Sunday, July 11, 2021

या रसूलल्लाह ‎ﷺ! ‏आप पाकीज़ा जिये और पाकीज़ा ही दुनियां से रुख्सत ‎

बहुत ही प्यारा पैगाम है आपसे गुज़ारिश है कि आप इसे पूरा सुकून व इत्मिनान के साथ दिल की आंखों से पढ़ें इन शा अल्लाह आपका ईमान ताज़ा हो जाएगा..!!
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वफात से 3 रोज़ क़ब्ल जबकि हुज़ूर ए अकरम ﷺ उम्मुल मोमिनीन हज़रत मैमूना رضی اللّٰہ تعالیٰ عنہا के घर तशरीफ फरमां थे.इरशाद फरमाया कि:
         "मेरी बीवियों को जमा करो-"
तमाम अज़वाजे मुत्तहरात जमा हो गईं- तो हुज़ूरे अकरम ﷺ ने दरियाफ्त फरमाया:
         "क्या तुम सब मुझे इजाज़त देती हो कि बीमारी के दिन मैं आयशा (رضی اللّٰہ تعالیٰ عنہا) के यहां गुज़ार लूं?"
सबने कहा:
        "अय अल्लाह के रसूल ﷺ ! आपको इजाज़त है-"
फिर उठना चाहा लेकिन उठ ना पाए तो हज़रत अली इब्न अबी तालिब और हज़रत फज़्ल बिन अब्बास رضی اللّٰہ تعالیٰ عنہما आगे बढ़े और नबी علیہ الصلاۃ والسلام को सहारे से उठा कर सैय्यदा मैमूना رضی اللّٰہ تعالیٰ عنہا के हुजरे से सैय्यदा आयशा رضی اللّٰہ تعالیٰ عنہا के हुजरे की तरफ ले जाने लगे-

उस वक़्त सहाबा ए किराम ने हुज़ूर ए अकरम ﷺ को इस (बीमारी और कमज़ोरी के) हाल में पहली बार देखा तो घबरा कर एक दूसरे से पूछने लगे:
         "रसूलुल्लाह ﷺ को क्या हुआ?"
          "रसूलुल्लाह ﷺ को क्या हुआ?"
चुनांचा सहाबा मस्जिद में जमा होना शुरू हो गए और मस्जिद शरीफ में एक रश हो गया- 
आक़ा करीम ﷺ का पसीना शिद्दत से बह रहा था- 
हज़रत आयशा رضی اللّٰہ تعالیٰ عنہا फरमाती हैं कि:
          "मैंने अपनी ज़िंदगी में किसी का इतना पसीना बहते नहीं देखा-"
और फरमाती हैं:
        "मैं रसूलुल्लाह ﷺ के दस्ते मुबारक को पकड़ती और उसी को चेहरा ए अक़दस पर फेरती क्यूंकि नबी علیہ الصلاۃ والسلام का हाथ मेरे हाथ से कहीं ज़्यादा मुहतरम और पाकीज़ा था-"
मज़ीद फरमाती हैं कि:
         "हबीबे खुदा ﷺ से बस यही विर्द सुनाई दे रहा था कि"لا إله إلا الله، बेशक मौत की भी अपनी सख्तियां हैं-"
इसी अस्ना में मस्जिद के अंदर रसूलुल्लाह ﷺ के बारे में खौफ की वजह से लोगों का शोर बढ़ने लगा- 
नबी علیہ السلام ने दरियाफ्त फरमाया:
        "ये कैसी आवाज़ें हैं?"
अर्ज़ किया गया कि:
        "अय अल्लाह के रसूल ﷺ ! ये लोग आपकी हालत से खौफज़दा हैं-"
इरशाद फ़रमाया कि:
         "मुझे उनके पास ले चलो-"
फिर उठने का इरादा फरमाया लेकिन उठ ना सके तो आप पर सात मशकीज़े पानी के बहाए गए तब कहीं जाकर कुछ अफाक़ा हुआ तो सहारे से उठा कर मिम्बर पर लाया गया- 
ये रसूलुल्लाह ﷺ का आखरी खुत्बा था- और आप ﷺ के आखरी कलिमात थे- फरमाया:
           "ऐ लोगो...! शायद तुम्हें मेरी मौत का खौफ है?"
सबने कहा:
          "जी हां अय अल्लाह के रसूल ﷺ-"
इरशाद फ़रमाया:
          "ऐ लोगो...!
तुमसे मेरी मुलाक़ात की जगह दुनियां नहीं.. तुमसे मेरी मुलाक़ात की जगह हौज़ (कौसर) है खुदा की क़सम गोया कि मैं यहीं से उसे (हौज़े कौसर को) देख रहा हूं-
ऐ लोगो....! मुझे तुम पर तंगदस्ती का खौफ नहीं बल्कि मुझे तुम पर दुनियां (की फारावानी) का खौफ है कि तुम इस (के मुआमले) में एक दूसरे से मुक़ाबले में लग जाओ जैसा कि तुम से पहले (पिछली उम्मतों) वाले लग गए और ये (दुनियां) तुम्हे भी हलाक कर दे जैसा कि उन्हें हलाक कर दिया-"

