर ﷺ ने अपनी ज़ौजा ए मुतह्हरा के सीने पर टेक लगाई और हाथ आसमान की तरफ बलंद करके फरमाने लगे:
        "मुझे वो आला व उम्दा रिफाक़त पसंद है-(मैं अल्लाह की,अम्बिया,सिद्दीक़ी न,शुहदा और स्वालेहीन की रिफाक़त को इख्तियार करता हूं-)"
सिद्दीक़ा आयशा رضی اللّٰہ تعالیٰ عنہا फरमाती हैं:
            "मैं समझ गई कि उन्होंने आखिरत को चुन लिया है-"

जिब्राईल علیہ السلام खिदमते अक़दस में हाज़िर होकर गोया हुए:
         "या रसूलल्लाह ﷺ! मल्कुल मौत दरवाज़े पर खड़े शर्फे बारयाबी चाहते हैं- आपसे पहले उन्होंने किसी से इजाज़त नहीं मांगी-"
आप علیہ الصلاۃ والسلام ने फ़रमाया:
          "जिब्राईल! उसे आने दो...."
मल्कुल मौत नबी ए करीम ﷺ के घर में दाखिल हुए और अर्ज़ की:
         "अस्सलामु अलैका या रसूलल्लाह! मुझे अल्लाह ने आपकी चाहत जानने के लिए भेजा है कि आप दुनियां में ही रहना चाहते हैं या अल्लाह  سبحانہ وتعالی के पास जाना पसंद करते हैं?"
फ़रमाया:
         "मुझे आला व उम्दा रिफाक़त पसंद है.. मुझे आला व उम्दा रिफाक़त पसंद है-"
मल्कुल मौत आक़ा ए करीम ﷺ के सिरहाने खड़े हुए और कहने लगे:
          "अय पाकीज़ा रूह......!
अय मुहम्मद बिन अब्दुल्लाह की रूह....!
अल्लाह की रिज़ा और खुशनूदी की तरफ रवाना हो...!
राज़ी हो जाने वाले परवर दिगार की तरफ जो ग़ज़बनाक नहीं...!"
सैय्यदा आयशा फरमाती हैं:
         "फिर नबी ए करीम ﷺ का हाथ नीचे आन रहा और सरे मुबारक मेरे सीने पर भारी होने लगा.. मैं समझ गई कि रसूलल्लाह ﷺ का विसाल हो गया... मुझे और तो कुछ समझ नहीं आया सो मैं अपने हुजरे से निकली और मस्जिद की तरफ का दरवाज़ा खोल कर कहा..
रसूलल्लाह का विसाल हो गया.....! रसूलल्लाह का विसाल हो गया...!"
मस्जिद आहों और नालों से गूंजने लगी-
इधर अली  کرم الله وجہہ जहां खड़े थे वहीं बैठ गए हिलने की ताक़त तक ना रही-
उधर उस्मान बिन अफ्फान رضی اللّٰہ عنہ मासूम बच्चों की तरह हाथ मलने लगे-
और सैय्यदना उमर رضی اللّٰہ تعالیٰ عنہ तलवार बलंद करके कहने लगे:
          "खबरदार जो किसी ने कहा रसूलुल्लाह ﷺ वफात पा गए हैं मैं ऐसे शख्स की गर्दन उड़ा दूंगा...! मेरे आक़ा तो अल्लाह तआला से मुलाक़ात करने गए हैं जैसे मूसा علیہ السلام अपने रब से मुलाक़ात को गए थे..वो लौट आएंगे बहुत जल्द लौट आएंगे...! अब जो वफात की खबर उड़ाएगा मैं उसे क़त्ल कर डालूंगा..."
  इस मौक़े पर सबसे ज़्यादा ज़ब्त, बर्दाश्त और सब्र करने वाली शख्सियत सैय्यदना अबूबक्र सिद्दीक़ رضی اللّٰہ تعالیٰ عنہ की थी....आप हुजरा ए नबी में दाखिल हुए रहमते आलम ﷺ के सीना ए मुबारक पर सर रख कर रो दिए...

