Wednesday, September 2, 2020

हालाते हकीकत

 *कैसे लड़ोगे तुम कुफ्र की आंधियो से,*

*जब तुम अपना ईमान गवां बैठे*


*जो सर मिलते थे कभी सजदों में,*

*उन्हें सूद, ब्याज और ज़िना कारी में झुका बैठे*


*जिन हाथो से लडा जाता था ज़िहाद इंसाफ का,*

*उन्हें शराब और नाइंसाफी में लगा बैठे।।*


*रोती थी जो आँखे कभी खौफ ए ख़ुदा में,*

*उन्हें गानों और रंगीन फिल्मों में उलझा बैठे।।*


*जिस मुसलमाँ की मोहब्बत थी कभी मस्जिद ए अक़्सा से*  

*दिखावे के इस जहां में वही इसे भुला बैठे।।*


*जकात देने में जिस तरह का जोश उम्मते रसूल में था,*

*इसे हम खर्च के बहानो में भुला बैठे।।*


*ये तो एक मस्जीद ऐ बाबर थी,*

*तुम तो उसे भी गवां बैठे।।*


*रही मुक्तसर सी बात*

*बन जा तू मुस्लिम खास,*

*कर भरोसा अपने रब पर*

*तू हैं कमज़ोर लेकिन वो नही,*

*जिसने रेगिस्तान में भी आबे ज़मज़म निकाला,*

*जिसने इब्राहिम को आतिस ऐ नमरूद से बचाया*

*जिसने बचाया फिरौन से उम्मते मूसा को*

*जिसने ज़िंदा रखा मछली के पेट में यूनुस को*

*जिसने जिताया मुस्लिमो को मैदान ए बद्र में*

*हा वही रब अब भी है*

*उसकी हुकूमत अब भी है*

*बदल देगा वो हुकूमत चंद लम्हो में*

*गर तू कामिल मोमिन अब भी है*

Inshallah

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