Saturday, February 27, 2021

मैं_अहमदाबाद_हूं

🟩 #मैं_अहमदाबाद_हूं...."

➖"26 फरवरी, 1410 के रोज मेरी बुनियाद रखी गई....मुझे सरखेज की मशहूर दीनी शख्सियत शेख अहेमद गंजबख्श रहेमतुल्लाह अलयहि के मशवरे पर बसाया गया....लेकिन अफसोस के तुम्हारे पुरखों के बनाये हुये शहर की तारीख से तुम बेखबर हो...

➖एसै चार अहेमद नाम के बुझुर्गाने दीन ने मेरी बुनियाद रखी, जिन की एक भी असर की नमाज़ कजा नही हुइ थी....अफसोस कि 611 साल पहेले बनी मस्जिदें आज भी जुम्मा के अलावा भर नहि पाती...

➖ मेरे बीच में बसी जाली वाली मस्जिद आप सभी ने देखी होगी, लेकिन सीदी सईद के खिदमते खल्क के कामों से तुम बे खबर हो...

➖तुम ने बहोत से मदरसें बना लिये यह अच्छी बात है, लेकिन शाह वजीउद्दीन रहे. और शाह वलीउल्लाह रहे. के जैसे मदरसों का इतिहास जानने की कोशिश करना, जहां से दीने इस्लाम तुम्हारी नस्लों तक पहुंचा....निरमा युनिवर्सिटी और IIM को जानने वाले यह नहि जानते कि मैं अहमदाबाद- मदरसों के शहर की तरह जाना जाता था...मेरे मदरसों में गैर मुस्लिम भी फारसी शिखने आया करते थे.

➖ लो गार्डन, रिवर फ्रन्ट और परिमल गार्डन घूमने वालों, तुम यह नहि जानते हो कि कभी साबरमती के किनारे बसे हुये 'फतेह महल' और 'फतेह बाग' को देखने दुनिया भर के लोग मेरे यहां आया करते थे...

➖मेरी जमीन पर बहोत से दीनी बुजुर्गों के मझार है, जिन्होंने दीने इस्लाम की तब्लीग के लिये अपनी पूरी जिंदगी खपा दी...जमालपुर नदी के किनारे आ कर बसे 'बावा लू लूई(लवलवी) रहे.' जैसे बारह बावा यानी कि दीनी बुजुर्गों ने तुम्हारे तक दीने इस्लाम पहुंचाया... मगर अफसोस की तुम दीने इस्लाम के दाई न बन सके...

➖शेख अहेमद गंजबख्श और सैयद कुत्बे आलम रहे. जैसे सूफियों कि दीनी तब्लीग से गुजरात में इस्लाम फैला, मगर अफसोस की तुम दीने इस्लाम को फैला न सके...मेरे यहां बसे मझारों और मस्जिदों को देखने हजारों गैर मुस्लिम मेरे यहां आते है, मगर अफसोस कि तुम उन्हें दीन का बुनियादी पैगाम भी नहि पहुंचा सके...

➖मेरे यहां बाई हरीर (बीबी सुलतानी)की वाव और मस्जिद तो अभी आप में से बहुत से लोगों ने नहि देखी होगी...फतेहखान-मोहम्मद बेगडे़ के जमाने के शाही महेल की एक औरत ने अपने खर्च से बनाई यह मस्जिद और वाव तुम्हें यह अहेसास जरुर दिलायेगी कि एक मुस्लिम ख्वातिन कया काम कर सकती है...

➖ मेरे इलाको में बसने वाले लोगों की हिफाजत कई सालों तक मलिक मुहाफिजखान ने की थी...कभी वक्त मिलें तो घी कांटा में बसी मस्जिद देखने जरुर आना...

➖मलिक दरियाखान, मलिक सारंग, मलिक शाबान और मलिक नवरंग के नाम से कुछ इलाके शहर में आज भी मौजूद है...लेकिन अहमदाबाद के इन हूकमरानों की तारीख से तुम बेखबर हो....

➖ मुझे अहमदशाह बादशाह ने बसाया, 250 से ज्यादा सालों तक मैं गुजरात की सल्तनत की राजधानी रहा...मेरे यहां शानदार मस्जिदें और इमारतें तब तामिर हुई जब आग्रा का ताजमहल और दिल्ली का लाल किला भी नहि बसा था....दुनियाभर से लोग मुस्लिम सल्तनत में बनी इमारतों को देखने के लिये यहां आया करते थे....मगर अफसोस की तुम्हारे लिये यह शाही मस्जिदें एक पत्थर के सिवा कुछ भी नहि....इन को देखने के बाद भी तुम्हारे अंदर... तुम्हारे पुरखों के बनाये हुये शहर की तारीख जानने की कोइ दिलचस्पी नहि पैदा होती...

➖मुझे बसाने बाद अहमदशाह और दूसरे बादशाहों ने गैर मुस्लिम ब्यापारीयों को यहां ला कर बसाया...लेकिन अफसोस की कुछ लोग आज मेरा नाम भी बदल देना चाहते है...

➖मेरी जमीन पर दफन बादशाहों, सुल्तानों ने 425 साल हूकुमत की...लेकिन कभी कोई हिन्दू -मुस्लिम दंगा नहि हुआ...अब नफरत की दिवारों ने मुझे बांट दिया है..

➖ मुझ पर बहोत रोंदा गया, लेकिन मैं कभी और शहरों की तरह तबाह-बरबाद नहि हुआ, मैं ने हर बाहर से आनेवाले को एसा अपनाया कि वोह भी मुझ से मोहब्बत करने लगा...मुझ में बसनेवाले लोग आज खुद एक पहचान रखते है...कुत्बे आलम रहें ने मेरे लिये एक दुआ की थी... *"अहमदाबाद- अबदोआबाद( "हंमेशा आबाद रहे"*)

➖तुम्हारे पुरखों ने इस शहर को बसाने में, यहां और गुजरात में दीन फैलाने के लिये अपना हक अदा कर दिया...कभी कारोबार और नौकरी की भागदौड से वक्त मिल जायें, तो तुम्हारे बापदादाओं और पुरखों के बसाये हुये शहर की तारीख जानने की कोशिश करना...यह शाही ईमारतों और मस्जिदों के पत्थर आप से बहोत कुछ बात करना चाहते है.... "

➖ *"मैं अहमदाबाद -आप का प्यारा शहर"*

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