Saturday, March 6, 2021

पेशेवर भिखारियों के लिए सख़्त मज़म्मत और वईद

एक सामाजिक बीमारी *(भीख मांगने)* का इलाज....!

इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ *25% भिखारी मुसलमान हैं* यानी *हर चौथा भिखारी मुसलमान है* और मुसलमानों का एक बड़ा तबक़ा भीख मांग कर ज़िंदगी गुजारता है।
  उनमें से अक्सर पेशेवर भिखारी हैं जो बावजूद सेहतमंद होने के भीख मांग कर कमाते हैं , ऐसा लगता है कि पेशेवर भिखारियों का यह गिरोह इसको एक आसान और सहूलत बख़्श कमाई का जरिया समझते हैं।

इस्लाम में चूंकि सदक़ा ख़ैरात की बहुत एहमियत है और साइल को देने की ताकीद है इसलिए अमूमन लोग उनको कुछ न कुछ दे ही देते हैं, और यह रोज़ के हिसाब से 500 से 1500 तक कमा लेते हैं।
जबकि आप उनको बोलो के काम करो या यहां काम है डेली 200/300 रुपये मिलेंगे तो यह मुंह बसोरते हुए बड़बड़ाते निकल जाते हैं ; लेकिन काम करने पर राज़ी नहीं होते,  ऐसे लोगों को हम ही लोग भीख देकर निठल्ले, कामचोर और मुफ्तखोर बनाते हैं।

*हदीस में ऐसे पेशेवर भिखारियों के लिए सख़्त मज़म्मत और वईद आई है* कि भीख मंगे जहन्नम की चिंगारियों में इज़ाफ़ा कर रहे हैं और कियामत में उनके चेहरे बिगड़े हुए होंगे।
रसूलुल्लाह ﷺ के पास कोई मांगने आता तो आप ﷺ उसे लकड़ियां काट कर बेचने और कामधंधा कर खाने की हिदायत फरमाते।
आप ﷺ ने फरमाया के जंगल से लकड़ियों का गठ पीठ पर लाद बेचो, लोगों के सामने हाथ फैलाने से बेहतर है।
हुज़ूर ﷺ ने तो सहाबा से अहद लिया था कि किसी से सवाल न करें यहां तक कि कोड़ा गिर जाए वह भी किसी से न मांगे।

*इसलिए अब से पेशेवर भिखारियों को देना बंद कर उनका हौसला तोड़े। अगर हमारी क़ौम को इस लानत से बचाना है तो हमें उनमें मेहनत मजदूरी का मिज़ाज पैदा करना होगा और यह जभी होगा जब हम बिल्कुल उनको भीख देना बंद कर दे।*

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