Wednesday, February 24, 2021

आला हज़रत अशरफ़ी मिया जिलानी किछौछ्वी रहमतुल्लाह अलैह🌹🌸

🌸🌹11 रज्जब उर्स मुबारक कुतुबुल इरशाद आला हज़रत अशरफ़ी मिया जिलानी किछौछ्वी रहमतुल्लाह अलैह🌹🌸

आला हज़रत अशरफ़ी मिया जिलानी किछौछ्वी रहमतुल्लाह अलैह जो कि किछौछा शरीफ़ के जाने माने मशहूर बुज़ुर्ग है और हज़रत मखदूम अशरफ़ जहाँगीर सिमनानी रहमतुल्लाह अलैह की औलादों मे आते हैं और आपको हम शबीह ए ग़ौसुल आज़म भी कहा जाता है, आप हज़रत मौलाना शाह फ़ज़्ले रहमा गंजमुरादाबादी रहमतुल्लाह अलैह से उम्र में 58 साल छोटे हैं। 

"सीरत ए अशरफ़ी सफ़ा 40-41" पर यह वाकया लिखा है कि हज़रत मौलाना शाह फ़ज़्ले रहमा गंजमुरादाबादी रहमतुल्लाह अलैह (जिनकी विलायत का एक आलम मोतरिफ़ है) ,एक दिन आला हज़रत अशरफ़ी मिया जिलानी किछौछ्वी रहमतुल्लाह अलैह और हज़रत मौलाना शाह फ़ज़्ले रहमा गंजमुरादाबादी रहमतुल्लाह अलैह की मुलाकात हुई तो हज़रत ने अशरफ़ी मिया से मसनवी शरीफ़ सुनाने को कहा  और जब आपने अशरफ़ी मिया किछौछ्वी रहमतुल्लाह अलैह के मुँह से मसनवी शरीफ़ सुनी तो बहुत खुश हुए और दुआ दी कि जिस तरह हज़रत शम्स तबरेज़ (रहमतुल्लाह अलैह )की सोहबत में मौलाना जलालुद्दीन रूमी (रहमतुल्लाह अलैह )आकर खरा सोना बन गए थे उसी तरह अशरफ़ी मिया!  तुम्हारी सोहबत में जो भी आलिम या उलेमा हक़ आयेगा उसका दिल भी तुम्हारी मोहब्बत में जल कर मोहब्बत की खुशबू फैलाएगा और आपका यह रंगीन लिबास उलेमाओं के दिलों को रंग देगा। यह सुनकर आला हज़रत अशरफ़ी मिया हज़रत मौलाना शाह फ़ज़्ले रहमा गंजमुरादाबादी रहमतुल्लाह अलैह की कदम बोसी के लिए झुकते हैं तो हज़रत मौलाना फ़ज़्ले रहमा साहब ने अपने पाँव समेट लिए और हज़रत अशरफ़ी मिया को सीने से लगा लिया ।

कुछ अरसे बाद हज़रत मौलाना शाह फ़ज़्ले रहमा गंजमुरादाबादी रहमतुल्लाह अलैह की यह दुआ और बशारत हुर्फ़ बा हुर्फ़ सच साबित हुई, बहुत से उलेमाओं और मशाय्खों ने आपकी सोहबत में खुद को रंग लिया और कमाल रुतबा हासिल किया। आप आला हज़रत अशरफ़ी मिया जिलानी किछौछ्वी रहमतुल्लाह अलैह का विसाल 11 रज्जब 1355 हिजरी में हुआ ।

करामात :-
आप आला हज़रत अशरफ़ी मिया जिलानी किछौछ्वी रहमतुल्लाह अलैह की एक मशहूर करामत है कि आपके बचपन के दौर में जब आपकी उम्र 8 साल थी तो आपकी हम-उम्र के कुछ बच्चे छत पर खेल रहे थे और उनमें से एक बच्चा छत से गिर कर मर जाता है, यह देखकर बाकी सभी बच्चे डरकर भाग जाते है और छुप जाते हैं कि अब उनकी खैर नहीं । गाँव में शोर मच जाता है तो यह देखकर हज़रत अशरफ़ी मिया ने कहा कि, "बच्चे को मेरे पास लाओ" जब बच्चे को आपके पास लाया गया तो आपने लोगों से कहा कि, "शोर क्यों मचाते हो? इसे कुछ नहीं हुआ " फ़िर जैसे ही आप बच्चे को देखकर कहते है, "बाबू क्यों खामोश हो, मुस्कुराते क्यों नहीं? " इतना कहते ही उस बच्चे का जिस्म हरकत करने लगता है और वह मुस्कुराते हुए उठ जाता है "