फिर मज़ीद फ़रमाया:
           "ऐ लोगो..! नमाज़ के मुआमले में अल्लाह से डरो.. अल्लाह से डरो...... नमाज़ के मुआमले में अल्लाह से डरो.. अल्लाह से डरो-"
(यानी अहद करो कि नमाज़ की पाबंदी करोगे और यही बात बार बार दोहराते रहे)
फिर फ़रमाया:
      "ऐ लोगो...! औरतों के मुआमले में अल्लाह से डरो.. मैं तुम्हें औरतों से नेक सुलूक की वसीयत करता हूं-"
मज़ीद फ़रमाया:
        "ऐ लोगो...!एक बंदे को अल्लाह ने इख्तियार दिया कि दुनियां को चुन ले या उसे चुन ले जो अल्लाह के पास है तो उसने उसे पसंद किया जो अल्लाह के पास है-"
इस जुमले से हुज़ूर ﷺ का मक़सद कोई ना समझा हालांकि उनकी अपनी ज़ात मुराद थी- जबकि हज़रत अबूबक्र सिद्दीक़ رضی اللّٰہ تعالیٰ عنہ वो तन्हा शख्स थे जो इस जुमले को समझे और ज़ारो क़तार रोने लगे और बलंद आवाज़ से गिरिया करते हुए उठ खड़े हुए और नबी علیہ السلام की बात क़तअ करके पुकारने लगे:
          "हमारे बाप दादा आप पर क़ुर्बान हमारी माएं आप पर क़ुर्बान.. हमारे बच्चे आप पर क़ुर्बान हमारे मालो दौलत आप पर क़ुर्बान......"
रोते जाते हैं और यही अल्फाज़ कहते जाते हैं-
सहाबा ए किराम नागवारी से हज़रत अबूबक्र सिद्दीक़ की तरफ देखने लगे कि उन्होंने नबी علیہ السلام की बात कैसे क़तअ कर दी? इस पर नबी ए करीम ﷺ ने हज़रत अबूबक्र सिद्दीक़ رضی اللّٰہ تعالیٰ عنہ का दिफा इन अल्फाज़ में फरमाया:
         "ऐ लोगो...! अबूबक्र को छोड़ दो कि तुम में से ऐसा कोई नहीं कि जिसने हमारे साथ कोई भलाई की हो और हमने उसका बदला ना दे दिया हो..सिवाय अबूबक्र के कि उसका बदला मैं नहीं दे सका- उसका बदला मैंने अल्लाह جل شانہ पर छोड़ दिया- मस्जिद (नबवी) में खुलने वाले तमाम दरवाज़े बंद कर दिए जाएं सिवाय अबूबक्र के दरवाज़े के कि जो कभी बंद ना होगा-"

