*अल्लामा इकबाल*
ने तकरीबन 80 साल पहले लीखी ये बात कितनी सच है ...
*कल मज़हब पूछकर जिसने बख्श दी थी जान मेरी...*
*आज फिरका पूछकर उसने ही ले ली जान मेरी!*
*मत करो रफादेन पर इतनी बहस मुसलमानों...*
*नमाज़ तो उनकी भी हो जाती है जिनके हाथ नही होते!*
*तुम हाथ बाँधने और हाथ छोड़ने पर बहस में लगे हो...*
*और दुश्मन तुम्हारे हाथ काटने की साजिश में लगे हैं!*
*ज़िन्दगी के फरेब में हम ने हज़ारों सज्दे क़ज़ा कर डाले...*
*हमारे जन्नत के सरदार ने तो तीरों की बरसात में भी नमाज़ क़ज़ा नही की!*
*सजदा-ए-इश्क़ हो तो "इबादत" मे "मज़ा" आता है...*
*खाली "सजदों" में तो दुनियां ही बसा करती है!*
*लोग कहते हैं के बस "फर्ज़" अदा करना है.....*
*एैसा लगता है कोई "क़र्ज़" लिया हो रब से!*
*तेरे "सजदे" कहीं तुझे "काफ़िर ना कर दें...*
*तू झुकता कहीं और है और "सोचता" कहीं और है!*
*कोई जन्नत का तालिब है तो कोई ग़म से परेशान है...*
*"ज़रूरत" सज्दा करवाती है "इबादत" कौन करता है!*
*क्या हुआ तेरे माथे पर है तो "सजदों" के निशान...*
*कोई ऐसा सजदा भी कर जो छोड़ जाए ज़मीन पर निशान!*
*फिर आज हक़ के लिए जान फ़िदा करे कोई...*
*"वफा" भी झूम उठे यूँ वफ़ा करे कोई!*
*नमाज़ 1400 सालों से इंतेज़ार में है.....*
*कि मुझे "सहाबाओ" की तरह अदा करे कोई !*
*एक ख़ुदा ही है जो सजदों में मान जाता है...*
*वरना ये इंसान तो जान लेकर भी राज़ी नही होते!*
*देदी अज़ान मस्जिदो में "हय्या अलस्सलाह".....*
*ओर लिख दिया बाहर बोर्ड पर अंदर ना आए फलां और फलां!*
*खौफ़ होता है शौतान को भी आज के मुसलमान को देखकर...*
*नमाज़ भी पढ़ता है तो मस्जिद का नाम देखकर!*
*मुसलमानों के हर फिरके ने एक दूसरे को काफ़िर कहा...*
*एक काफ़िर ही है जो उसने हम सबको मुसलमान कहा !*
*आप सभी लोगों से निवेदन है गुजारिश है कि इसको शेयर करें*
*ज्यादा से ज्यादा*
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