कह रहे थे:
وآآآ خليلاه، وآآآ صفياه، وآآآ حبيباه، وآآآ نبياه
(हाय मेरा प्यारा दोस्त...!हाय मेरा मुख्लिस साथी....!हाय मेरा महबूब...!हाय मेरा नबी....!)"
फिर आक़ा करीम ﷺ के माथे पर बोसा दिया और कहा:
          "या रसूलल्लाह ﷺ! आप पाकीज़ा जिये और पाकीज़ा ही दुनियां से रुख्सत हो गए-"
सैय्यदना अबूबक्र सिद्दीक़ رضی اللّٰہ تعالیٰ عنہ बाहर आए और खुत्बा दिया:
          "जो शख्स मुहम्मद ﷺ की इबादत करता है सुन रखे महबूबे खुदा ﷺ का विसाल हो गया और जो अल्लाह की इबादत करता है वो जान ले कि अल्लाह तआला की ज़ात हमेशा ज़िन्दगी वाली है जिसे मौत नहीं-"
सैय्यदना उमर رضی اللّٰہ عنہ के हाथ से तलवार गिर गई..
उमर رضی اللّٰہ تعالیٰ عنہ फरमाते हैं:
          "फिर मैं कोई तन्हाई की जगह तलाश करने लगा जहां अकेला बैठ कर रोऊं..."
महबूबे रब्बिल आलमीन ﷺ की तदफीन कर दी गई...
सैय्यदा फातिमा رضی اللّٰہ تعالیٰ عنہا फरमाती हैं:
         "तुमने कैसे गवारा कर लिया कि नबी علیہ السلام के चेहरा ए अनवर पर मिट्टी डालो...?"
फिर कहने लगीं:
"يا أبتاه، أجاب ربا دعاه، يا أبتاه، جنة الفردوس مأواه، يا أبتاه، الى جبريل ننعاه."
"(हाय मेरे प्यारे बाबा जान कि रब के बुलावे पर चल दिए..हाय मेरे प्यारे बाबा जान कि जन्नतुल फ़िरदौस में अपने ठिकाने को पहुंच गए..हाय मेरे प्यारे बाबा जान कि हम जिब्राईल को उनके आने की खबर देते हैं)"
اللھم صل علی محمد کما تحب وترضا۔

Friday, July 9, 2021

शबे जुमुआ का दुरुद शरीफ

*शबे जुमुआ का दुरुद शरीफ*
بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ

बुज़ुर्गो ने फ़रमाया की जो शख्स हर शबे जुमुआ (जुमुआ और जुमेरात की दरमियानी रात, जो आज है) इस दुरुद शरीफ को पाबंदी से कम अज़ कम एक मर्तबा पढेगा तो मौत के वक़्त सरकारे मदीना ﷺ की ज़ियारत करेगा और कब्र में दाखिल होते वक़्त भी, यहाँ तक की वो देखेगा की सरकारे मदीना ﷺ उसे कब्र में अपने रहमत भरे हाथो से उतार रहे है.
بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اللّٰھُمَّ صَلِّ وَسَلّـِمْ وبَارِکْ عَلٰی سَیّـِدِ نَا مُحَمَّدِنِ النَّبِیِّ الْاُمّـِىِّ الْحَبِیْبِ الْعَالِی الْقَدْرِ الْعَظِیْمِ الْجَاھِ وَعَلٰی اٰلِهٖ وَصَحْبِهٰ وَسَلّـِم

*अल्लाहुम्म-सल्ली-वसल्लिम-व-बारीक-अ'ला-सय्यिदिना-मुहम्मदीन-नबिय्यिल-उम्मिय्यिल-ह्-बिबिल-आ'लिल-क़द्रील-अ'ज़िमील-जाहि-व-अ'ला आलिही व-स्ह्-बिहि व-सल्लिम*

*सारे गुनाह मुआफ़*
     हज़रते अनस رضي الله عنه से मरवी है, हुज़ूर صلى الله عليه وسلم ने फ़रमाया : जो शख्स जुमुआ के दिन नमाज़े फज्र से पहले 3 बार 
اٙسْتٙغْفِرُ اللّٰهٙ الّٙذِىْ لٙآ اِلٰهٙ اِلّٙا هُوٙوٙاٙتُوْبُ اِلٙيْهِ
पढ़े उस के गुनाह बख्श दिये जाएंगे अगर्चे समुन्दर की झाग से ज़्यादा हो।
*✍🏽अलमुजमुल अवसत लीत्तिब्रनि, 5/392, हदिष:7717*
*✍🏽फैज़ाने जुमुआ, 17*
*___________________________________*
मिट जाए गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 
गर होजाये यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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Juma Mubarak
Duoa me Yad.😊🌹