(सीरत ए अशरफ़ी :पेज 102)

इसी तरह एक बार समरी इलाके के बख्तियार पुर मे सैलाब और हर तरफ़ पानी की वजह से लोग कशती पर सवार होकर आया-जाया करते थे । जब आला हज़रत अशरफ़ी मिया जिलानी किछौछ्वी रहमतुल्लाह अलैह कुछ लोगों के साथ कशती पर सवार दूसरे इलाके जाने के लिए रवाना हुए तो जुनूब की तरफ़ से बहुत ज़्यादा पानी बरसाने वाली घटा उठी तो हकीम निज़ामुद्दीन अशरफ़ी ने अर्ज़ किया कि, हुज़ूर!  घंघोर घटा है, बारिश का समा है ।" यह सुनकर आप अशरफ़ी मिया फ़रमाते है, "भय्या घटा है, बढ़ा नहीं है " फ़िर क्या... लोग देखते हैं कि नदी के एक किनारे आप हज़रत की कश्ती चलती रहती और दूसरे किनारे बारिश होती रहती...यहा तक कि कशती पर सवार लोगों पर बारिश का ज़रा भी असर ना पहुंचा. 

(सीरत ए अशरफ़ी :पेज 104)

देखो भाइयों!  क्या शान है हज़रत मौलाना शाह फ़ज़्ले रहमा गंजमुरादाबादी (रहमतुल्लाह अलैह)  की... कि किस-किस ने आपकी सोहबत इख्तियार की और कौन-कौन आपसे फ़ैज़ ले गया, कौन नहीं है जिसने आपसे मुलाकात ना की हो...चाहे वह आलम पनाह हाजी वारिस पाक (रहमतुल्लाह अलैह) की ज़ात ए आली हो, आप सरकार वारिस पाक अपने खुल्फ़ा से फ़रमाते है कि मौलाना फ़ज़्ले रहमा साहब (रहमतुल्लाह अलैह) को ऐसी खास कुरबत ए रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हासिल है कि जो चाहते है हुज़ूर रिसालत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से पा लेते है और जिसे चाहते है हुज़ूर रिसालत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बारगाह में पहुंचा देते है और न बिना इजाज़त ए रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम कोई काम करते हैं और ना बिना पूछे किसी को मुरीद करते है,... आला हज़रत अहमद रज़ा खाँ बरेलवी के दादा हज़रत मौलाना रज़ा अली खाँ तो हज़रत मौलाना शाह फ़ज़्ले रहमा गंजमुरादाबादी (रहमतुल्लाह अलैह)  के ही मुरीद थे, इसी वजह से इमाम अहमद रज़ा खाँ बरेलवी (रहमतुल्लाह अलैह) खुद कई बार हज़रत की बारगाह में तशरीफ़ लाए, हज़रत मौलाना फ़ज़्ले रहमा सरकार ने अपनी कला मुबारक (टोपी) उतारकर उनके सिर पर रख दिया और फ़रमाया, "जिस तरह यह टोपी चमक रही है उसी तरह तुम भी चमकोगे(उस वक़्त आला हज़रत अहमद रज़ा खाँ रहमतुल्लाह अलैह की उम्र लगभग 20 साल थी और सरकार फ़ज़्ले रहमा की 80 साल, आज यह हज़रत मौलाना फ़ज़्ले रहमा गंजमुरादाबादी रहमतुल्लाह अलैह की दुआ है जो इमाम अहमद रज़ा खाँ (रहमतुल्लाह अलैह) का दुनिया में डंका बज रहा है और आज भी वह टोपी मुबारक हज़रत  अज़हरी मिया साहब के बहनोई शौकत हसन साहब (जो पाकिस्तान में है)  उनके पास दीगर तबर्रुकात के साथ मौजूद हैं,इसी तरह अल्लामा इक़बाल साहब हुज़ूर पाक सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दीदार के लिए वज़ीफ़े की तलब से हज़रत मौलाना फ़ज़्ले रहमा गंजमुरादाबादी रहमतुल्लाह अलैह के पास तशरीफ़ लाए तो हज़रत ने उनसे फ़रमाया कि बेलौस इश्क ए मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से बड़ा वज़ीफ़ा कुछ नहीं है, तुम खुद ऐसा इश्क पैदा करो कि उनकी नज़र खुद उठ जाए, इस मुलाकात का अल्लामा इक़बाल साहब पर यह असर हुआ कि सवा करोड़ बार दरूद पाक पढ़कर आक़ा करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बारगाह में पेश किया, फिर दीदार भी हुआ और खुद फ़ना फ़ी रसूल के मक़ाम पर फ़ैज़ भी हुए । सर सैय्यद अहमद खां ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनीवर्सिटी की कामयाबी के लिए आप से दुआ करवाई तो आपने कहा कि "हमने बहुत दूर तक दुआ कर दी है "...आज हम सब उस दुआ का असर देख रहे है।... क्वीन विक्टोरिया ने औलाद के लिए आपसे दुआ करवाई, हज़रत मौलाना शाह फ़ज़्ले रहमा गंजमुरादाबादी रहमतुल्लाह अलैह की दुआ से क्वीन विक्टोरिया को 9 औलादे अता हुई  और आपने क्वीन विक्टोरिया से कहा कि लंदन में मस्जिदें बनवाओ और दीन के काम में रुकावट न डालो, आज लंदन मे इतने मुसलमान है यह भी हज़रत का फ़ैज़ है, इसी तरह लेफ्टिनेंट लाटूश, भोपाल के नवाब सिद्दीक उल हसन और उस दौर के दीगर दुनिया दार और उलेमा मशाय्ख हज़रत से मुलाकात के लिए आते रहते थे, नीचे दिए हुए कुछ नामों से आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि जब हज़रत के शागिर्दों का यह मक़ाम है तो खुद हज़रत मौलाना फ़ज़्ले रहमा गंजमुरादाबादी रहमतुल्लाह अलैह का क्या मक़ाम होगा. 

