बाग़े-जन्नत के हैं बेहरे मदह़-ख़्वाने-अहले-बैत
तुम को मुज़्दा नार का, ए ! दुश्मनाने-अहले-बैत
किस ज़बां से हो बयाने-इज़्ज़ो-शाने-अहले-बैत
मदह़-गोए-मुस्तफ़ा हैं मदह-ख़्वाने-अहले-बैत
उनकी पाकी का ख़ुदा-ए-पाक करता है बयान
आया-ए-तत़हीर से ज़ाहिर है शाने-अहले-बैत
उन के घर बे-इजाज़त जिब्रईल आते नहीं
क़दर वाले जानते हैं क़दरो-शाने-अहले-बैत
फूल ज़ख्मों के खिलाए हैं हवा-ए-दोस्त ने
ख़ून से सींचा गया है गुल्सिताने-अहले-बैत
अहले-बैते-पाक से गुस्ताख़ियां बे-बाकियां
लअ़नतुल्लाहि-अ़लयकुम दुश्मनाने-अहले-बैत
बे-अदब गुस्ताख़ फ़िरक़े को सुना दे ए हसन
यूं कहा करते हैं सुन्नी दास्ताने-अहले-बैत..!!
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