Monday, July 5, 2021

इस्लाम_की_शेरनियां

*#इस्लाम_की_शेरनियां*

शाम में हज़रत खालिद बिन वलीद رضی اللّٰہ تعالیٰ عنہ जबला बिन ऐहम की क़ौम के साथ मुक़ाबला कर रहे थे एक रोज़ मुसलमानों के क़लील लश्कर का दुश्मन से आमना सामना हुआ तो उन्होंने रूमियों के बड़े अफसर को मार दिया.. उस वक़्त जबला ने तमाम रूमी और ईसाई फौज को यकबारगी हमला करने का हुक्म दिया- सहाबा رضی اللّٰہ تعالیٰ عنہم की हालत निहायत नाज़ुक थी और राफेअ इब्न उमर ताई ने खालिद رضی اللّٰہ تعالیٰ عنہ से कहा:
       "आज मालूम होता है कि हमारी क़ज़ा आ गई-"
खालिद رضی اللّٰہ تعالیٰ عنہ ने कहा:
       "सच कहते हो इसकी वजह ये है कि मैं वो टोपी भूल आया हूं जिसमें हुज़ूर ﷺ के मूए मुबारक हैं-"

इधर ये हालत थी और उधर रात ही को आप ﷺ ने अबू उबैदा बिन जर्राह رضی اللّٰہ عنہ को जो फौज के सिपहसालार थे ख्वाब में ज़ज्रो तौबीख (डांट डपट,तम्बीह) फरमाई कि:
           "तुम इस वक़्त ख्वाबे गफलत में पड़े हो उठो और फौरन खालिद बिन वलीद की मदद को पहुंचो कि कुफ्फार ने उनको घेर लिया है- अगर तुम इस वक़्त जाओगे तो वक़्त पर पहुंच जाओगे-"
अबू उबैदा رضی اللّٰہ عنہ ने उसी वक़्त लश्कर को हुक्म दिया कि:
           "जल्द तैयार हो जाए-" 
चुनांचा वहां से वो मअ फौज यलगार के लिए रवाना हुए- रास्ते में क्या देखते हैं कि फौज के आगे आगे निहायत तेज़ी से एक सवार घोड़ा दौड़ाते हुए चला जा रहा है इस तरह कि कोई उसकी गर्द को नहीं पहुंच सकता था- उन्होंने ख्याल किया कि : 
          शायद कोई फरिश्ता है जो मदद के लिए जा रहा है-"
मगर एहतियातन चंद तेज़ रफ्तार सवारों को हुक्म किया कि:
    "इस सवार का हाल दरियाफ्त करें-"
जब क़रीब पहुंचे तो पुकार कर उस जवान को ठहरने के लिए कहा ये सुनते ही वो जिसे जवान समझ रहे थे रुका तो देखा कि वो तो खालिद बिन वलीद की अहलिया मुहतरमा थीं- उनसे हाल दरियाफ्त किया गया तो वो गोया हुईं:
           "ऐ अमीर ! जब रात के वक़्त मैंने सुना कि आपने निहायत बेताबी से लोगों से फरमाया कि खालिद बिन वलीद رضی اللّٰہ تعالیٰ عنہ को दुश्मन ने घेर लिया तो मैंने ख्याल किया कि वो नाकाम कभी ना होंगे क्यूंकि उनके साथ आक़ा करीम ﷺ के मुए मुबारक हैं- मगर इत्तिफाक़न उनकी टोपी पर नज़र पड़ी जो वो घर भूल आए थे और जिसमें मुए मुबारक थे- ब उजलत तमाम मैंने टोपी ली और अब चाहती हूं कि किसी तरह इसको उन तक पहुंचा दूं-"