आपके शागिर्दों के नाम है :- पीर जमाअत अली शाह नक्शबंदी मोहद्दिस अलीपुरी, मौलाना दिलदार अली शाह अलीपुरी, मौलाना लुत्फ़ुल्लाह अलीगढ़ी (जिनके शागिर्द पाकिस्तान के हज़रत पीर महर अली शाह है), मौलाना मोहम्मद अली मुंगेरी, मौलाना वसीअ अहमद सूरती, मौलाना अब्दुल हई फिरंगी महली, मौलाना शाह रज़ा अली खां(आला हज़रत अहमद रज़ा खाँ फ़ाज़िल ए बरेलवी के, दादा)  ,कुतुब ए वक़्त हकीम हज़रत नियाज़ अहमद फ़ैज़ाबादी,हज़रत शाह सुलेमान फुलवारी,हज़रत अबू सईद मक्की, मौलाना मोहम्मद अली सहारनपुरी (जिन्होंने बुखारी शरीफ़ का वह नुस्खा लिखा जो आज पढ़ा जा रहा है)  ,मौलाना हसन अहमद कानपुरी, मौलाना अब्दुल सलाम हासावी, हज़रत मारुफ़ मदनी (जो मदीना शरीफ़ से हुक्म ए इलाही पाकर आए), मौलाना अब्दुल करीम    और भी दीगर उलेमा ए किराम और मशाय्ख ए आज़म हज़रत मौलाना शाह फ़ज़्ले रहमा गंजमुरादाबादी रहमतुल्लाह अलैह से फ़ैज़याब हुए ।

ऊपर लिखे हुए कुछ नाम और मामलात पढ़कर मानना ही पढ़ता है कि हमारे फ़ज़्ले रहमा पर किस कदर फ़ज़्ले रहमान है, जहां लोग अपनी ज़ाहिरी तालीम की शुरुआत करते हैं वहीं यह मादरज़ात कुतुब सिर्फ़ 13 बरस की उम्र में ज़ाहिरी तकमील से फ़ारिग़ होकर बातिनी सरफ़राज़ी रब्बानी से मनसब कुतुब पर  साइज़  होते हैं

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