आखिर में अपनी वफात से क़ब्ल मुसलमानों के लिए आखिरी दुआ के तौर पर इरशाद फ़रमाया:
          "अल्लाह तुम्हे ठिकाना दे..तुम्हारी हिफाज़त करे.. तुम्हारी मदद करे.. तुम्हारी ताईद करे-"
और आखरी बात जो मिम्बर से उतरने से पहले उम्मत को मुखातिब करके इरशाद फरमाई वो ये कि:
       "ऐ लोगो...! क़यामत तक आने वाले मेरे हर एक उम्मती को मेरा सलाम पहुंचा देना-"
फिर आक़ा करीम ﷺ को दोबारा सहारे से उठा कर घर ले जाया गया- इसी अस्ना में हज़रत अब्दुर्रहमान बिन अबीबक्र رضی اللّٰہ عنہ खिदमते अक़दस में हाज़िर हुए और उनके हाथ में मिस्वाक थी- नबी ए करीम ﷺ मिस्वाक को देखने लगे लेकिन शिद्दते मर्ज़ की वजह से तलब ना कर पाए- चुनांचा सैय्यदा आयशा رضی اللّٰہ تعالیٰ عنہا हुज़ूर अकरम ﷺ के देखने से समझ गईं और उन्होंने हज़रत अब्दुर्रहमान رضی اللّٰہ عنہ से मिस्वाक ले नबी ए अकरम ﷺ के दहन मुबारक में रख दी- लेकिन हुज़ूर ﷺ उसे इस्तेमाल ना कर पाए तो सैय्यदा आयशा ने हुज़ूर ए अकरम ﷺ से मिस्वाक लेकर अपने मुंह से नर्म की और फिर हुज़ूर नबी करीम ﷺ को लौटा दी ताकि दहन मुबारक उससे तर रहे-
 फरमाती हैं:
             "आखरी चीज़ जो नबी ए करीम ﷺ के पेट में गई वो मेरा लुआब था- और ये अल्लाह तबारक व तआला का मुझ पर फज़्ल ही था कि उसने विसाल से क़ब्ल मेरा और नबी करीम علیہ السلام का लुआबे देहन यकजा कर दिया-"
उम्मुल मोमिनीन हज़रत आयशा رضی اللّٰہ تعالیٰ عنہا मज़ीद इरशाद फरमाती हैं:
         "फिर आप ﷺ की बेटी फातिमा तशरीफ़ लाईं और आते ही रो पड़ीं कि नबी ए करीम ﷺ उठ ना सके क्यूंकि नबी ए करीम ﷺ का मामूल था कि जब भी फातिमा رضی اللّٰہ تعالیٰ عنہا तशरीफ़ लातीं हुज़ूर ए अकरम ﷺ उनके माथे पर बोसा देते थे-"
फिर हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया:
          "ऐ फातिमा ! क़रीब आ जाओ...."
फिर हुज़ूर ﷺ ने उनके कान में कोई बात कही तो हज़रत फातिमा और ज़्यादा रोने लगीं- उन्हे इस तरह रोता देखकर हुज़ूर ﷺ ने फिर फ़रमाया:
        "ऐ फातिमा! क़रीब आओ...."
दोबारा उनके कान में कोई बात इरशाद फरमाई तो वो खुश होने लगीं-
हुज़ूर ए अकरम ﷺ के विसाल के बाद मैंने सैय्यदा फातिमा رضی اللّٰہ تعالیٰ عنہا से पूछा था कि:
          "वो क्या बात थी जिस पर रोईं और फिर खुशी का इज़हार किया था?"
सैय्यदा फातिमा رضی اللّٰہ تعالیٰ عنہا कहने लगीं कि पहली बार ( जब मैं क़रीब हुई) तो फरमाया:
           "फातिमा! मैं आज रात (इस दुनियां से) कूच करने वाला हूं-"
जिस पर मैं रो दी.....
जब उन्होंने मुझे बेतहाशा रोते देखा तो फरमाने लगे:
          "फातिमा! मेरे अहले खाना में सबसे पहले तुम मुझसे आ मिलोगी...."
जिस पर मैं खुश हो गई...
सैय्यदा आयशा رضی اللّٰہ تعالیٰ عنہا फरमाती हैं फिर आक़ा करीम ﷺ ने सबको घर से बाहर जाने का हुक्म देकर मुझे फरमाया:
           "आयशा! मेरे क़रीब आ जाओ..."
हुज़ूर ﷺ ने अपनी ज़ौजा ए मुतह्हरा के सीने पर टेक लगाई और हाथ आसमान की तरफ बलंद करके फरमाने लगे:
        "मुझे वो आला व उम्दा रिफाक़त पसंद है-(मैं अल्लाह की,अम्बिया,सिद्दीक़ी न,शुहदा और स्वालेहीन की रिफाक़त को इख्तियार करता हूं-)"
सिद्दीक़ा आयशा رضی اللّٰہ تعالیٰ عنہا फरमाती हैं:
            "मैं समझ गई कि उन्होंने आखिरत को चुन लिया है-"