हज़रत अबू उबैदा رضی اللّٰہ عنہ ने फ़रमाया:
          "जल्दी से जाओ खुदा तुम्हे बरकत दे-"
चुनांचा वो घोड़े को ऐड़ लगा कर आगे बढ़ गईं- हज़रत राफेअ बिन उमर जो हज़रत खालिद رضی اللّٰہ تعالیٰ عنہ के साथ थे बयान करते हैं कि:
         "हमारी ये हालत थी कि अपनी ज़िंदगी से मायूस हो गए थे यकबारगी तहलील व तकबीर की आवाज़ें बुलंद हुईं-"
हज़रत खालिद رضی اللّٰہ تعالیٰ عنہ को तजस्सुस हुआ कि ये आवाज़ किधर से आ रही है कि अचानक उनकी रूमी सवारों पर नज़र पड़ी जो बदहवास होकर भागे चले आ रहे थे और एक सवार उनका पीछा कर रहा था- हज़रत खालिद رضی اللّٰہ تعالیٰ عنہ घोड़ा दौड़ा कर उस सवार के क़रीब पहुंचे और पूछा कि:
          "ऐ जवां मर्द तू कौन है?"
आवाज़ आई कि:
          "मैं तुम्हारी अहलिया उम्मे तमीम हूं और तुम्हारी मुबारक टोपी लाई हूं जिसकी बरकत से तुम दुश्मन पर फतह पाया करते थे-"
रावी ए हदीस क़सम खाकर कहते हैं कि:
       "जब हज़रत खालिद رضی اللّٰہ تعالیٰ عنہ ने टोपी पहन कर कुफ्फार पर हमला किया तो लश्करे कुफ्फार के पांव उखड़ गए और लश्करे इस्लाम को फतह नसीब हुई..!!"
(تاریخ واقدی ۔ مقاصد الاسلام، 9 : 273 - 275)

इमाम आला हज़रत

💐💐 इमाम आला हज़रत 💐💐💐

मुल्के शाम के एक बुजु़र्ग ने ख्वाब में देखा, बहुत ही आलीशान दरबार लगा हुआ है बेशुमार नूरानी हस्तियां जमा हैं और ताजदारे मदीना शहंशाहे दो आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जलवा अफरोज़ हैं, पूरे इजतेमा में सुकूत तारी है और ऐसा महसूस हो रहा है जैसे किसी आने वाले का इंतजा़र किया जा रहा है।

 उस बुजु़र्ग ने सुकूत तोड़ते हुए अर्ज़ किया या रसूल अल्लाह मेरे मां-बाप आप पर कुर्बान, किसका इंतजा़र फरमाया जा रहा है, प्यारे मुस्तफा़ सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के लबे मुबारक को जुंबिश हुई  आपने इरशाद फ़रमाया,  हमें 'अहमद रजा़ हिंदी' का इंतजार है।

कौन अहमद रजा़, बुजु़र्ग ने पूछा, सरकार ने इरशाद फ़रमाया हिंदुस्तान में बरेली के बाशिंदे हैं। फिर वह शामी बुजु़र्ग रहमतुल्लाह तआला अलैहे बेदार हो गए। इमामे अहले सुन्नत अहमद रजा़ खां साहब की गाएबाना अकी़दत दिल में घर कर गई। और उस खुशनसीब की जियारत का शौक दिल में मौजें मार रहा था। यकीनन अहमद रजा़ हिंदी रहमतुल्लाहे तआला अलैह किसी ज़बरदस्त आशिक ए रसूल का नाम है। उनकी जियारत करके कुछ सीखना चाहिए चुनांचे वो शामी बुजु़र्ग मुल्के शाम से बरेली शरीफ़ रवाना हो गए। बरेली शरीफ़ पहुंचकर लोगों से आला हज़रत की क़ियाम गाह का पता पूछा तो लोगों ने बताया कि आला हज़रत का 25 सफ़रुल मुज़फ्फर को इंतकाल हो गया है। शामी बुजु़र्ग ने इंतकाल का वक्त दरयाफ्त किया तो लोगों ने बताया कि हिंदुस्तान के वक़्त के मुताबिक आला हज़रत का विसाल दोपहर के 2:38 बजे हुआ था। यह सुनकर वह बुजु़र्ग आब दीदा हो गए क्योंकि जब उन्होंने ख्वाब में सरकारे मदीना सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम का दीदार किया था और सरकारे मदीना ने भरे दरबार में फ़रमाया था कि 'हमें अहमद रजा़ हिंदी' का इंतजार है। वह दिन 25 सफ़र ही का था और वक्त भी तकरीबन वही था उस वक्त ख्वाब की ताबीर ना समझ सके थे  लेकिन अब समझ में आ चुकी थी।

(मकालाते यौमे रज़ा)

                       💐💐💐

{नोट : आला हज़रत रहमतुल्लाह तआला अलैह की तारीखे़ विसाल 25 सफ़र उल मुज़फ्फर सन 1340 हिजरी है}