Wednesday, May 12, 2021

रूह_अफज़ा पसंदीदा_शर्बत

आज रूह_अफज़ा मुस्लिम दुनिया में पिया जाने वाला सब से पसंदीदा_शर्बत है.💞☝️✅

इसके_ईजाद_होने_की_कहानी ये है।
पीलीभीत में पैदा होने वाले हाफिज़ अब्दुल मजीद साहब दिल्ली में आ कर बस गए.
 यहां हकीम अजमल खां के मशहूर हिंदुस्तानी दवाखाने में मुलाज़िम हो गए. 
बाद में मुलाज़मत छोड़ कर अपना "हमदर्द दवाखाना" खोल लिया. 
हकीम साहब को जड़ी बूटियों से खास लगाव था. इसलिए जल्द ही उनकी पहचान में माहिर हो गए. हमदर्द दवाखाने में बनने वाली सब से पहली दवाई 'हब्बे मुक़व्वी ए मैदा" थी.
उस ज़माने में अलग अलग फूलों, फलों और बूटियों के शर्बत दसतियाब थे. मसलन गुलाब का शर्बत, अनार का शर्बत वगैरह वगैरह. 
हमदर्द दवाखाने के दवा बनाने वाले डिपार्टमेंट में सहारनपुर के रहने वाले हकीम उस्ताद हसन खां थे जो एक माहिर दवा बनाने वाले के साथ साथ अच्छे हकीम भी थे. 
हकीम अब्दुल मजीद साहब ने उस्ताद हसन से ये ख्वाहिश ज़ाहिर की कि फलों, फूलों और जड़ी बूटियों को मिला एक ऐसा शर्बत बनाया जाए जिसका ज़ायक़ा बे मिसाल हो और इतना हल्का हो कि हर उम्र का इंसान पी सके. उस्ताद हसन खां ने बड़ी मेहनत के बाद एक शर्बत का नुस्खा बनाया. 
जिसमें जड़ी बूटियों में से 
🔴 "खुर्फा" मुनक्का, 
कासनी, 
🔴नीलोफर, गावज़बां और 
हरा धनिया, 
🔴फलों में से संतरा, 
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अनानास, 
🔴तरबूज़ और सब्ज़ियों में गाजर, 
🔴पालक, 
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पुदीना, 
🔴और हरा कदु, फलों में गुलाब, केवड़ा, नींबू, नारंगी जबकि ठंडक और खुश्बू के लिए सलाद पत्ता और संदल को लिया गया.
कहते हैं जब ये शर्बत बन रहा था तो इसकी खुशबू आस पास फैल गयी और लोग देखने आने लगे कि क्या बन रहा है! 
जब ये शर्बत बनकर तैय्यार हुआ तो इसका नाम रूह अफज़ा रखा गया. 
रूह अफज़ा नाम उर्दू की मशहूर मसनवी गुलज़ार ए नसीम से लिया गया है जो एक किरदार का नाम है.
इसकी पहली खेप हाथों हाथ बिक गयी.
रूह अफज़ा को मक़बूल होने में कई साल लगे. इसका ज़बर्दस्त ऐडवेर्टीसेमेंटस कराया गया.
🔴
रूह अफज़ा 1907 में दिल्ली में लाल कुँए में स्थित हमदर्द दवाखाने में ईजाद हुआ..

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