Monday, July 5, 2021

इस्लाम_की_शेरनियां

*#इस्लाम_की_शेरनियां*

शाम में हज़रत खालिद बिन वलीद رضی اللّٰہ تعالیٰ عنہ जबला बिन ऐहम की क़ौम के साथ मुक़ाबला कर रहे थे एक रोज़ मुसलमानों के क़लील लश्कर का दुश्मन से आमना सामना हुआ तो उन्होंने रूमियों के बड़े अफसर को मार दिया.. उस वक़्त जबला ने तमाम रूमी और ईसाई फौज को यकबारगी हमला करने का हुक्म दिया- सहाबा رضی اللّٰہ تعالیٰ عنہم की हालत निहायत नाज़ुक थी और राफेअ इब्न उमर ताई ने खालिद رضی اللّٰہ تعالیٰ عنہ से कहा:
       "आज मालूम होता है कि हमारी क़ज़ा आ गई-"
खालिद رضی اللّٰہ تعالیٰ عنہ ने कहा:
       "सच कहते हो इसकी वजह ये है कि मैं वो टोपी भूल आया हूं जिसमें हुज़ूर ﷺ के मूए मुबारक हैं-"

इधर ये हालत थी और उधर रात ही को आप ﷺ ने अबू उबैदा बिन जर्राह رضی اللّٰہ عنہ को जो फौज के सिपहसालार थे ख्वाब में ज़ज्रो तौबीख (डांट डपट,तम्बीह) फरमाई कि:
           "तुम इस वक़्त ख्वाबे गफलत में पड़े हो उठो और फौरन खालिद बिन वलीद की मदद को पहुंचो कि कुफ्फार ने उनको घेर लिया है- अगर तुम इस वक़्त जाओगे तो वक़्त पर पहुंच जाओगे-"
अबू उबैदा رضی اللّٰہ عنہ ने उसी वक़्त लश्कर को हुक्म दिया कि:
           "जल्द तैयार हो जाए-" 
चुनांचा वहां से वो मअ फौज यलगार के लिए रवाना हुए- रास्ते में क्या देखते हैं कि फौज के आगे आगे निहायत तेज़ी से एक सवार घोड़ा दौड़ाते हुए चला जा रहा है इस तरह कि कोई उसकी गर्द को नहीं पहुंच सकता था- उन्होंने ख्याल किया कि : 
          शायद कोई फरिश्ता है जो मदद के लिए जा रहा है-"
मगर एहतियातन चंद तेज़ रफ्तार सवारों को हुक्म किया कि:
    "इस सवार का हाल दरियाफ्त करें-"
जब क़रीब पहुंचे तो पुकार कर उस जवान को ठहरने के लिए कहा ये सुनते ही वो जिसे जवान समझ रहे थे रुका तो देखा कि वो तो खालिद बिन वलीद की अहलिया मुहतरमा थीं- उनसे हाल दरियाफ्त किया गया तो वो गोया हुईं:
           "ऐ अमीर ! जब रात के वक़्त मैंने सुना कि आपने निहायत बेताबी से लोगों से फरमाया कि खालिद बिन वलीद رضی اللّٰہ تعالیٰ عنہ को दुश्मन ने घेर लिया तो मैंने ख्याल किया कि वो नाकाम कभी ना होंगे क्यूंकि उनके साथ आक़ा करीम ﷺ के मुए मुबारक हैं- मगर इत्तिफाक़न उनकी टोपी पर नज़र पड़ी जो वो घर भूल आए थे और जिसमें मुए मुबारक थे- ब उजलत तमाम मैंने टोपी ली और अब चाहती हूं कि किसी तरह इसको उन तक पहुंचा दूं-"

हज़रत अबू उबैदा رضی اللّٰہ عنہ ने फ़रमाया:
          "जल्दी से जाओ खुदा तुम्हे बरकत दे-"
चुनांचा वो घोड़े को ऐड़ लगा कर आगे बढ़ गईं- हज़रत राफेअ बिन उमर जो हज़रत खालिद رضی اللّٰہ تعالیٰ عنہ के साथ थे बयान करते हैं कि:
         "हमारी ये हालत थी कि अपनी ज़िंदगी से मायूस हो गए थे यकबारगी तहलील व तकबीर की आवाज़ें बुलंद हुईं-"
हज़रत खालिद رضی اللّٰہ تعالیٰ عنہ को तजस्सुस हुआ कि ये आवाज़ किधर से आ रही है कि अचानक उनकी रूमी सवारों पर नज़र पड़ी जो बदहवास होकर भागे चले आ रहे थे और एक सवार उनका पीछा कर रहा था- हज़रत खालिद رضی اللّٰہ تعالیٰ عنہ घोड़ा दौड़ा कर उस सवार के क़रीब पहुंचे और पूछा कि:
          "ऐ जवां मर्द तू कौन है?"
आवाज़ आई कि:
          "मैं तुम्हारी अहलिया उम्मे तमीम हूं और तुम्हारी मुबारक टोपी लाई हूं जिसकी बरकत से तुम दुश्मन पर फतह पाया करते थे-"
रावी ए हदीस क़सम खाकर कहते हैं कि:
       "जब हज़रत खालिद رضی اللّٰہ تعالیٰ عنہ ने टोपी पहन कर कुफ्फार पर हमला किया तो लश्करे कुफ्फार के पांव उखड़ गए और लश्करे इस्लाम को फतह नसीब हुई..!!"
(تاریخ واقدی ۔ مقاصد الاسلام، 9 : 273 - 275)

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