जिब्राईल علیہ السلام खिदमते अक़दस में हाज़िर होकर गोया हुए:
         "या रसूलल्लाह ﷺ! मल्कुल मौत दरवाज़े पर खड़े शर्फे बारयाबी चाहते हैं- आपसे पहले उन्होंने किसी से इजाज़त नहीं मांगी-"
आप علیہ الصلاۃ والسلام ने फ़रमाया:
          "जिब्राईल! उसे आने दो...."
मल्कुल मौत नबी ए करीम ﷺ के घर में दाखिल हुए और अर्ज़ की:
         "अस्सलामु अलैका या रसूलल्लाह! मुझे अल्लाह ने आपकी चाहत जानने के लिए भेजा है कि आप दुनियां में ही रहना चाहते हैं या अल्लाह  سبحانہ وتعالی के पास जाना पसंद करते हैं?"
फ़रमाया:
         "मुझे आला व उम्दा रिफाक़त पसंद है.. मुझे आला व उम्दा रिफाक़त पसंद है-"
मल्कुल मौत आक़ा ए करीम ﷺ के सिरहाने खड़े हुए और कहने लगे:
          "अय पाकीज़ा रूह......!
अय मुहम्मद बिन अब्दुल्लाह की रूह....!
अल्लाह की रिज़ा और खुशनूदी की तरफ रवाना हो...!
राज़ी हो जाने वाले परवर दिगार की तरफ जो ग़ज़बनाक नहीं...!"
सैय्यदा आयशा फरमाती हैं:
         "फिर नबी ए करीम ﷺ का हाथ नीचे आन रहा और सरे मुबारक मेरे सीने पर भारी होने लगा.. मैं समझ गई कि रसूलल्लाह ﷺ का विसाल हो गया... मुझे और तो कुछ समझ नहीं आया सो मैं अपने हुजरे से निकली और मस्जिद की तरफ का दरवाज़ा खोल कर कहा..
रसूलल्लाह का विसाल हो गया.....! रसूलल्लाह का विसाल हो गया...!"
मस्जिद आहों और नालों से गूंजने लगी-
इधर अली  کرم الله وجہہ जहां खड़े थे वहीं बैठ गए हिलने की ताक़त तक ना रही-
उधर उस्मान बिन अफ्फान رضی اللّٰہ عنہ मासूम बच्चों की तरह हाथ मलने लगे-
और सैय्यदना उमर رضی اللّٰہ تعالیٰ عنہ तलवार बलंद करके कहने लगे:
          "खबरदार जो किसी ने कहा रसूलुल्लाह ﷺ वफात पा गए हैं मैं ऐसे शख्स की गर्दन उड़ा दूंगा...! मेरे आक़ा तो अल्लाह तआला से मुलाक़ात करने गए हैं जैसे मूसा علیہ السلام अपने रब से मुलाक़ात को गए थे..वो लौट आएंगे बहुत जल्द लौट आएंगे...! अब जो वफात की खबर उड़ाएगा मैं उसे क़त्ल कर डालूंगा..."
  इस मौक़े पर सबसे ज़्यादा ज़ब्त, बर्दाश्त और सब्र करने वाली शख्सियत सैय्यदना अबूबक्र सिद्दीक़ رضی اللّٰہ تعالیٰ عنہ की थी....आप हुजरा ए नबी में दाखिल हुए रहमते आलम ﷺ के सीना ए मुबारक पर सर रख कर रो दिए...

कह रहे थे:
وآآآ خليلاه، وآآآ صفياه، وآآآ حبيباه، وآآآ نبياه
(हाय मेरा प्यारा दोस्त...!हाय मेरा मुख्लिस साथी....!हाय मेरा महबूब...!हाय मेरा नबी....!)"
फिर आक़ा करीम ﷺ के माथे पर बोसा दिया और कहा:
          "या रसूलल्लाह ﷺ! आप पाकीज़ा जिये और पाकीज़ा ही दुनियां से रुख्सत हो गए-"
सैय्यदना अबूबक्र सिद्दीक़ رضی اللّٰہ تعالیٰ عنہ बाहर आए और खुत्बा दिया:
          "जो शख्स मुहम्मद ﷺ की इबादत करता है सुन रखे महबूबे खुदा ﷺ का विसाल हो गया और जो अल्लाह की इबादत करता है वो जान ले कि अल्लाह तआला की ज़ात हमेशा ज़िन्दगी वाली है जिसे मौत नहीं-"
सैय्यदना उमर رضی اللّٰہ عنہ के हाथ से तलवार गिर गई..
उमर رضی اللّٰہ تعالیٰ عنہ फरमाते हैं:
          "फिर मैं कोई तन्हाई की जगह तलाश करने लगा जहां अकेला बैठ कर रोऊं..."
महबूबे रब्बिल आलमीन ﷺ की तदफीन कर दी गई...
सैय्यदा फातिमा رضی اللّٰہ تعالیٰ عنہا फरमाती हैं:
         "तुमने कैसे गवारा कर लिया कि नबी علیہ السلام के चेहरा ए अनवर पर मिट्टी डालो...?"
फिर कहने लगीं:
"يا أبتاه، أجاب ربا دعاه، يا أبتاه، جنة الفردوس مأواه، يا أبتاه، الى جبريل ننعاه."
"(हाय मेरे प्यारे बाबा जान कि रब के बुलावे पर चल दिए..हाय मेरे प्यारे बाबा जान कि जन्नतुल फ़िरदौस में अपने ठिकाने को पहुंच गए..हाय मेरे प्यारे बाबा जान कि हम जिब्राईल को उनके आने की खबर देते हैं)"
اللھم صل علی محمد کما تحب وترضا۔

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