Friday, September 1, 2023

दास्ताने करबला, क़िस्त-14*

*दास्ताने करबला, क़िस्त-14*

*कूफ़ियों की बद-अख़्लाक़ी और करबला का मैदान*

हज़रत इमाम हुसैन रज़िअल्लाहु तआला अन्हु को रास्ते ही में हज़रत मुस्लिम और उनके बच्चों के शहीद हो जाने की ख़बर मिल जाने के बावुजूद, आप ने सफ़र जारी रखा। 

आपके मक्का से रवानगी की ख़बर पाकर इब्ने ज़्याद ने *हुर्र बिन रूबाही को एक हज़ार का लश्कर देकर हज़रत इमाम को घेरकर कूफ़ा लाने के वास्ते भेज दिया।*

जब कूफ़ा दो मंजिल की दूरी पर रह गया तब आपको हुर्र बिन रूबाही मिला, *हुर्र के साथ 1000 हथियार बन्द सवार थे।* हज़रत इमाम हुसैन ने जब लश्कर को देखा तो एक शख़्स को मालूम करने के लिये भेजा कि यह  कैसा लश्कर  है, इतने में हुर्र इब्ने रूबाही ख़ुद हज़रत इमाम के सामने आया और कहने लगा कि, *मुझे इब्ने ज़्याद ने आपको घेर कर उसके पास ले जाने के लिये भेजा है।*

हज़रत इमाम हुसैन रज़िअल्लाहु तआला अन्हु ने उस लश्कर मे ख़ुत्बा पढ़कर सुनाया कि: 

 *"ऐ लोगो मेरा इरादा इधर आने का न था, मगर पै दर पै (एक के बाद एक) तुम्हारा खत पहुंचे, और क़ासिद आए कि जल्दी तशरीफ लाओ, इसलिए  मैं आया हूं।*

हुर्र बोले की खुदा की क़सम!  मै उन खुतूत से ख़बरदार नहीं हुं।

*हजरत इमाम हुसैन ने फरमाया :*

       *'मगर तुम्हारे इसी लश्कर में बहुत से ऐसे आदमी मौजूद हैं, जिन्होंने मुझे ख़त लिखे फिर आपने खुतूत पढ़कर सुनाये, अकसर ने सिर निचा किया और कोई जवाब न दिया।*

हुर्र ने हज़रत इमाम से कहा कि : "हजरत इमाम हुसैन (रज़िअल्लाहु तआला अन्हु) ❗️  इब्जे ज्याद ने मुझे हुक्म दिया है कि आपको घेरकर उसके पास ले आऊं। मगर मेरे हाथ कट जायें जो आप पर तलवार उठाऊं। 
        ‘लेकिन मुख़ालिफ़ मेरे साथ हैं, इसलिए मसलेहत यही है कि मैं आपके साथ रहुं। रात को आप मसतुरात (औरतों) का बहाना करके मुझसे अलग हो जाना और जब लश्कर वाले सो जाये तो आप जिस तरफ़ चाहें चले जायें। मैं सुबह को कुछ देर जंगल मे तलाश करके वापस चला जाऊंगा और इब्ने ज़्याद से कुछ बहाना कर दूंगा...!!

*📘सिर्रूश्शहादतैन, सफ़ह-19,*
*📗 तज़किरा-ए-हुसैन, सफ़ह-19)* 

हज़रत इमाम हुसैन रज़िअल्लाहु तआला अन्हु और उनके काफ़िले को एक हज़ार के लश्कर ने घेर लिया। *ना ही उन्हें शहर के अंदर दाखिल होने दिया जा रहा था, ना ही वह वापस अपने वतन जा सकते थे।* बिल आख़िर आप कूफ़ा की राह से हट गए, और आपको क़ाफ़िले समेत करबला में नुज़ूल फ़रमाना पड़ा। 

🗓 *ये सन 61 हिजरी मुहर्रम की दूसरी तारीख थी।* आप ने इस मक़ाम का नाम दरयाफ़्त किया तो मालूम हुआ कि, *इस जगह को करबला कहते हैं। इमाम हुसैन करबला से वाक़िफ थे, और आपको मालूम हुआ कि करबला ही वह जगह है जहां अहले बैअ्ते अत़हार को राहे हक़ में अपने ख़ून को बहाना होगा।* 

आप को इन दिनों *हुज़ूर सय्यदे आलम सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम* की ज़्यारत नसीब हुई, और आपको शहादत की ख़बर दी गई और आपके सीना ए मुबारक पर दस्ते अक़दस रख कर दुआएं फ़रमाईं।

⛺️अजीब वक़्त है कि जिनको महेमान बनाकर बुलाया गया था, *उन्हें इस तरह बे सरो सामान खुले मैदान में तपती हुई रेत पर तेज़ धूप में औरतों और बच्चों समेत अपना पड़ाव डालने पर मजबूर किया जा रहा है।* और इन मुसाफिरों के सामने हज़ार का लश्कर उन्हें अपनी तलवार और नेज़ों की कुव्वत दिखा रहा है।

अभी इतमीनान से बैठने और थकान दूर करने की सूरत भी नज़र न आयी थी कि *इमामे हुसैन की ख़िदमत में इब्ने ज़्याद का ख़त पहुंचा जिसमें उस ने हज़रत इमाम हुसैन से यज़ीद पलीद की बैअ्त तलब की थी। आपने वह ख़त पढ़ कर डाल दिया और क़ासिद से बैअ्त कर ने से इन्कार कर दिया।---------*

*📚 सवानाहे करबला सफ़ह-131)*

*(इन्शा अल्लाहुर्रहमान बाक़ी अगली पोस्ट में)*

*मिन जानिब जमाअत रज़ा ए मुस्तफ़ा, गुमला, झारखंड, इंडिया*

*Next........*

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*ग़ुलामे ताजुश्शरिअह अब्दुल्लाह रज़वी क़ादरी, मुरादाबाद यूपी भारत-🌹*

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*🌹-मसलके आलाहज़रत-🌹*
        *🌹ज़िन्दाबाद 🌹*
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